जो इमारत वूल्जले रोड पर गोल्फ क्लब में खड़ी है, वह लाल बंगले के नाम से मशहूर है। यह पता नहीं चलता कि इसे किसने और किसलिए बनवाया था। मगर शाह आलम बादशाह की माता लाल कंवर का जब देहांत हुआ, तो उन्हें इस इमारत के एक गुंबद में दफन किया गया, तभी से यह लाल बंगला कहलाने लगा। इसके बाद उनकी बेटी बेगम जान का देहांत हुआ तो उसे इस इमारत के दूसरे गुंबद में दफन किया गया। फिर तो तैमूरिया खानदान की बहुत सी कब्रें इस इमारत में बनीं। चुनांचे मिर्जा सुलतान परवेज, मिर्जा दाराबख्त, मिर्जा दाऊद, नवाब फतहाबादी, मिर्जा बुलाकी और बहादुर शाह के कितने ही कुटुंबी यहां दफन किए गए।
दोनों गुंबद लाल पत्थर के बने हुए हैं, जिनके चारों ओर चारदीवारी है। अहाते की लंबाई 177 फुट और चौड़ाई 160 फुट है, दीवार करीब 9 फुट बुलंद है। बंगले का दरवाजा अहाते के उत्तर-पूर्वी कोने में है और उसके आगे एक घोघस बना हुआ है। दोनों गुंबद दरवाजे के पास हैं। पहला शाह आलम की माता का है, जो लाल पत्थर के साढ़े बावन फुट मुरब्बा और एक फुट ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है। यह गुंबद 30 फुट मुरब्बा है, जिसके चारों कोनों पर एक-एक कोठरी छह-छह फुट मुरब्बा है। इन कोठरियों के बीच में सैदरियां हैं, जो दो संगीन और दो दीवारदोज सुतूनों पर कायम हैं। इमारत का बीच का कमरा 12 फुट मुरब्बा है। इस कमरे में तीन कब्रें हैं और एक पश्चिमी कमरे में है।