शिक्षा में मूल्यों के समावेश का आधार बनेगी राष्ट्रीय शिक्षा नीति- प्रो० वासुदेव देवनानी
भारतीय शिक्षण मंडल के अभ्यास वर्ग में शिक्षा में मूल्यों के समावेश पर विमर्श
शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्स्थापित करने के लिए शिक्षकों को विद्वता और विनम्रता की प्रतिमूर्ति बनना होगा- बी.आर. शंकरानंद
दी यंगिस्तान, जयपुर/नई दिल्ली
राजस्थान विश्विद्यालय जयपुर में भारतीय शिक्षण मंडल का अखिल भारतीय अभ्यास वर्ग 23 दिसम्बर से 25 दिसम्बर तक आयोजित किया गया। अभ्यास वर्ग में देश के विभिन्न क्षेत्रों से 70 से अधिक भारतीय शिक्षण मंडल के विद्वत जनों ने सहभागिता की। अभ्यास वर्ग में उद्धाटन व समापन सत्र के अतिरिक्त 12 सत्रों में 18 से अधिक घंटे तक भारतीय शिक्षा प्रणाली के उन्नयन और उसे भारतीय समाज के अनुकूल बनाने हेतु भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय अधिकारियों ने चिंतन- मनन किया।
अभ्यास वर्ग के उद्धघाटन सत्र के मुख्य अतिथि राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष प्रो. वासुदेव देवनानी, मुख्य वक्ता भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री मा. श्री शंकरानंद जी, विशिष्ट अतिथि राजस्थान विश्वविद्यालय की कुलगुरु प्रो. अल्पना कटेजा व भारतीय शिक्षण मंडल जयपुर प्रान्त के अध्यक्ष प्रो. विजय वीर सिंह थे।
अभ्यास वर्ग के उद्धाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रमुख शिक्षाविद एवं राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष प्रो. वासुदेव देवनानी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को उसके मौलिक स्वरूप में धरातल में उतारने एवं इसे विश्व स्तरीय पहचान दिलाने की बात कही । उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति कोई नयी नहीं है बल्कि शिक्षा में जो भारतीय मूल्यों का अभाव है उसको नयी नीति के माध्यम से शामिल करना है । शिक्षा को केवल नौकरी या व्यवसाय करने के लिए नहीं बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि के लिए उपयोगी बनाना है । युवाओं को नैतिकता एवं भारतीय मूल्यों का ज्ञान कराना है, तभी जाकर हम शिक्षा के वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे ।
विशिष्ट अतिथि प्रो. अल्पना कटेजा ने शिक्षा में श्रीमद्भगवद्गीता के योगदान पर चर्चा करते हुए कहा कि गीता का ज्ञान जीवन के सभी क्षेत्रों में लाभदायक है, गीता हमें कर्मपथ पर आगे बढ़ने की राह दिखाती है ।
अभ्यास वर्ग के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह मा. मुकुंदा जी ने कहा कि वर्तमान परिवेश में कुशल वैचारिक योद्धा तैयार करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि अच्छे विचार से ही अच्छे व्यावहार का मार्ग प्रशस्त होता है जिससे एक आदर्श समाज का निर्माण होता है | उन्होंने कुशल संगठनकर्ता के गुणों पर भी प्रकाश डालते हुए संगठन शास्त्र पर विस्तार से चर्चा की। भारतीय शिक्षण मंडल के महामंत्री प्रो. भरत शरण सिंह द्वारा कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की ।
अभ्यास वर्ग के दौरान विख्यात शिक्षाविद श्री चाँद किरण सालूजा जी, ने शिक्षा के सूत्र विषय पर व्याख्यान देते हुए सभी शिक्षाविदों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा के आधार पर ज्ञान को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है, पहला श्रवण आदि इंद्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान, दूसरा मनन अर्थात विश्लेषण चिंतन आदि द्वारा प्राप्त ज्ञान तथा तीसरा निदिध्यासन अर्थात व्यावहारिक प्रयोग द्वारा प्राप्त ज्ञान।
भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय उपाध्यक्ष प्रो. उमाशंकर पचौरी ने रामायण के संदर्भो को उल्लेखित करते हुए कहा कि स्वाध्याय का लक्ष्य आत्मानुभूति है।
अभ्यास वर्ग के समापन सत्र में भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री बी.आर. शंकरानंदजी ने अपने वक्तव्य में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के उन्नयन एवं कार्यान्वयन में भारतीय शिक्षण मंडल की मुख्य भूमिका है।उन्होंने कहा कि शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्स्थापित करने के लिए शिक्षकों को विद्वता और विनम्रता की प्रतिमूर्ति बनना होगा। कार्यकर्ताओं को अपने कार्यस्थल, अपने परिवार और अपने संगठन को समान रूप से समय देना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा व्यक्ति में स्वतंत्र रूप से सोचने की क्षमता विकसित करती है, गुरुत्व एक व्यवस्था नहीं बल्कि यह एक अवस्था है। कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय शिक्षण मंडल का संगठनात्मक स्वरूप मंडल के माध्यम से ही मजबूत बनाया जा सकता है। उन्होंने भारतीय शिक्षण मंडल के कार्यकर्ताओं को आगामी वर्ष में 1000 विद्यालयों के शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए आनंदशालाये आयोजित करने व देश के सभी 739 जिलों में भारतीय शिक्षण मंडल की कार्यकारिणी तथा देश मे सभी विश्विद्यालयों में विश्विविद्यालयीन इकाई घोषित करने का लक्ष्य दिया।
उन्होंने कहा कि भारतीय शिक्षण मंडल के कार्यकर्ताओं को सक्रिय व सकारात्मक रखने का दायित्व अखिल भारतीय अधिकारियों का प्रमुख कार्य है।