बढ़ते आयात के चलते इस्पात की मांग आयी कमी, घरेलू उद्योग पर बढ़ा दबाव
सरकार के नीतिगत प्रयास और इस्पात क्षेत्र को संरक्षण देने के लिए उठाए गए कदम।
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
भारत के आर्थिक विकास में इस्पात उद्योग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, इस समय इस्पात उद्योग आयात में वृद्धि के कारण बढ़ती अनबिकी इन्वेंट्री (वह सामान या उत्पाद जिसे कोई कंपनी या कारोबार बनाता है या खरीदता है, लेकिन उसे बेच नहीं पाता) की समस्या से जूझ रहा है। इस चुनौती से निपटने के लिए सरकार ने विभिन्न नीतिगत पहल की हैं, जिसमें ड्यूटी संरचना में बदलाव, एंटी-डंपिंग शुल्क और घरेलू उत्पादकों को बढ़ावा देने के उपाय शामिल हैं।
अनबिकी इन्वेंट्री में बढ़ोतरी
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में इस्पात कंपनियों के पास तैयार इस्पात का स्टॉक 2020 से लगातार घटने के बाद 2024 में तेजी से बढ़ा है। यह आंकड़े इस प्रकार हैं:
तिथि | तैयार इस्पात स्टॉक (मिलियन टन में) |
31 मार्च 2020 | 13.69 |
31 मार्च 2021 | 8.97 |
31 मार्च 2022 | 7.99 |
31 मार्च 2023 | 10.59 |
31 मार्च 2024 | 14.29 |
30 नवंबर 2024* | 14.23 |
(*आंकड़े अस्थायी हैं। स्रोत: ज्वाइंट प्लांट कमिटी)
2024 के आंकड़ों से साफ है कि आयात में बढ़ोतरी और मांग में सुस्ती ने घरेलू इस्पात उत्पादकों को चुनौती दी है।
घरेलू इस्पात उद्योग को समर्थन देने के उपाय
भारत सरकार ने घरेलू इस्पात उद्योग को मजबूती देने और अनबिकी इन्वेंट्री की समस्या से निपटने के लिए कई अहम कदम उठाए हैं:
- आयात शुल्क संरचना
- इस्पात उत्पादों पर बेसिक कस्टम ड्यूटी 5% से 15% के बीच है।
- अमेरिका से आयातित इस्पात उत्पादों पर 20% से 27.5% तक कस्टम ड्यूटी लगती है।
- एंटी-डंपिंग ड्यूटी
- चीन से आयातित सीमलेस ट्यूब, पाइप और अन्य इस्पात उत्पादों पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी लागू है।
- कोरिया, जापान और सिंगापुर से आयातित इलेक्ट्रो-गैल्वनाइज्ड स्टील पर भी यह शुल्क लागू है।
- काउंटरवेलिंग ड्यूटी (CVD)
- चीन और वियतनाम से आयातित वेल्डेड स्टेनलेस स्टील पाइप्स और ट्यूब्स पर काउंटरवेलिंग ड्यूटी लगाई गई है।
वित्तीय बजट 2024-25 के तहत सुधार
- फेरो-निकल और मोलिब्डेनम अयस्कों पर बेसिक कस्टम ड्यूटी घटाकर शून्य किया गया।
- लौह स्क्रैप पर कस्टम ड्यूटी छूट 31 मार्च 2026 तक बढ़ाई गई।
- कोल्ड रोल्ड ग्रेन ओरिएंटेड (CRGO) इस्पात के निर्माण के लिए कच्चे माल पर शुल्क छूट बढ़ाई गई।
अन्य कदम
- डोमेस्टिकली मैन्युफैक्चर्ड आयरन एंड स्टील प्रोडक्ट्स (DMI&SP) नीति: ‘मेड इन इंडिया’ स्टील को सरकारी खरीद में प्राथमिकता।
- पीएलआई योजना: विशेष इस्पात के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 27,106 करोड़ रुपये का पूंजी निवेश।
- स्टील इंपोर्ट मॉनिटरिंग सिस्टम (SIMS) 2.0: आयात की प्रभावी निगरानी।
- स्टील स्क्रैप रीसाइक्लिंग नीति: घरेलू स्क्रैप की उपलब्धता बढ़ाने पर ध्यान।
- गुणवत्ता नियंत्रण आदेश: मानक से कम गुणवत्ता वाले इस्पात उत्पादों के आयात और घरेलू बाजार में बिक्री पर प्रतिबंध।
विशेषज्ञों की राय
स्टील एंड हैवी इंडस्ट्रीज मंत्री श्री एच.डी. कुमारस्वामी ने राज्यसभा में बताया कि बढ़ते आयात और घरेलू मांग में कमी के कारण इस्पात क्षेत्र दबाव में है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार के नीतिगत प्रयास घरेलू उत्पादकों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने और अनबिकी इन्वेंट्री की समस्या को हल करने में सहायक होंगे।
बढ़ते आयात और घरेलू मांग में कमी ने भारतीय इस्पात उद्योग के लिए गंभीर चुनौती खड़ी की है। सरकार के प्रयास, जैसे पीएलआई योजना, कस्टम ड्यूटी में बदलाव और गुणवत्ता नियंत्रण उपाय, इस क्षेत्र को पुनर्जीवित करने में सहायक हो सकते हैं।