निजामुद्दीन (nizamuddin) क्षेत्र के उत्तर- पश्चिमी कोने में फिरोजशाह तुगलक के वजीरे आजम खाने जहां तिलंगानी का मकबरा (Tomb of Tilangani) है। यह मकबरा वास्तुकला के हिसाब से खास है क्योंकि यह दिल्ली का पहला मकबरा है जो अष्टभुजाकार आकार में है। इसी वास्तुकला शैली के आधार पर बाद में मुगलों ने ताजमहल और सफदरजंग के मकबरे का निर्माण किया। इस मकबरे में एक अष्टभुजाकार कक्ष है जो एक बरामदे से घिरा हुआ है और इसकी गुंबद ढकी हुई है। आठों तरफ में तीन तीन मेहराबी दरवाजे हैं। इसकी खूबसूरती इसके गुंबद के डिजाइन है क्योंकि एक मुख्य गुंबद के साथ साथ सभी कोनों में छोटे छोटे गुंबद भी हैं।

वास्तुकार राजीव वाजपेयी ने बताया कि दिल्ली में इस तरह के मकबरे की शुरुआत इसी मकबरे के साथ हुई थी इसलिए यह अपने आप में खास स्मारक है।

सन 1351 -88 में निर्मित इस ऐतिहासिक स्मारक में पहली बार आठ पिलर वाले भवन के निर्माण की शुरुआत हुई। गुंबद पर डिजाइन भी बेहद बारीक होने के साथ साथ मजबूत भी। आज से करीब साढ़े छह सौ साल पहले इस तरह के निर्माण को डिजाइन करने वाले ने गणित का भी इस्तेमाल किया है। इसकी बेमिसाल खूबसूरत शैली को देखते हुए मुबारक शाह सैयद ने सन 1435 में मकबरा बनवाया, फिर सिकंदर लोदी ने सन 1445 में मकबरा बनवाया, सासाराम में शेर शाह सूरी ने भी इसी डिजाइन पर मकबरा का निर्माण करवाया। फिरोजशाह तुगलक के वजीरे आजम खाने जहां तिलंगानी ने सात मस्जिद भी बनवाए थे।

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