jayaprakash narayan jayanti: अमेरिका में रहते हुए जय प्रकाश नारायण (jayaprakash narayan) ने पांच विश्वविद्यालयों में अध्ययन किया। वे लगभग सात वर्ष तक अमेरिका में रहे। वहां पर रहते हुए उन्होंने श्रम की महत्ता और मानवमात्र में समानता की उपयोगिता को भली-भांति समझा।

सन् 1928 में उन्होंने ओहियो विश्वविद्यालय से बी. ए. की परीक्षा बहुत अच्छे अंकों में उत्तीर्ण की। उन्हें तीस हजार डॉलर की छात्रवृत्ति प्रदान की गई। उसके बाद विश्वविद्यालय में उन्हें सहायक प्रवक्ता की नौकरी भी मिल गई। विश्वविद्यालय में पढ़ाने के साथ-साथ उन्होंने एम.ए. के पाठ्यक्रम में नामांकन भी करवा लिया। यह परीक्षा भी उन्होंने अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण कर ली।

एम.ए. की डिग्री प्राप्त करने के बाद जे. पी. अमेरिका में ही पी एच.डी. की डिग्री प्राप्त करना चाहते थे। उसी समय उन्हें अपनी माता फूलरानी देवी की बीमारी की खबर मिली। अब वे अति शीघ्र स्वदेश लौटने की तैयारी में लग गए।

यहा लौटने के बाद जेपी को पता चला कि पत्नी प्रभावती ने ब्रह्मचर्य व्रत लिया है। इस खबर से वे विचलित हुए, किंतु प्रभावती अपने व्रत पर अडिग रहीं

उन दिनों जेपी का ब्रह्मचर्य में विश्वास न था । इसके लिए वे मानसिक तौर पर तैयार भी नहीं थे। प्रभावती के ब्रह्मचर्य का संकल्प लेने की सारी जिम्मेदारी वे गांधीजी पर डाल रहे थे, क्योंकि उनके अमेरिका चले जाने के बाद प्रभावती गांधीजी और कस्तूरबा गांधी के साथ साबरमती आश्रम में ही रहने लगी थीं। छह-सात वर्ष तक जेपी काफी ऊहापोह की स्थिति में रहे। वे दूसरा विवाह करना नहीं चाहते थे और न ही व्यक्तिगत जीवन में किसी प्रकार की खटास पैदा करना चाहते थे। अंत में उन्होंने निर्णय लिया कि अपनी पत्नी के साथ वे भी ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करेंगे।

यह बड़े आश्चर्य की बात थी कि प्रभावती और जे. पी. ने गृहस्थ जीवन में ही ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया था। जीवन भर प्रभावती जे. पी. के साथ उनका साया बनकर रहीं और एक पतिव्रता नारी के रूप में उनकी प्रत्येक सुविधा का ध्यान रखती रहीं । उनके इस प्रकार के जीवन को देखकर गांधीजी ने उन्हें ‘आदर्श नवदंपती’ कहा था।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here