दिल्ली (Delhi) वाले वैसे हर मौके को खास तरह से मनाने के लिए जाने जाते हैं। मौका अगर शादी ब्याह जैसा खास हो तो फिर जश्न के लिए उत्साह भी सातवें आसमान पर होता है। शादी के आयोजनों में ढोल-ताशे, नाच -गाने, गहने- परिधान, आयोजन स्थल से लेकर जायकों में भी मुगलकालीन ठाठ बाठ की तमन्ना जितनी दुल्हा-दुल्हन को होती है उतनी है शादी में शामिल होने वाले मेहमानों की भी रहती है। हर कोई बस इस खास लम्हे को यादगार बना लेना चाहता है। शादियों का मौसम आ गया है ऐसे में इसे लेकर दिल्लीवाले भी तैयार हैं।
दिल्ली छह की गलियां इन दिनों शादी ब्याह की खरीदारी करने वालों से गुलजार है। खासकर लालकिले के सामने फूल बाजार, जहां शहर भर की शादियों के जयमाल के लिए डिजाइनर माला तैयार की जाती हैं। शहर भर के फूल वाले जयमाल के लिए माला यही से ले जाते हैं। तो हुआ न यह स्थान खास। मेहंदी, संगीत, मंडप, रिसेप्शन को खास बनाने के लिए फूलों की साज सज्जा के लिए भी यहीं से फूल मंगवाए जाते हैं। सैनी फ्लावर वाले सोनू बताते हैं कि इन दिनों ऑर्किड और मोगरे के फूलों के गहने भी बनवाए जा रहे हैं। इसलिए यह बाजार दिल्ली में हुई शादियों के लिए काफी अहम है। इसके बाद बैंड बाजे वाले भी यहां के काफी डिमांड में रहते हैं। जैन मंदिर के सामने कई साल पुराने बैंड वाले मिल जाते हैं जो पुरानी दिल्ली की शादियों में रौनक लगाते हैं। निमंत्रण पत्रों के लिए चावड़ी बाजर, पगड़ी, सेहरा, कली रे, चूड़ा और दूसरे उपहारों के लिए किनारी बाजार, मुगलकालीन लुक वाले बर्तनों के लिए कूचापाती राम में इन दिनों गहमागहमी बनी है। यही से खानसामें भी बुलाए जाते हैं। अभिषेक बच्चन की शादी के लिए कुल्फी बनाने वाले यही से गए थे। कई हाई प्रोफाइल शादियों में दिल्ली छह का प्रतिनिधित्व करने वाले खानसामें यहीं से जाते हैं।
घुड़चढ़ी के बिना बारात अधूरी
दिल्ली की शादियों में घुड़चढ़ी की रिवायत आज भी अहम है। इसलिए हर बारात में दुल्हा घोड़ी और बग्गी में ही लाना चाहता है। यह चाहत सिर्फ दुल्हे ही की नहीं बल्कि दुल्हन की भी होती है। दुल्हन भी बग्गी में रवाना होना चाहती है। ऐसा शायद इन दिनों फोटो शूट के लिए भी किया जा रहा है। इस परंपरा के लिए लोग आज भी काफी खर्च करते हैं। अब तो बग्गी थीम पर सजने लगी है। हीरानगर के सिंधी घोड़ी वाले के पवन सिंधी बताते हैं कि पिछले साठ साल से इस व्यवसाय में है और अब तो बग्गी को सजाने के लिए विशेष डिमांड आने लगी है। कुछ लोग सफेद फूलों से बग्गी को सजाना चाहते हैं तो कुछ लोग विदेशी फूलों से इसे सजाना चाहते हैं। कुछ हजार रुपए से लेकर लाखों रुपए में बग्गी घोड़े किराए पर दिए जा रहे हैं। लोग भी पैसा खर्च करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं।
अच्छे मैच के लिए दूरियां मायने नहीं रखती
