ब्रितानिया गर्वनर थॉमस मेटकाफ अक्सर खत लिखा करता था। अपने परिजनों को लिखे जाने वाले खतों में अपना जिक्र एक अंग्रेज मुफस्सिल साहब की तरह करता था, लेकिन दरअसल उसकी सोच कुछ और ऊंची थी। और वह अपना मुकाबला जफर के दरबार के साथ करना चाहता था, और थॉमस मेटकाफ नस्ल को मुगलों की नस्ल के मुकाबले मानना चाहता था।
उसका शानदार न्यू क्लासिकी तर्ज का बंगला थॉमस मेटकाफ हाउस जो ‘जहांनुमा’ के नाम से भी जाना जाता था, यमुना के किनारे उत्तर में था, लाल किले से कुछ ही आगे, जिसे वह लाल किले की टक्कर का समझता था। अगर लाल किले में संगमरमर के गुंबद और फूलों की खुश्बू से महकते बाग, बहते पानी की नहरें और उनमें तैरते पवेलियन थे, तो थॉमस मेटकाफ हाउस में भी संगमरमर के स्तंभ, अंग्रेज़ी फूलों से लदे ख़ुश्बूदार बाग, स्विमिंग पूल, सर्व के पेड़ों के दर्मियान रास्ते और संतरों के पेड़ों के झुरमुट थे।
इसके अलावा एक लाइब्रेरी जिसमें पच्चीस हजार किताबें थीं, बेहतरीन तस्वीरें और गुलाब की लकड़ी का नफीस जॉर्जियन फर्नीचर था। इसमें एक नेपोलियन गैलरी भी थी जो बोनापार्ट की यादगार चीज़ों से भरी हुई थी और जिनमें नेपोलियन की हीरे की अंगूठी और कानोवा की बनाई हुई एक पत्थर की अर्ध-मूर्ति भी शामिल थी।
यही नहीं दिल्ली के दक्षिण में थॉमस मेटकाफ ने दिलकुशा नाम का एक और बंगला बनाया था जो महरौली के एक अष्टकोण मुग़ल मकबरे के ऊपर था। यह थॉमस मेटकाफ ने बादशाह के गर्मी के ज़फर महल के मुकाबले बनवाया था और इसी तरह उसके सामने मुगल अंदाज के चार बाग थे।
थॉमस मेटकाफ के दोनों घरों के इर्द-गिर्द बहुत ज़मीन थी। उनमें दाखिल होने के लिए बहुत बड़े जॉर्जियन दरवाज़ों से गुज़रना पड़ता था। जिन पर खूबसूरत डिज़ाइन बने थे और दिलकुशा में तो एक रोशनी का मीनार भी था, एक छोटा किला, एक कबूतरखाना, एक कश्ती चलाने की नहर और एक भूलभुलैया भी शामिल थीं।