यह गुरुद्वारा इर्विन अस्पताल की पुश्त पर बना हुआ है। यहां गुरु गोविंद सिंह की दोनों धर्मपत्नियां- माता सुंदरी और माता साहिब कौर रहा करती थीं। माता सुंदरी गोविंद सिंह जी के बड़े लड़के जीतसिंह जी की माता थीं और माता साहिब कौर ब्रह्मचारिणी थीं। इन्हें खालसा की माता कहा जाता है। गुरु महाराज ने इन दोनों को, जब उन्होंने आनंदपुर साहब छोड़ा तो भाई मतीसिंह के साथ दिल्ली भेज दिया था। दिल्ली आकर कुछ अर्से वे मटिया महल में रहीं।
यहां ही माता सुंदरी ने एक छोटे लड़के अजीत सिंह को गोद लिया था, जो बेवफा साबित हुआ और उसे हटा दिया गया। मटिया महल आकर माता सुंदरी यहां रहने लगीं और उन्होंने जीवन के बाकी दिन यहां ही गुजारे। उनका स्वर्गवास 1747 ई. में हुआ। यह गुरुद्वारा भी नया ही बनाया गया है।
खुले मैदान में एक बहुत बड़ा चबूतरा है। 23 सीढ़ियां चढ़कर बड़ा द्वार आता है, उसमें दाखिल होकर 80 फुट 100 फुट का बड़ा दालान है। सामने चबूतरे पर ग्रंथ साहब रखे हैं। इस दालान में भी दो तरफ बालकनी है। चबूतरे के पीछे की तरफ 23 सीढ़ियां उतरकर एक तहखाना आता है, जहां एक कमरा बना हुआ है। इसमें माताजी भजन किया करती थीं।