जी टी रोड स्थित शुभ मंगलम रिश्तों की दुनिया, मैरेज ब्यूरो के संस्थापक डॉ. पीके अग्रवाल बताते हैं कि महानगर में पिछले 25 सालों में काफी बदलाव आ गया है। खासतौर पर अब वधू पक्ष काफी जागरूक हो गया है। अब लड़की भी अपनी पसंद, नापसंद बेझिझक हो कर बता रही है और अपना निर्णय सुना रही है। वर वधू के लिए दूरियां मायने नहीं रखती, वे अच्छा जीवन साथी चाहते हैं जो एक दूसरे को समझे। वे बताते हैं कि दिल्ली में रहने वाले अभिभावक अपने बच्चों की शादी आस पड़ोस में भी करने के लिए राजी हो जाते हैं ताकि उनका आना जाना बना रहे लेकिन पहले ऐसा नहीं था। खासकर वर पक्ष अपना ससुराल दूर रखना चाहते थे।
दिल्ली छह के जायकों के बिना विवाह का हर समारोह अधूरा
शादी के आयोजन को यादगार बनाने के लिए इन दिनों अंतर्राष्ट्रीय थीम का भी शगल है लेकिन शादी में शाही ठाठ बाठ लिए मुगलकालीन थीम, पृथ्वी राजचौहान वाली शानोशौकत हरदिल अजीज है। लोग अपनी शादी को उस जमाने की तरह यादगार बनाना चाहते हैं इसलिए शादी के आयोजन स्थल से लेकर केटरिंग तक सब कुछ चुनिंदा चाहते हैं। पुरानी दिल्ली का थीम भी काफी मांग में रहता है। फिर बात चाहे टेंट, पर्दे, बर्तन, या फिर जायकों की क्यों न हो, हर बात में दिल्ली वाली बात की जरूर दरकार होती है। राजौरी गार्डन स्थित वेडिंग रोज के योगेश खंटवाल बताते हैं कि दिल्ली में शादी हो या फिर दिल्ली से बाहर श्शाहजहांनाबाद की गलियों में बसे जायके और उनकी रिवायतों की झलक जरूर मिलती है।
पुरानी दिल्ली (old delhi) के जायकों में बिरयानी, चाट पकौड़े, कुल्लहड़ वाले साग, छोले चावल, गोलगप्पे, दही भल्ले, मिस्सी रोटी और मीठे में जलेबी और रबड़ी और पारंपरिक कुल्फी खासतौर पर रखी जाती है। बजट में भी इस तरह के आयोजन किए जाते हैं। मेहंदी, संगीत, मंडप और रिसेप्शन तक के सभी समारोह में दिल्ली छह की झलक जरूर होती है। इसके लिए छोटे से छोटे बैंक्वेट हॉल से लेकर फार्म हाउस तक में इंतजाम करते हैं। अब तो इंवेंट की तरह हर आयोजन की तैयारी होती है। फोटो शूट अहम रोल अदा कर रहा है।
कुछ यादगार शादियां जिसके चर्चे आज भी हैं जवां
वर्ष 1916 में हकसर की हवेली में जवाहर लाल नेहरू (jawaharlal nehru) ने कमला कौल के संग फेरे लिए थे। आज भी इस बात की चर्चा सीताराम बाजार में अकसर होती है। सन 1850 – 1900 में कई कश्मीरी पंडित पुरानी दिल्ली आए थे, जिनमें कमला नेहरू, उनकी मां राजपति कौल और उनके पिता जवाहर मल कौल भी शामिल थे। उसी दौरान यह हवेली भी बनवाई गई । 8 फरवरी 1916 में जवाहर लाल नेहरू इस हवेली में बारात लेकर आए थे। इसी हवेली में धूमधाम से शादी की गई थी। 1960 में कौल परिवार ने इस हवेली को बेच दिया जिसके बाद इसमें दुकानें खुल गई। 1983 में इंदिरा गांधी भी इस हवेली को देखने आई थी और उन्होंने यहां आधा घंटा बिताया था।
सैफीना का शाही रिसेप्शन
फिल्म अभिनेता सैफ अली खान और अभिनेत्री करीना कपूर (saif kareena marriage) की शादी भले ही मुंबई में हुई हो लेकिन उनकी शादी को लेकर गुड़गांव से लेकर दिल्ली के गलियारों में चहल पहल बनी रही। शर्मिला टेगोर के आवास 31 ऑरंगजेब रोड में सैफीना का शाही रिसेप्शन हुआ था। इसके लिए इंटीरियर शाही महल की तरह से सजाया गया था और केटरिंग भी जायकेदार थी जिसके चर्चे आज भी होते हैं।