Netaji ka nidhan: अखाड़े में पहलवानों को चित करने के बाद मुलायम सिंह यादव (Mulayam singh yadav) ने राजनीति में हाथ आजमाया। गुरू नत्थू सिंह ने राजनीति की बारीकियां सिखाई।इस बीच मुलायम सिंह करहल के जैन इण्टर कॉलेज में अध्यापक नियुक्त हुए। वे अपने छात्रों को सतत जागरुक रहने की प्रेरणा देते थे।

मुलायम सिंह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और डॉ. राम मनोहर लोहिया की आर्थिक नीतियों से प्रभावित थे और अपने छात्रोंको भारत की अर्थव्यवस्था की धुरी ‘ग्रामीण अर्थव्यवस्था’ को सुदृढ़ करने के लिए तत्परता से जुट जाने को कहते थे। वे कहते थे कि इससे सच्ची सामाजिक और राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है।

राजनीति में पदार्पण

स्वतंत्रता के बाद देश में प्रमुख रूप से दो राजनैतिक विचारधाराएं उभरीं- पहली ‘कांग्रेसी विचारधारा’ और दूसरी ‘समाजवादी विचारधारा। मुलायमसिंह को शोषितों, वंचितों, और किसानों से शुरू से ही लगाव था, अतः वे अपने-आपको समाजवादी विचारधारा के निकट मानते थे। उस समय समाजवादी विचारधारा के पोषक के रूप में डॉ. राममनोहर लोहिया (ram manohar lohia) की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल चुकी थी। 1963 में उन्होंने फर्रुखाबाद (यूपी) क्षेत्र से लोकसभा उप चुनाव लड़कर अपनी जीत दर्ज कराई थी। डॉ. लोहिया संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का विस्तार करना चाहते थे 1965 और 1966 इस पार्टी के लिए संघर्ष के वर्ष थे, लेकिन अपनी जुझारू प्रकृति के कारण उसने उपलब्धियां भी हासिल की।

15 जुलाई, 1966 को पार्टी ने उत्तर प्रदेश बंद का आह्वा किया। अपने राजनैतिक गुरु और प्रमुख क्षेत्रीय नेता नत्थूसिंह की छत्रछाया में मुलायमसिंह ने अपने क्षेत्र में बंद को सफल बनाने में योगदान दिया। 1966 में ही डॉ. लोहिया एक जनसभा को संबोधित करने इटावा आये। उस समय तक मुलायम सिंह का नाम ूयूपी की राजधानी लखनऊ की विधानसभा के प्रतिनिधि नेताओं की जुबान पर चढ़ चुका था।

डॉ. लोहिया के कानों में भी उनके चर्चे पहुंच चुके थे। जैसे ही वे इटावा रेलवे स्टेशन पर उतरे, उन्होंने नत्थूसिंह से मुलायम सिंह से मिलने की इच्छा व्यक्त की। यह उनकी डॉ. लोहिया से पहली भेंट थी, जिसमें डॉ. लोहिया उनसे बहुत प्रभावित हुए। जब वे इटावा से वापस जा रहे थे, तो उन्होंने नत्थू सिंह से कहा कि पार्टी संगठन को मज़बूत करने के लिए हमें मुलायम सिंह जैसे जुझारू और संघर्षशील युवाओं की आवश्यकता है।

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