अलीगंज और शाहेमरदों की गाजरें दिल्ली-भर में मशहूर थीं। फेरीवाला सदा लगाता-

शाहे मरदों की लालड़ियां

अलीगंज की हैं जी, गुड़ से ज्यादा मिठाइयां।

शाहजी के तालाब के सिंघाड़े सबसे ज़्यादा जायकेदार और मीठे होते थे। फेरीवाला अपने सिंघाड़ों की तारीफ़ में गा-गाकर कहता था-

निर्मल तालाब के दूधिया

केवड़े की बेल के बतासे शाहजी के तालाब के

कांटों से हरियाले

शाहजी के तालाब के

दूधिया सिंघाड़े ले लो।

शाहजी का तालाब तो अब नहीं रहा लेकिन यह वही जगह है जहां अब कमला मार्केट है। भुने हुए सिंघाड़ेवाला आवाज लगाता- ‘कागजी गरी के भुना दिए बादाम ।’

गॅडेरी वाला आकर मुहल्ले के एक कोने में बैठ जाता। उसके हाथ में एक सरौता होता और वह गन्ने को छीलकर और गंडेरियां एक कपड़े पर बिछाता जाता। जब ढेरी बन जाती तो उस पर गुलाब की पत्तियां काटकर बिखेर देता और केवड़ा छिड़कता। गडेरियों पर मलमल का एक गीला कपड़ा ढका रहता था जिस पर वह थोड़ी-थोड़ी देर बाद पानी के छींटे मारता रहता। एक तरफ़ साबुत गन्ने बेचने के लिए रखता। वह बड़े मीठे स्वर में जोर से कहता-

बालूशाही गडेरियां, रसीली गॅडेरियां केवड़े वाली।

पौंडों की ओर इशारा करके कहता-

पेट का भोजन, हाथ की टेकन

होंठों से छीलो, कटोरा भर शरबत पी लो

मियां पेट का भोजन, हाथ की टेकन, बल्ली की बल्ली।

मूंगफली के रसिया सारे दिल्ली वाले थे। जहां अक्तूबर का महीना शुरू हुआ मूंगफली वाले आने लगे। भुनी हुई मूंगफली लोहे के एक बड़े तसले में रखकर उसे एक छाबड़े पर लगा लेते। बीच में उपले की आग की या कच्चे कोयलों की एक हंडिया रख देते और गा-गाकर कहते-

खालो भुने बादाम, ले लो पिशावर की गरियां,

चीनी बादाम की गरियां।।

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