अप्पा गंगाधर का शिवालय (1761 ई.)
यह शिवालय जलालुद्दीन के जमाने का लाल किले के नजदीक जैनियों के लाल मंदिर से मिला हुआ चांदनी चौक के दक्षिण हाथ को बना हुआ है। दिल्ली पर जब मराठों का कब्जा था, उस वक्त यह बना था। इसे सिंधिया महाराज की मुलाजमत करने वाले एक मराठा ब्राह्मण अप्पा गंगाधर ने बनवाया था। दिल्ली वालों के लिए यह एक ही प्रतिष्ठित मंदिर है। दिल्ली में यों तो हिंदुओं के सैकड़ों मंदिर हैं, मगर कोई प्राचीन मंदिर ऐसा नहीं है, जिसकी विशेषता रही हो; क्योंकि इस शहर को जब शाहजहां ने बसाया तो उससे पहले के मंदिरों का कोई जिक्र देखने में नहीं आता। यह मंदिर गौरीशंकर के नाम से मशहूर है।
मंदिर सड़क के किनारे पर है। मंदिर एक मंजिल चढ़कर है। इसके दो दरवाजे हैं। सीढ़ियां चढ़कर अंदर जाते हैं। दक्षिण की ओर चार मंदिर बने हुए हैं। बीच में एक बड़ा कमरा है, जिसके दो भाग हैं। अंदर के हिस्से में गौरीशंकर का मंदिर है। एक चबूतरे पर, जो चार फुट ऊंचा है, सफेद पत्थर की शिव और पार्वती की मूर्तियां हैं। चबूतरे के सामने कमरे के बीच में शिवलिंग की पिंडी, पार्वती, गणपति, नंदी तथा गरुड़ की मूर्तियां हैं। एक आले में हनुमान जी की मूर्ति है। इस कमरे में तीन तरफ शीशेकारी का काम है। बाहर के हिस्से में दर्शनार्थी खड़े होते हैं। कमरे के तीन ओर दरवाजे हैं। सामने की ओर चौड़ा चबूतरा है, जिस पर सायबान पड़ा हुआ है।
मंदिर का और चबूतरे का फर्श संगमरमर या संगमूसा का है। इस मंदिर की दाहिनी तरफ एक छोटा-सा मंदिर राधा-कृष्ण का बना हुआ है। बाएं हाथ यमुना जी का मंदिर है और एक नया मंदिर सत्यनारायण जी का बना है। इस मंदिर की बड़ी मान्यता है। भक्त लोग इसमें कुछ-न-कुछ बनवाते रहते हैं। अपने-अपने नाम से संगमरमर की शिलाएं तो जगह-जगह लगाते ही रहते हैं। अब सड़क की तरफ एक कमरा गीता भवन बन रहा है। दस्तकारी के लिहाज से इसमें कोई विशेषता नहीं है। श्रावण के दिनों में यहां बड़ी भीड़ रहती है। प्रबंध के लिए एक कमेटी बनी हुई है।