हाइलाइट्स

  • 15 जुलाई 2013 में टेेलीग्राफ विभाग ने बंद कर दी टेलीग्राम यानी तार सेवा
  • अधिकतर लोग पैसेे भेजने के लिए तार सेवा का करते थे उपयोग
  • सन 2000 के बाद कंप्यूटर की मदद से भेजा जाने लगा तार

15 जुलाई 2013। इस दिन टेलीग्राफ विभाग और उन तमाम लोगों ने नम आंखों से टेलीग्राम यानी तार सेवा को विदाई दी। इस दिन और तार सेवा को यादगार बनाने के लिए कई लोगों के कदम वेस्टर्न कोर्ट स्थित इंडियन टेलीग्राफ ऑफिस की ओर बढ़े। मोबाइल के जमाने में लोगों ने अपने -अपनों को तार भेजा। उस दिन को तकरीबन तीन साल गुजर गए। लेकिन समय गुजरने के साथ वो जज्बा भी धूमिल हो गया और इस धरोहर को सहेजना की मंशा भी कही खो गई। सरकार भी घोषणा कर भूल गई और लोगों ने भी भुला दिया टेलीग्राम को। वो बात और है कि शहर में तार सेवा से जुड़ी सड़कें आज भी उन दिनों की यादें ताजा कर देती हैं जब तार से लोगों की जिंदगियां बदला करती थी।

जनपथ पर स्थित वेस्टर्न कोर्ट के भवन में अब फाइनेंस का दफ्तर खुल गया है लेकिन इसी स्थान पर तीन साल पहले काउंटर और कुछ लोगों की भीड़ उमड़ा करती थी। लोग टेलीग्राम का उपयोग पैसे भेजने के लिए करने लगे थे। करीब बीस साल पहले स्थिति अलग थी। जब लोगों के घर में टेलीग्राम लेकर डाकिया आता था तो लोगों के दिल धक से रह जाते थे। ज्यादातर लोग इसे दुखद घटना से जोड़ कर देखने लगे थे। तो कई लोगों के लिए अच्छी खबर का संचार भी किया इस तार सेवा ने। कईयों को नौकरी की खुशखबरी दी तार सेवा ने। खासकर फौजियों के लिए तो तार उनके घरों में अच्छी बुरी सभी घटनाओं से जोड़ने का अहम जरिया बन चुका था। कभी तार सेवा में कार्यरत रहे विजय अब डाक विभाग में तैनात है। विजय बताते हैं कि तार के अंतिम दौर में तार से भेजे जाने वाले संदेश की कीमत पचास पैसे प्रति शब्द रहा और एक रुपए एक्सप्रेस के लिए रहा था। लेकिन फिर भी लोगों ने इस सेवा को एक दम ही किनारा कर दिया था। दिन भर में कभी दो या तीन संदेश भेजे जाने लगे। लेकिन कुछ कंपनियां पैसे भेजने के लिए इस सेवा का इस्तेमाल करती थी। अंग्रेजी में भेजे जाने वाले पांच छह शब्द के संदेश ही काफी हुआ करते थे। वर्ष 2000 के बाद तो तार भेजने का काम कंप्यूटर से ही होने लगा था इसलिए उन मशीनों को स्टोर में रख दिया गया। उन मशीनों का क्या हुआ इस संबंध में किसी को कुछ नहीं पता। हालांकि तार विभाग के कुछ अधिकारी बताते हैं कि टेलीग्राफ से जुड़ी मशीनें कबाड़ में चली गई हैं। बहरहाल टेलीग्राफ रोड तो अब भी चमचमाती नजर आती है और उस रोड के किनारे बने पोस्टल विभाग के लाल क्वार्टरों को देख उन दिनों की याद जरुर ताजा हो जाती है।

बनाया जाना चाहिए संग्रहालय

शमीम अख्तर, पूर्व सीजीएम, बीएसएनल

15 जुलाई को टेलीग्राम सेवा बंद करने का निर्णय लिया गया था लेकिन साथ में इस सेवा के सुनहरे इतिहास को भी सहेजा जाना चाहिए था। कभी कमा कर देने वाले तार विभाग को लाखों का नुकसान होने लगा था। इसलिए विभाग को यह अहम फैसला लेना पड़ा। लेकिन संग्रहालय बनाने के लिए भी उस वक्त सभी केन्द्रों से तार से जुड़े कई तस्वीरें मंगवाई गईं थी। सभी केन्द्रों ने भारत के आजादी से पहले, यहां तक की सन 1857 के विद्रोह के दौरान टेलीग्राफ लाइनों द्वारा भेजे गए संदेश की कुछ दस्तावेज भी थे। वर्ष 1947 में भी इस सेवा ने कई अहम रोल निभाएं। लेकिन इंटरनेट और मोबाइल ने इसके वजूद को इंटरनेट तक की सीमित कर दिया। पिछली सरकार ने इसके लिए संग्रहालय बनाने की योजना बनाई लेकिन सरकार बदलते ही योजना भी ठंडे बस्ते में चली गई। टेलीग्राफ की कुछ केन्द्रों पर मशीनें भी रखा गई थी लेकिन समय के साथ सब पर जंग लगता चला गया। इंटरनेट, मोबाइल के जमाने में अब इसकी जानकारी भी इंटरनेट पर ही मौजूद नजर आती है। जबकि प्रशासन को चाहिए था कि वे मशीनों और अन्य तस्वीरों को जमा कर एक झरोखा तैयार करें जिसमें आज के दौर और आने वाले बच्चे इस इतिहास के पन्नों को उलट सकें। तीन साल में अब न ही मशीन मिलेंगी और न ही तस्वीरें। संचार विभाग को इस ओर ध्यान देना चाहिए।

झरोखों से झांकते तार सेवा का सफर

1850 में कोलकाता और डायमंड हार्बर के बीच बिजली से चलने वाली टेलीग्राफ लाइन से प्रयोग के तौर पर संदेश भेजने की शुरूआत हुई

1851 में इस प्रणाली का प्रयोग ब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी ने करना शुरू किया।

1853 में इस सेवा को आम लोगों के लिए भी शुरू की गई

1854 में टेलीग्राफ लाइनें बिछछाई जाने लगी।

1885 में इंडियन टेलीग्राफ कानून को लागू किया गया

1902 में पहला वायरलेस टेलीग्राम सेवा की शुरुआत हुई

1927 में रेडियो टेलीग्राफ की शुरुआत हुई

1947 में भारत सरकार के कई विभागों में तार सेवा जारी रही

1995 में इंटरनेट सेवा आने के बाद टेलीग्राफ सेवा को बीएसएनल के तहत लाया गया। इससे पहले यह सेवा पोस्टल विभाग द्वारा दिया जा रहा था।

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