सर सैय्यद अहमद खान ने दिल्ली के स्मारकों समेत हवेलियों का जिक्र करते हुए किताबें लिखी है। अपनी एक किताब में इन्होने 1847 में पुरानी दिल्ली में मौजूद लगभग हर इमारत का इतिहास लिखा है। इस किताब में उन्होने अपने नाना नवाब दाबिर उल दौला महरूम की हवेली के बारे में विस्तार से लिखा है। लिखते हैं कि फैज बाजार की तरफ हवेली स्थित थी। सर सैय्यद अहमद की हवेली जामा मस्जिद के पास थी। इनका जन्म 17 अक्टूबर 1817 में हुआ था।
राना सफवी अपनी पुस्तक शाहजहानाबाद में लिखती है कि मैं फैज बाजार गई जो अब दरियागंज के नाम से प्रसिद्ध है। दरियागंज में सड़क का नाम सर सैय्यद अहमद के नाम पर है। एक समय यह पुरा इलाका मुगलों के लिए गर्व का एहसास कराता था। यहीं अहमद दाबिर उल दौला में भी रहे। कभी हवेली का द्वार बहुत भव्य था। लेकिन अब यह अतिक्रमण की जद में है। राना सफवी कहती हैं कि मैं हवेली में गई थी। वर्तमान मालिक ने मुझे चाय भी आफर किया लेकिन उन्होने इसका सर सैय्यद अहमद से किसी तरह से संबंध होने की बाबत इंकार कर दिया। हवेली दो हिस्सों में बंटी है। राना की मानें तो स्थानीय लोगों का यह कहना था कि हवेली पहले से मौजूद है। लोगों के इंकार के बाद मैंने सर सैय्यद अहमद की ही किताब के पन्ने पलटे। जिसमें उन्होंने अपनी हवेली के बारे में लिखा है। हवेली औलिया मस्जिद के पास तिराहा बैरम खां के पास थी।