हरिवंश राय बच्चन (harivansh rai bachchan) की पारिवारिक मित्र प्रकाश के बरेली स्थित घर पर पहली बार तेजी जी (teji bachchan) से मुलाकात हुई थी। तेजी जी हरिवंश राय बच्चन की कविताओं की प्रशंसिका थी। वो उनसे मिलने के लिए बरेली पहुंची थी। प्रकाश जी ने तेजी से मिलवाया।बच्चनजी से उसका परिचय कराया गया। प्रकाश ने कहा, ‘यही तुम्हारे प्रिय कवि बच्चन हैं। मेरे दोस्त हरिवंश राय श्रीवास्तव ।
प्रेमा बोलीं, ‘यह है मेरी दोस्त तेजी, आपकी बड़ी प्रशंसिका है।’
परिचय होने के बाद बच्चनजी को अचानक लगा था कि वे दोनों जैसे नदी के दो किनारे हों। प्रकाश उनके बीच एक ऐसा पुल है जो दो किनारों को जोड़ते हुए चुपचाप खड़ा रहता है।
प्रकाश ने बच्चनजी से कविता सुनाने की फरमाइश की। तेजी की दृष्टि में भी अनुरोध की झलक थी । बारह साल पहले लिखी गई पंक्ति अचानक उन्हें याद आ गई | बच्चनजी ने उसे मन-ही-मन दोहराया
‘इसीलिए सौंदर्य देखकर शंका यह उठती तत्काल
कहीं फंसाने को तो मेरे नहीं बिछाया जाता जाल।’
उस दिन शाम को बग्घी पर चढ़कर सब लोग खूब घूमें फिरे। रात में खाना खाने के बाद प्रकाश के कमरे में कविता की महफिल जम गई। उसी के साथ नए साल का इंतजार भी था। वर्ष की उस आखिरी रात को बच्चनजी ने एक के बाद एक न जाने कितनी कविताएं सुना डालीं।
प्रकाश और प्रेमा न जाने कब वहां से खिसक गए थे। उस कमरे में सिर्फ तेजी और बच्चनजी आमने-सामने बैठे हुए थे। दोनों एक-दूसरे को अपलक देख रहे थे। सुमित्रानंदन पंत की एक कविता की पंक्तियां नए साल की उस सुबह अचानक उन्हें याद आ गईं। वह उन्हें दोहराने लगे
‘वर्ष नव,
हर्ष नव,
जीवन उत्कर्ष नव,
नव उमंग,
जीवन का नव प्रसंग ।