TOWN HALL AT CHADNI CHOWK

हाइलाइट्स

  • -दिल्ली अभिलेखागार विभाग की सराहनी पहल
  • -इन इमारतों पर केंद्रित कॉफी टेबल बुक भी किया जाएगा लांच
  • -मैटकाफ हाउस, टाउन हाल, दारा शिकोह लाइब्रेरी,वायस रीगल हाउस, सेंट स्टीफंस कालेज,भगीरथ पैलेस, दिल्ली विधानसभा सूची में शामिल

राजधानी की सड़कों के किनारे शांत, स्थिर खड़ी पुराने इमारतें। जहां भले ही रोज चहल-पहल होती है लेकिन इमारत भीड़ की बेतरतीब आदतों के बीच शांतचित्त होकर अपने वैभवशाली इतिहास को संजोए हैं। अपने अंदर कई ऐसी कहानियों को छिपाए जो दिल्ली के बनने-बिगड़ने, संवरने से जुड़ी है। इन कहानियों से दिल्लीवासियों को रूबरू कराने की योजना बनाई है, दिल्ली अभिलेखागार विभाग ने। विभाग ने एक चरणबद्ध योजना बनाई है। जिसके तहत ऐसी ऐतिहासिक इमारतों को चुना जाएगा जिसमें वर्तमान में सरकारी आफिस या फिर स्कूल, कालेज हैं। ऐसे 17 भवनों की पहचान भी की जा चुकी है। विभाग इन भवनों से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेजों को एकत्र कर रहा हैं। जिन्हें दिल्ली के विभिन्न इलाकों में प्रदर्शित किया जाएगा। इस आर्टिकल में हम इन्हीं ऐतिहासिक इमारतों से रूबरू होंगे।

प्रदर्शनी का हिस्सा बनेंगे छात्र

अभिलेखागार विभाग के अधिकारियों ने बताया कि तीन चरणों में योजना को अमली जामा पहनाया जाएगा। पहले चरण में इमारत चिन्हित करने का काम किया जा चुका है। दूसरे चरण में विभिन्न इलाकों, स्कूलों में प्रदर्शनी आयोजित कर इनके बारे में जानकारी लोगों से साझा की जाएगी। जबकि तीसरे चरण में इस पर कॉफी टेबल बुक भी लांच किया जाएगा।

मैटकॉफ हाउस

19वीं सदी के शुरूआत में मुगलों के समानांतर सत्ता की चाह में मैटकाफ परिवार ने मैटकाफ हाउस का निर्माण करवाया। इतना ही नहीं यहां से दिल्ली के एक बड़े, उच्च कुलीन तबके को प्रभावित किया गया। हाउस इसलिए भी अंग्रेजों को पसंद आता था क्यों कि यहां एक विशाल लाइब्रेरी और नेपोलियन से जुड़ा एक विस्मरणीय कलेक्शन भी था। 1857 में जब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगी तो इस हाउस पर विद्रोहियों ने धावा बोल दिया और सबकुछ तहस नहस कर दिया। आजादी के बाद मकान का उपयोग सिविल सेवा अभ्यर्थियों को ट्रेनिंग देने के लिए प्रयोग किया जाने लगा। वर्तमान में इसमें सरकारी आफिस है। इसके डिजाइन के साथ छेड़छाड़ नहीं की है। अलबत्ता सफेदी की एक परत जरुर चढ़ा दी है।

टाउन हाल

इतिहासकार आरवी स्मिथ कहते हैं कि वर्तमान में जिस जगह टाउन हाल है वहां शाहजहां की बड़ी बेटी जहांआरा ने 1600 ईसवी में बाग बनवाया था। इसी बाग के हिस्से पर जहांआरा ने एक सराय भी बनवाई। 19वीं सदी में ब्रिटिश शासकों ने इसे दोबारा री-डिजाइन किया और जहांआरा बाग को कंपनी बाग नाम दिया। पार्क का जो हिस्सा बचा था उसका नाम विक्टोरिया के नाम पर क्वीन गार्डन रख दिया गया था। 1857 में इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया गया। जिसके बाद 1860 में लारेंस इंस्टीटयूट नाम से टाउन हाल बना था। यह पहली बिल्डिंग थी जिसे नगर निगम ने हेरिटेज बिल्डिंग श्रेणी में पंजीकृत किया था। बकौल स्मिथ उस समय अंग्रेज चांदनी चौक में ही रहते थे। शासन संबंधी सभी निर्णय लारेंस पुस्तकाल में लिए जाते थे। सन 1912 दिसंबर में किंग्स वे कैंप में लगने वाले दिल्ली दरबार की सभी तैयारी यहीं से की गई थी। रात भर बैठकों का दौर चलता था। अंग्रेज अफसर घोड़े, बग्गी से यहां से किंग्सवे कैंप जाते थे। वर्तमान में इस भवन में नगर निगम का आफिस हैं एवं इसके पुनरुद्धार की योजना है।

दारा शिकोह लाइब्रेरी

1636 में बादशाह शाहजहां के सबसे बड़े बेटे दारा शिकोह ने इस लाइब्रेरी का निर्माण कराया था। यहां वो घंटों गुजारा करते थे। बाद में यह पंजाब के मुगल वायसराय का आवास बना। उसके बाद प्रथम ब्रिटिश रेजिडेंट डेविड ओटलोनी ने भी इसे अपना आवास बनाया। बाद में यहां दिल्ली कॉलेज स्थानांतरित किया गया फिर जिला स्कूल और फिर यहां नगर निगम बोर्ड का स्कूल चला। इस समय इस इमारत का अधिकतर भाग खाली है और एक भाग में दिल्ली सरकार के पुरातत्व विभाग का दफ्तर भी है। यहां करीब दो हजार साल पुराने टेराकोटा के बर्तन व मूर्तियां भी हैं।

