दिल्ली के संगीत इतिहास को जानने और समझने के लिए उस्ताद चांदखान संगीत समारोह सबसे बेहतरीन अवसर होता है। शायद यही वजह है कि दर्शक इसका बेसब्री से इंतजार करते हैं। यह समारोह गुरू शिष्य परंपरा पर आधारित होता है। जिसमें वरिष्ठ शास्त्रीय संगीत के पुरोधाओं के साथ उनके शिष्य या फिर पुत्र प्रस्तुति देते हैं। 

धर्मपुरा में मंदिर स्थापना की कहानी
कुंवर श्याम संगीत जगत के शिरोमणि थे। इनका पुरानी दिल्ली से आज भी जुड़ाव परिलक्षित होता है। समारोह में उन्हें श्रद्धांजलि दी जाएगी एवं इसी बहाने इतिहास से रूबरू कराया जाएगा। दरअसल, गोस्वामी श्री लाल को संगीत जगत कुंवर श्याम के नाम से जानता है। उनका सफर पुरानी दिल्ली के धर्मपुरा से शुरू हुआ। मोहन शर्मा जो कुंवर श्याम के दत्तक पुत्र के बेटे हैं ने लिखा है कि धर्मपुरा के बहुत से लोग खासकर रोहतगी एवं तोपखाने वाले वंश के लोग वृंदावन के गोस्वामी माधव के मंत्र शिष्य थे। उनसे कंठी और गुरू मंत्र की दीक्षा लेकर किशोरी एवं किशोरी रमण युगल कृष्ण की भक्ति में लीन था। उन्हें अपने गुरू का सानिध्य एवं दर्शन करने में अत्यंत कठिनाई का सामना करना पड़ता था। जबकि इनके गुरू श्री माधव गोस्वामी वृंदावन छोडऩा नहीं चाहते थे। इस समस्या के हल के लिए धर्मपुरा में एक ऐसा स्थान ढूंढा गया, जहां मंदिर बना गोस्वामी जी के आराध्य देव की प्रतिमा को स्थापित किया जा सके। इस प्रकार गुरूदेव को वृंदावन से दिल्ली लाया जा सके। सन 1890 में मंदिर की स्थापना की गई। धर्मपुरा में रतन लाल से उनकी बैठक खरीद, किशारी रमण का मंदिर बनवाया गया। 

आज भी होता है उत्सव 
ऐसा कहा जाता है कि सवा छह सौ साल पहले कुंवर श्याम की परंपरा का आरंभ हुआ। नारायण मिश्र नाम के एक संत जो अपने मूल स्थान मुल्तान से भारत यात्रा पर निकले। इन मिश्र जी के वशंज ही बाद में कुंवर श्याम की परंपरा के वाहक बने। नारायण मिश्र भक्ति काल के प्रसिद्ध व्यक्ति रहे। भक्तमाल, भक्ति साहित्य के इतिहास का प्रधान ग्रंथ माना गया है। संत नाभादास के इस ग्रंथ में पौराणिक काल के भक्तों से प्रारंभ कर के मध्य काल तक के संतों के चरित्र विभिन्न छंद में रचित किया गया है। माधव गोस्वामी ने अपने रचनाओं के संग्रह के प्रारंभ में भी मिश्र नारायण की वंदना की है। नारायण अपनी यात्राओं के प्रसंग में बद्री आश्रम पहुंचे। यहां जोशी मठ में उन्होंने काफी समय साधना की। ऐसा माना जाता है कि यहां उन्हें भगवान नृसिंह का साक्षात्कार हुआ था। इस मान्यता की इस बात से पुष्टि मिलती है कि राधा कृष्ण के किशोरी रमण स्वरूप की उपासना करने वाले इस वंश में भगवान नृसिंह की उपासना आवश्यक अंग बन गई। आज भी कुंवर श्याम के वंश की एक शाखा कटरा नील में लाडली जी के मंदिर, गली घंटेश्वर के बड़ा मंदिर में नृसिंह जी के अवतार दिवस पर बड़ी धूम धाम से नृसिंह लीला का आयोजन करती है। समारोह के आयोजकों ने बताया कि कुंवर श्याम को जानना मतलब पुरानी दिल्ली के मंदिरों एवं धार्मिक क्रियाकलापों को बारीकी से जानना है। जो युवाओं के लिए काफी लाभकारी होगा। 

गुरू-शिष्य परंपरा 
संगीत के ही एक प्रकार ड्योढ़ी संगीत में, गर्भगृह की ओर मुख करके, आंगन के पास यानि ड्योढ़ी में कोई संगीतकार, पदगायन करता था और उसके साथ तानपूरे और पखावज/तबले के साथ दूसरे संगीतकार संगत करते थे। कुंवर श्याम जी के घराने के संगीत में जो ध्रुपद गाए जाते थे वो मुख्य रूप से इसी शैली में होते थे। इसी गुरू-शिष्य परंपरा का निर्वाह करते हुए समारोह में इस बार गुरू अपने शिष्य के साथ प्रस्तुति देंगे। सुरसागर सोसायटी दिल्ली घराना द्वारा आयोजित समारोह में युवा कलाकारों को भी तरजीह दी जा रही है। पंडित बिरजू महाराज अपने बेटे के साथ प्रस्तुति देंगे। बिरजू महाराज बैठक का भाव प्रस्तुत करेंगे जिसमें कथक की प्रस्तुुति दीपक महाराज की होगी। मोहन वीणा का वादन पदम भूषण पंडित विश्व मिहान भट्ट का होगा एवं इनका साथ देंगे सलिल भट्ट। उस्ताद इकबाल अहमद खान का वोकल होग, जिसमें उनका साथ देंगे विवेक कुमार प्रजापति एवं सपना रैना कचरू देंगी। वायलिन वादन पंडित अतुल कुमार उपाध्याय का होगा जिसमें उनका साथ देंगे तेज उपाध्याय। दिल्ली घराने के इमरान का गायन भी होगा। इमरान, कुंवर श्याम की ही कई रचनाओं का गायन करेंगे। जबकि दिल्ली घराने के ही अदनान खान सितार बजाएंगे। 
Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here