यह स्थान गुरु गोविंद सिंह की याद में कायम हुआ है। जब वह यहां ठहरे थे, उसकी रिवायत इस प्रकार है कि उनका जफरनामा, जिसमें हुकूमत की गलतियों की बड़े कड़े शब्दों में आलोचना की गई थी, औरंगजेब ने तब पढ़ा, जब कि वह दक्षिण में था तो उसने गुरु जी को मुलाकात के लिए दक्षिण में आने के जिए आमंत्रित किया। यह बात शुरू ई. 1707 की है।

गुरु साहब बादशाह से मिलने रवाना हो गए। जब वह राजपूताने में बघोर मुकाम पर थे तो बादशाह की मृत्यु का समाचार उन्हें मिला । गुरु साहिब ने इस समाचार को सुनकर अपना विचार बदल दिया और वह दिल्ली चले आए। यहां वह औरंगजेब के बड़े लड़के बहादुर शाह से मिले, जो पेशावर से तख्त पर कब्जा करने के लिए लौटा ही था। बादशाह उनके व्यक्तित्व से बड़ा प्रभावित हुआ और उनसे मित्रता करनी चाही।

गुरु साहब ने उसे आशीर्वाद दिया और उसकी अपने भाई से जो लड़ाई चल रही थी, उसमें उसे सफलता मिली। फतह के बाद बादशाह और गुरु साहब दिल्ली लौट आए। गर्मी के मौसम में करीब तीन मास तक गुरु साहब दिल्ली में ठहरे और बादशाह से सुलह-सफाई की बातचीत होती रही, मगर बादशाह को फिर दक्षिण जाना पड़ा और सुलह में बाधा पड़ गई, लेकिन यह देखकर कि सुलह होनी कठिन है, गुरु साहब सितंबर 1707 ई. में दक्षिण में नांदेड़ चले गए।

गर्मियों के दिनों में गुरु साहब के ठहरने की याद में यहां बड़ा मेला होता है। यह गुरुद्वारा नई दिल्ली से छावनी को जाने वाली सड़क पर पड़ता है।

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