आज दोनों परिवार की युवा पीढ़ी अतीत की दोस्ती और खटास से कहीं आगे निकली

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

दोस्तों, आज के पोस्ट में हम अमिताभ बच्चन और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा सोनिया गांधी की दोस्ती का किस्सा सुनाएंगे। अमिताभ बच्चन सोनिया गांधी से तकरीबन 4 साल बड़े हैं। दोनों ने अपने-अपने क्षेत्रों में एक लंबी और सफल पारी खेली है। अमिताभ बच्चन और गांधी परिवार ही नहीं सोनिया गांधी और अमिताभ बच्चन के बीच भी रिश्ते अनूठे रहे।

भारत में जिन दो परिवारों की दोस्ती और कालांतर में उनमें पड़ी खटास का जिक्र किया जाता है। वह गांधी और बच्चन परिवार है। हालांकि आज ही आज दोनों ही परिवारों की युवा पीढ़ियां अतीत की दोस्ती और खटास से कहीं आगे निकल चुके हैं और अपने-अपने कामों और जिम्मेदारियों में व्यस्त हैं।

फिर भी इतिहास इन दोनों परिवारों के बीच के खास रिश्ते को भुला नहीं सकता। खासकर अमिताभ बच्चन और सोनिया गांधी के बीच की दोस्ती। अमिताभ बच्चन के पिता दिवंगत डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन के मुताबिक गांधी बच्चन परिवार के बीच रिश्तों की बुनियाद इलाहाबाद में नेहरू गांधी परिवार के पुश्तैनी घर आनंद भवन में पड़ी थी।

तब सरोजिनी नायडू ने हरिवंश राय बच्चन और उनकी पत्नी तेजी बच्चन को आनंद भवन में आमंत्रित किया था। हरिवंश राय बच्चन ने इसका जिक्र अपनी आत्मकथा ‘क्या बोलूं क्या याद करूं’ में भी किया है। उन्होंने लिखा है कि यहीं पर तेजी और इंदिरा के बीच प्रगाढ़ और आजीवन मित्रता की शुरुआत हुई।

जब राजीव गांधी और संजय गांधी पढ़ने के लिए दून स्कूल और अजिताभ और अमिताभ नैनीताल गए तब बच्चन बंधुओं का गांधी भाइयों के साथ अच्छा याराना हो गया था। इनकी छुट्टियां लगभग एक ही समय पर पड़ती थी और उस दौरान यह साथ में घूमते फिरते और राष्ट्रपति भवन के स्विमिंग पूल में तैरने भी जाते। बाद में राजीव गांधी कैंब्रिज चले गए और वह जब भी वहां से लौटते तो अमिताभ से जरूर मिलते और एक दूसरे को अपने अनुभव साझा करते।

राजीव से प्यार होने के बाद जब शादी करने की बारी आई तो सोनिया गांधी 13 जनवरी साल 1968 को भारत आई, और इसके 12 दिन बाद सोनिया और राजीव के एक सादे समारोह में सगाई हो गई। लेकिन शादी में अभी वक्त था इसलिए इंदिरा नहीं चाहती थी कि वह नेहरू गांधी परिवार की भावी बहू के रूप में अभी उनके साथ रहे और तब इंदिरा के सहयोगी और विश्वासपात्र टीएन कॉल और पारिवारिक दोस्त मोहम्मद यूनुस ने सुझाव दिया कि सोनिया को शादी होने तक तेजी बच्चन के यहां रहना चाहिए और इस सुझाव पर राजीव गांधी संजय गांधी अमिताभ और अजिताभ ने तुरंत मोहर लगा दी।

अमिताभ जो अभी सुपरस्टार की श्रेणी में शामिल नहीं हुए थे भारत में सोनिया के पहले दोस्त बने। सोनिया गांधी की शादी में मेहंदी जैसी कुछ रस्में भी बच्चन परिवार के घर पर ही आयोजित की गई। हरिवंश राय बच्चन और तेजी ने गाने गाए। अमिताभ बच्चन ने भी अपने पिता द्वारा रचित कुछ हास्य गीत गुनगुनाए।

शादी के लिए सोनिया गांधी की मां पावला इटली से आई थी। लेकिन हिंदू विवाह समारोह की रस्मों में मां की भूमिका तेजी बच्चन ने निभाई। सोनिया गांधी ने साल 1985 में धर्मयुग को जो इंटरव्यू दिया वह गांधी और बच्चन परिवार के आत्मीय रिश्तों के बारे में बहुत कुछ कह जाता है।

इस इंटरव्यू में सोनिया गांधी कहती हैं कि मम्मी यानी कि इ्रदिरा ने मुझे बच्चन परिवार के साथ रहने को कहा था, ताकि मैं भारतीय रीति रिवाजों और संस्कृति को काफी करीब से देख और सीख सकूं।

