संसद से महज एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित दिल्ली के मशहूर मार्ग जनपथ का इतिहास दशकों पुराना है। ब्रिटिश वास्तुकार एडवर्ड लुटियंस द्वारा वर्ष 1931 में खींचे गए नई दिल्ली के खांका में क्वींसवे के नाम से प्रचलित इस मार्ग को आजादी उपरांत जनपथ का नाम मिला। जनपथ इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों को जितना आकर्षित करता है उतना ही साहित्य में रखने वालों को जनपथ भवन स्थित ‘फेमस बुक स्टोर’। सात दशक से जनपथ से जुड़ाव इस दुकान को न सिर्फ दिल्ली वासियों के दिल में खास स्थान दिलाता है, बल्कि देश-विदेश के पुस्तक प्रेमियों को भी आकर्षित करता है।

8 दशक पहले रखी गई थी दुकान की नींव

करीब 85 साल पुरानी इस दुकान के संचालक बताते हैं कि इस सफर की शुरूआत 1920 के दशक में हुई थी। मूल रूप से मुल्तान (अब पाकिस्तान) के रहने वाले उनके नाना स्वर्गीय नारायण दास द्वारा इसकी शुरुआत की गई थी। बकौल संजीव, भारत में बुक ट्रेड की शुरूआत करने का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है। ब्रिटेन और अमेरिका समेत कई विकसित देशों में जाकर किताबों की दुनिया को करीब से जानने व समझने वाले नारायण दास ने वर्ष 1923 के बाद भारत के प्रमुख रेलवे स्टेशनों व ब्रिटिश छावनी में 200 से ज्यादा किताबों की दुकान का शुभांरभ किया। इसी क्रम में वर्ष 1934 में क्वेटा (अब पाकिस्तान) में अंग्रेजों की सैन्य छावनी में ‘फेमस बुक स्टोर’ के नाम से दुकान की नींव रखी थी, जिसे पिता स्वर्गीय अर्जुन देव अरोड़ा संभालते थे।

विभाजन ने अर्श से फर्श पर पहुंचाया

वर्ष 1947 में आजादी के ठीक बाद भारत-पाक विभाजन का दर्द भी संजीव अरोड़ा की बातों में छलकता है। संजीव बताते हैं कि विभाजन ने व्यापार को अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया। विभाजन के बाद परिवार क्वेटा से दिल्ली आ गया। संजीव याद करते हैं कि क्वेटा में व्यापार जम चुका था। एक बार में पाकिस्तान से सारा सामान दिल्ली लाना संभव नहीं था, इसलिए पिताजी को दोबारा जाना पड़ा। दुकान के सामानों की बुकिंग करवाकर वो जिस ट्रेन से पाकिस्तान से भारत आए उसमें उन्हें मिलाकर केवल 16 जीवित लौटे और सामानों का भी कोई अता-पता नहीं मिला। उस घटना ने मानसिक और आर्थिक रूप से उन्हें कमजोर कर दिया, लेकिन हौसला नहीं टूटा। जनपथ के फुटपाथ पर सुबह 6 बजे से रात के 11 बजे तक समाचारपत्र और किताबों की दुकान लगाने लगे। वर्ष 1950 में जनपथ के मुख्य मार्ग पर एक छोटी सी दुकान अलॉट हुई और दोबारा से ‘फेमस बुक स्टोर’ को स्थायी पता मिल गया। वर्ष 1971 में जब जनपथ भवन का निर्माण हुआ तबसे दुकान इस भवन की एक पहचान के तौर पर मौजूद है।

विरासत की तरह संभाल रहे हैं व्यापार

बुक स्टोर संचालक कहते हैं कि यह दुकान उनके लिए किसी विरासत से कम नहीं है। वो बताते हैं कि वर्ष 1979 में पिता के देहांत के बाद दुकान को बंद करने तक की नौबत आ गई थी, लेकिन उनकी मां चंद्रवती अरोड़ा ने करीब तीन दशक तक परिवार के साथ व्यापार को भी संभाला। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो भी संचालन में मां का हाथ बंटाने लगे और करीब चार दशक से इससे जुड़े हैं।

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एक छत के नीचे देश-दुनिया की किताबें

फेमस बुक स्टोर की विशेषता हैं कि यहां हर आयु वर्ग के पाठकों के लिए किताबें उपलब्ध है।करीब 70 फीसद किताबें विदेश से मंगवाई जाती हैं, जिसमें विदेश के प्रतिष्ठित प्रकाशनों व लोकप्रिय लेखकों की साहित्य, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, और विज्ञान से संबंधी किताबें प्रमुख हैं। वहीं, 30 फीसद किताबों में भारत के तकरीबन सभी स्थापित व नवोदित लेखकों की हिंदी, अंग्रजी और उर्दू में प्रकाशित कृतियों को शामिल किया जाता है।

अर्थशास्त्री से लेकर खिलाड़ी तक हैं मुरीद

दुकान में खेल से संबंधित किताबों के विशाल संकलन के कारण यहां के खरीदारों में नेता और अभिनेता के साथ-साथ खिलाड़ी भी शामिल हैं। वर्ष 1983 की विश्व विजेता भारतीय क्रिकेट टीम यहां तीन बार पहुंची है। वहीं, एशियन गेम्स के खिलाड़ी, पूर्व लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी, पूर्व मानव संसाधन और विकास मंत्री अर्जुन सिंह, अभिनेता शाहरुख खान, सोनम कपूर समेत कई पुस्तक प्रेमी पहुंच चुके हैं।

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