इस गीत में कितना दर्द भरा है-
अपने बाप की दुलारी तू भैया की प्यारी रे
अपने भैया की दुलारी कलेवा नहीं पारो रे
द्वार से आए वीरन भैया अंगना जूं ढाढ़े बहना रे
बहनी भीतर से लाओ चिरौंजी पसर ले चाबोरे
ऐसी दुलारी बहनिया मैं कितो न देखूं रे
बहनी मोरी बहनी ओढ़े ना रंगबिरंगी चुनरिया हम पर लटवाए रे
इतना सुन कर ननद यारानी झर झर करें भर-भर करें
जुग जुग जियो मोरा बरना जिसकी हम दुलारी बहनिया रे
बधावा में पायो रे सब कुछ मैं पायो रे
शादी-ब्याह के गीतों में यह गीत बहुत गाया जाता था–
पाया री मैंने राम मनाया
बनड़ा रानी का जाया
लाया री लंका देस का सोना
उचल देस का रूपा
हैदराबाद के मोती
गुजरात की चुनरी
मुलतान के हीरे
आगरे के कुंदन
मेरठ के जड़े
दिल्ली देस का सुनहरा
हरियाली को टीका जड़ाया री
सुसर ने प्यारी को पहनाया री
पायारी मैंने राम मनापा
बनड़ा रानी का जाया
और नई-नवेली दुलहन का अपने सैयाँ के साथ मदभरे जीवन का यह चित्ताकर्षक गीत-
दिल्ली शहर से सोना मंगाया नथिया गढ़ा दे मेरे सैयां
देखो मेरी गुइयां
चोर चोर कहके पकड़ा मैंने सैयां हाथ जोड़ पड़े मेरे पैयां
देखो मेरी गुइयां
काशी शहर से साटन मंगाई चोली सिला दे मेरे सैयां
देखो मेरी गुइयां
चोली पहन हम सोवें बीच महला चोली टटोलन लगे सैयां
देखो मेरी गुइयां
चोर चोर कहके पकड़ा मैंने सैयाँ हाथ जोड़ पड़े मेरे सैयां
देखो मेरी गुइयां
मंढे के अवसर पर यह गीत जरूर गाया जाता था-
हरे हरे बांस कटा मोरे बाबुल
नीका मंढा छु आओ रे
पर्वत बांस मंगा मोरे बाबुल
पांव मंढा छु आओ रे
जैसी लाडली बेटी रे बाबुल
वैसा ही काज रचाओ रे
मढे ऊपर कलस विराजे
देखे राजा राव रे
भाई को दीन्ही ऊँची अटरिया
हमको दीन्हा विदेस रे
ले बाबुल घर आपना
हम चले पिया के देस
थारी रे बेटी म्हारे महलों की रानी
तुम साहब सरदार रे…..
विदाई के समय यह रुलाई भरा गीत गाया जाता था-
बैरन को दीन्ही बाबुल ऊंची रे अटरिया
हमको भाया विदेस रे
हम तोरे बाबुल सावन की चिड़ियां चुगे उड़ जाएं रे
देहलियां पर्वत भई बावुल आंगन भया विदेस रे
ले बाबुल घर आपना हम चले पिया के देस रे
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