वायस रीगल हाउस

रायसीना हिल्स पर स्थित राष्ट्रपति भवन लोकतांत्रिक भारत के हर ऐतिहासिक क्षण का गवाह रहा है। आजादी से पूर्व इसे वायसराय रीगल हाउस के नाम से जाना जाता था। लेकिन 26 जनवरी 1950 को सुबह सवा दस बजे जब भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने यहां कदम रखा तो उसके बाद ही इसे राष्ट्रपति भवन के रूप में जाना जाने लगा। रायसीना हिल्सस पर बना यह भवन भारतीय एवं ब्रिटिश वास्तुकला का नायाब नमूना है।

सेंट स्टीफंस कालेज

सेंट स्टीफंस कॉलेज की स्थापना 1 फरवरी 1881 को हुई थी। सेंट स्टीफन दिल्ली का सबसे पुराना कॉलेज है। शुरुआत में यह कलकत्ता यूनिवर्सिटी से एफिलिएटिड था एवं बाद में पंजाब यूनिवर्सिटी से जुड़ा। सेंट स्टीफंस कॉलेज की शुरुआत चांदनी चौक मे किनारी बाजार के पास एक छोटे से घर में हुई। शुरू में इसमें सिर्फ 5 छात्र और तीन फैकल्टी मेंबर थे। 1891 में यह कॉलेज दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की इमारत में शिफ्ट हो गया. 1922 में दिल्ली यूनिवर्सिटी की स्थापना के बाद यह इसके तीन मूल कॉलेजों में से एक बन गया. 1941 में यह कॉलेज यूनिवर्सिटी एन्क्लेव में अपनी वर्तमान इमारत में शिफ्ट कर दिया गया।

भगीरथ पैलेस

विलियम डेलरिंपल अपनी पुस्तक द लास्ट मुगल के मुताबिक भगीरथ पैलेस बेगम समरू का आशियाना था। बेगम समरू पहले एक नर्तकी थी जो बाद में रानी बन गई। वो जर्मन लड़ाके वाल्टर रेनहार्ट की पत्नी थी। रेनहार्ट ने 1747 में फ्रांसिसी सेना में रहते हुए अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ा था। बाद में रेनहार्ट ने अपनी वफादारी मुगलों के नाम कर दी थी। समरू कश्मीरी थी, जिनका असली नाम फरजाना जेबुन्निसा था। रेनहार्ट से उनका प्रेम महज 15 साल की उम्र में हुआ था। रणनीति बनाने में वो किस कदर माहिर थी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दो बार मुगलों को उन्होंने परेशानियों से उबारा था। मुगल शासक शाह आलम उन्हें बेटी की तरह मानते थे। शाह आलम के पुत्र अकबर शाह ने चांदनी चौक का बाग बेगम समरू को भेंट किया था। यहीं पर भगीरथ पैलेस का निर्माण हुआ। भगीरथ पैलेस के नाम से मशहूर इस भवन में अब स्टेट बैंक आफ इंडिया का आफिस है।

दिल्ली विधानसभा

इतिहास में इस बात का उल्लेख है कि वर्तमान में दिल्ली विधानसभा के रूप में इस्तेमाल की जा रही इमारत को स्वाधीनता संग्राम के अंतिम दिनों में अंग्रेजों ने अदालत का रूप दे दिया था। ये 1926-27 से 1947 तक का दौर था। उस समय दिल्ली विधानसभा की प्रमुख इमारत के पीछे की तरफ फांसी घर बना हुआ था, जहां पर क्रांतिकारियों को फांसी दी जाती थी। जिन स्वतंत्रता सेनानियों को लाल किले में बंदी बनाकर रखा जाता था उन्हें इसी गोपनीय सुरंग से दिल्ली विधानसभा (उस समय के ब्रिटिश अदालत) लाया जाता था। विधानसभा के मुख्य इमारत के पीछे एक फांसी लगाने वाला कमरा हुआ करता था जहां स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी पर चढ़ा दिया जाता था। मार्च महीने में मिली एक गुप्त सुरंग भी इसकी पुष्टि करती है। सुरंग की लंबाई 7 किलोमीटर है, जो लाल किले तक जाती है। विधानसभा भवन की जिस इमारत में सत्र चलता है यह सुरंग उसी के नीचे है। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजों के जमाने की इस सुरंग के जरिए लाल किले से कैदियों को दिल्ली विधानसभा लाया जाता था। जहां उनकी सुनवाई होती थी।

इन भवनों के दस्तावेजों की भी लगेगी प्रदर्शनी

-एलजी आफिस

-लुडलो कैसल

-सब रजिस्ट्रार आफिस, कश्मीरी गेट

-सीपीओ, कश्मीरी गेट।

-लाला हरदयाल लाइब्रेरी।

-विक्टोरिया जनाना अस्पताल (कस्तूरबा अस्पताल)

-सेंट स्टीफंस अस्पताल।

-पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन।

-लेडी इरविन अस्पताल।

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