संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स किया है घोषित

दी यंगिस्तान संवाददाता, नई दिल्ली

जामिया मिल्लिया इस्लामिया (jamia millia islamia) के डिपार्टमेंट ऑफ टूरिज्म एंड हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट (DTHM) और फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज (faculty of management studies) द्वारा संयुक्त रूप से मोटे अनाज (millets) पर कार्यशाला आयोजित की गई। इसमें जामिया के छात्र एवं शिक्षक सम्मिलित हुए। शिक्षा मंत्रालय के निर्देश पर आयोजित इस वर्कशाप में शेफ गौरव और सिद्धार्थ ने छात्रों को मोटे अनाज से एक से बढकर एक लाजवाब जायके बनाना सिखाया।

विभागाध्यक्ष डॉ सराह हुसैन ने मोटे अनाजों की खासियत बताई। कहा कि ये स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभकारी है। फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज के डीन प्रो अमीरुल हसन अंसारी ने कार्यशाला की जमकर तारीफ की। शेफ ने टिफिन रेसीपी बनाना सिखाया। जिसमें रागी ढोकला, मिलेट्स कुकी, मिलेट्स ब्रेड, कंडी कुलचा, बाजरा तिल, मिलेट्स ककलेट आदि बनाना सीखा।

मोटा अनाज (मिलेट्स) हर नागरिक की थाली का हिस्सा बने इसके लिए भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव रखा कि साल 2023 को ‘इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स’ घोषित किया जाए। इस प्रस्ताव को 70 से अधिक देशों ने समर्थन दिया और संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 5 मार्च, 2021 को घोषणा की कि 2023 को ‘इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स’ के रूप में मनाया जाएगा। भारत में इसे लेकर विस्तृत कार्ययोजना के तहत कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। मोटे अनाजों को लेकर प्रत्येक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है।

मिलेट्स यानी मोटा अनाज पौष्टिक होते हैं और सिंचाई के लिए कम पानी की खपत के अलावा अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जा सकती है। मोटा अनाज में बाजरा, ज्वार, कोदो, रागी, कांगनी, चेना, प्रोसो आदि शामिल हैं। कम पानी की खपत, कम कार्बन फुटप्रिंट और सूखे की स्थिति में भी मिलेट के उपजने की संभावना के बावजूद 60 के दशक में आई हरित क्रांति से मिलेट्स की पैदावार में कमी आई। पूर्व-हरित क्रांति युग (1965-66) के दौरान, मिलेट्स की खेती 36.90 मिलियन हेक्टेयर (हेक्टेयर) में की जाती थी। इसके विपरीत देश में 2016-17 में मिलेट्स की खेती का क्षेत्रफल घटकर 14.72 मिलियन हेक्टेयर रह गया।

वेदों में मोटे अनाज का उल्लेख

यजुर्वेद ग्रंथ में भी मिलेट्स का जिक्र मिलता है। सिंधु घाटी सभ्यता में भी इसके साक्ष्य मिले हैं। भारतीय संस्कृति इसके संरक्षण में हमेशा मददगार रही। तीज-त्योहारों ने ही मोटे अनाज को जीवित रखा। वर्तमान में 130 से अधिक देशों में उगाए जाने वाले मोटे अनाज को पूरे एशिया और अफ्रीका में आधे अरब से अधिक लोगों के लिए पारंपरिक भोजन माना जाता है। भारत सबसे बड़ा मोटे अनाज का उत्पादक है। एशिया के लिहाज से देखें तो भारत की हिस्सेदारी करीब 80 फीसद है। इसमें बाजरा एवं ज्वार हमारी मुख्य फसल है। खासकर बाजरा के उत्पादन में भारत विश्व में नंबर एक है और भारत में बाजरा उत्पादन में उत्तर प्रदेश नंबर एक है।

संस्कृति और मोटे अनाज का जुड़ाव

उत्तर भारत में ‘सकट’ पूजा के दौरान बाजरे के लड्डू बनाने का रिवाज है। मकर संक्रांति और देव उत्थान एकादशी पर तिल-गुड़ का उपयोग किया जाता है। नागालैंड के यीमचंगर नागा अगस्त माह में मिलेट की फसल कट जाने के बाद मेटूम्नीयू फेस्टिवल मनाया जाता है। विशाखापत्तनम के आदिवासी क्षेत्रों में लोग मंडुकिया (एक कम्युनिटी फेस्टिवल) मनाते हैं। बैलों को रागी की रेसिपी बनाकर खिलाई जाती है।

राजस्थान में गोवर्धन पूजा के समय ‘अन्नकूट’ मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग मिलकर ‘खड़ीबाजरा’ रेसिपी बनाते हैं और बाजरे की दावत करते हैं। ‘आखातीज त्यौहार’ में बाजरे की खिचड़ी बनाई जाती है। मकर संक्रांति पर बाजरे के दान का रिवाज है। मकर संक्रांति के दिन तिल के तेल के साथ चपाती बनाना शुभ माना जाता है। महाशिवरात्रि के दिन चौली (माइनर मिलेट) के लड्डू बनाए जाते हैं। ‘बड़पुआ’ में बाजरा, ज्वार, कॉर्न, चना, तिल, चावल, गेहूं, जौं, मोठ, मूंग जैसे 10 अनाजों को मिलाकर एक मिट्टी के बर्तन में भरा जाता है और इसे दशहरा की पूजा में इस्तेमाल किया जाता है।  “कलश पूजा” के दौरान, शुभ अनुष्ठानों को पूरा करने के लिए कलश (मिट्टी के बर्तन) के नीचे बाजरे के बीज फैलाए जाते हैं। शादी के अगले दिन एक रस्म, “कागा खेलना” की जाती है, जिसके दौरान दूल्हा और दुल्हन एक-दूसरे पर बाजरे के बीज फेंकते हैं।

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