मुझे उस परिवार से काफी कुछ सीखने को मिला। तेजी आंटी मेरी तीसरी मां है। मेरी पहली मां इटली में है दूसरी मां मेरी सास इंदिरा गांधी और तीसरी तेजी आंटी। अमित और बंटी यानी कि अजिता मेरे भाई हैं। यह सोनिया गांधी ने धर्मयुग मैगजीन को दी अपने इंटरव्यू में कहा था। अमिताभ के स्टार बनने के बाद राजीव उनसे मिलने अक्सर फिल्मों के सेट्स पर चले आते थे और उनके शॉर्ट्स पूरे होने का बड़े धैर्य के साथ इंतजार करते।

अमिताभ बच्चन एक इंटरव्यू में बताते हैं कि उनका स्वभाव ऐसा था कि उन्होंने कभी भी अपने नाम या पारिवारिक संपर्कों का दुरुपयोग नहीं किया। बल्कि ज्यादातर मौकों पर तो वह अपने सरनेम को इस डर से खुलासा भी नहीं करते थे कि इससे उनके और आम लोगों के बीच एक अनावश्यक दूरी पैदा हो जाएगी।

यहां यह सवाल उठता है कि दशकों के इतने करीबी संबंधों के बाद आखिर दोनों परिवारों के बीच खटास कहां से आ गई? पारिवारिक मित्र और सहयोगी इसके लिए राजनीति को दोषी ठहराते हैं। उनके मुताबिक पहला झटका तब लगा था जब राजीव गांधी ने अपनी सियासी पारी की शुरुआत की और इंदिरा गांधी के निधन के बाद अमिताभ बच्चन से मदद करने का आग्रह किया। हालांकि आगाज दोनों ने ही शानदार किया था। अमिताभ ने इलाहाबाद से दिग्गज राजनेता हेमावती नंदन बहुगुणा को हराया था और राजीव कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत के नायक बने थे।

लेकिन इसके बाद से राजीव बोफोर्स जैसे विवादों में उलझते चले गए और अमिताभ का नाम भी कई मामलों में आने लगा। आरोप प्रत्यारोप चारित्रिक हनन के प्रयास और मानहानि के मुकदमों से अमिताभ इतने तंग आ गए कि उन्होंने राजनीति से तौबा करने का फैसला कर लिया। राजीव और सोनिया नहीं चाहते थे कि अमिताभ इस मौके पर राजनीति छोड़ दे।

मगर अमिताभ अपने फैसले पर अड़े रहे। वैसे अमिताभ के राजनीति छोड़ने के बाद भी दोनों परिवारों के बीच संबंधों में पर्याप्त आत्मीयता बनी रही। राहुल और प्रियंका अमिताभ को मामा कहा करते थे। साल 1991 में गांधी की हत्या के समय भी अमिताभ उन कुछ चुनिंदा पारिवारिक मित्रों में शामिल थे जिन पर हर बड़े फैसले के लिए सोनिया और उनके बच्चों ने भरोसा किया।

कुल मिलाकर 1997 तक सोनिया और अमिताभ के रिश्ते पटरी पर रहे लेकिन इसी साल के अंत में यानी दिसंबर 1997 में गांधी परिवार ने एक बड़ा फैसला लिया कि सोनिया क्रिसमस के आसपास राजनीति में शामिल होने की घोषणा करेंगी ताकि वह आगामी आम चुनावों में कांग्रेस के लिए प्रचार कर सके।

माना जाता है कि इसी मोड़ पर सोनिया की अमिताभ बच्चन से अनबन हुई थी और इसने अंततः दोनों परिवारों के बीच के रिश्ते पर हमेशा के लिए मिट्टी डाल दी। दरअसल अमिताभ सोनिया के राजनीति में उतरने के सख्त खिलाफ थे। उनका मानना था कि कांग्रेस के नेता गिद्धों की तरह हैं जो केवल अपने राजनीतिक स्वार्थों की खातिर नेहरू गांधी परिवार की आम लोगों में बैठी एक जो प्रतिष्ठा है उसको भुनाना चाहते हैं।

सोनिया गांधी के लिए इस रिश्ते का टूटना विशेष रूप से पीड़ादायक रहा, क्योंकि उनका इसके लिए इसका मतलब यह भी था कि उन्होंने भारत में बनाए अपने पहले दोस्त को खो दिया था। हालांकि दोनों परिवारों व उनके चाहने वालों के लिए सुकून की बात यह रही कि अमिताभ और सोनिया दोनों ने ही उतनी सौम्यता बनाए रखी कि एक दूसरे के खिलाफ कभी कोई सीधी टिप्पणी नहीं की या कोई भी अनर्गल आरोप प्रत्यारोप नहीं लगाए।

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