कुलदीप नैयर अपनी किताब में ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री जी की आखिरी रात के बारे में विस्तार से लिखा है। उन्होंने लिखा कि उनकी मौत 1 बजकर 32 मिनट (ताशकन्द समय) पर हुई थी। तब भारत में रात के लगभग 2.00 बजे का समय था। अयूब को शास्त्री की मौत से दुख पहुंचा था। वे 4.00 बजे वहां पहुंच गए। थे और कुलदीप नैयर की तरफ देखकर बोले थे, “वे अमन के आदमी थे, उन्होंने भारत और पाकिस्तान में अमन कायम करने के लिए जान दे दी।” अयूब ने बाद में पाकिस्तानी पत्रकारों से बात करते हुए कहा था कि शास्त्री के साथ उनकी बहुत अच्छी पट रही थी, अगर वे जिन्दा रहते तो शायद भारत और पाकिस्तान अपने सभी मसले सुलझा लेते।

पाकिस्तान के विदेश सचिव अजीज अहमद ने भुट्टो को फोन करके उन्हें यह खबर सुनाई तो नींद में होने के कारण भुट्टो सिर्फ ‘गुजर गए शब्द सुन पाए। उन्होंने नींद की खुमारी में कहा, “दोनों में से कौन कम्बख्त गुजर गया?”

ताशकन्द से लौटने के बाद ललिता शास्त्री ने कुलदीप नैयर से पूछा कि शास्त्री का शरीर नीला क्यों पड़ गया था। मैंने कहा, “मुझे बताया गया था कि अगर शरीर पर लेप किया जाता है तो वह नीला पड़ जाता है। इसके बाद उन्होंने शास्त्री के शरीर पर ‘कुछ चीरों’ के निशानों के बारे में पूछा। मैंने कहा कि इस बारे में मुझे कुछ भी पता नहीं था, क्योंकि मैंने उनका शरीर नहीं देखा था। फिर भी, उनकी इस टिप्पणी ने मुझे चौंका दिया था कि ताशकन्द या दिल्ली में उनका पोस्टमार्टम नहीं किया गया था।

जाहिर था कि उनको और परिवार के अन्य सदस्यों को दाल में कुछ काला लग रहा था। कुछ दिनों बाद मैंने सुना कि ललिता शास्त्री प्रधानमंत्री के साथ जानेवाले उनके दोनों निजी सहयोगियों पर भड़की हुई थीं। इन दोनों ने इस वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था कि शास्त्री की मौत कुदरती नहीं थी। कामराज ने मुझे फोन करके पूछा कि शास्त्री के परिवार के पास अपनी गुजर-बसर के क्या साधन थे। मैंने कहा कि जहाँ तक मुझे मालूम था, उनके पास कोई साधन नहीं था। कामराज ने एक कानून पास करवाके दिवंगत प्रधानमंत्री की पत्नी के लिए निशुल्क आवास और खर्चे की व्यवस्था कर दी।

समय के साथ शास्त्री के परिवार का यह सन्देह और गहरा होता गया कि उन्हें जहर दिया गया था। 2 अक्टूबर, 1970 को, शास्त्री के जन्मदिन के अवसर पर, ललिता शास्त्री ने खुलेआम अपने पति की मौत की जाँच करवाने की माँग की। उनके परिवार को शायद यह बात नहीं जम रही थी कि शास्त्री का खाना उनके निजी सेवक रामनाथ की बजाय टी. एन. कौल के बावर्जी जां मुहम्मदी ने क्यों बनाया था। मुझे यह बड़ी अजीब बात लग रही थी, क्योंकि शास्त्री जब 1965 में मास्को गए थे तब भी यही जाँ मुहम्मदी उनका खाना बनाता रहा था।

अखबारों में इस तरह की खबरों को देखकर विभाजित कांग्रेस के मोरारजी देसाई वाले धड़े ने शास्त्री की मृत्यु की जाँच का समर्थन किया। अक्टूबर 1970 के आखिरी दिनों में मैंने मोरारजी भाई से पूछा था कि क्या वे सचमुच ऐसा समझते थे कि शास्त्री की मौत कुदरती नहीं थी। वे उनका जवाब था, “यह सब राजनीति है। मुझे पूरा यकीन है कि कोई गड़बड़ नहीं हुई थी वे दिल के दौरे से ही मरे थे। मैंने डॉक्टर से पता किया है और उनके सेक्रेटरी सी.पी. श्रीवास्तव से भी, जो उनके साथ ताशकन्द गए थे।”

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