संगीत की दुनिया में मुहम्मद शाह रंगीला का नाम हमेशा याद रहेगा। सदारंग, अदारंग और इछाबरस जैसे उच्च कोटि के ख्याल गायक और नायक इसी काल में हुए। उसी के समय में साज़ के रूप में सितार बहुत लोकप्रिय हुआ। यह सेहरा सदारंग के छोटे भाई खुसरो ख़ाँ के सर पर है। मुहम्मद शाह रंगीला के काल में पहले सितारवादकों का कोई जिक्र नहीं मिलता। दरगाह कुली खां ने कहा कि खुसरो खां तीन तार वाले एक साज़ पर राग-रागनियां पेश करते थे। इस साज में आवश्यकता के अनुसार तारों की संख्या में वृद्धि होती रही।
एक इतिहासकार का यह भी विचार है कि नाम की समानता के कारण लोग खुसरो खां को अलाउद्दीन के समय का अमीर खुसरो समझ बैठे। बादशाहनामा में खयाल गायकी को हजरत अमीर खुसरो का प्रयोग बताया गया है, मगर कुछ लोग जौनपुर के आखिरी बादशाह और संगीत कला में प्रवीण सुल्तान हसन शरक़ी को खयाल गायकी का आविष्कारकर्ता मानते हैं। लेकिन नेमत खां सदारंग ने ख़याल गायकी की दुनिया में चार चांद लगा दिए। कहा जाता है कि एक बार मुहम्मद शाह रंगीला ने किसी बात पर नाराज होकर सदारंग का दरबार में आना बंद कर दिया। सदारंग ने दो बच्चों को बड़ी मेहनत और कोशिश से ऐसा तैयार किया कि जब उन बच्चों ने बादशाह के दरबार में सदारंग की बंदिशों को पेश किया तो बादशाह बहुत खुश हुआ और सदारंग को फिर दरबार में आने की इजाज़त मिल गई।
घनानंद जाति के कायस्थ थे और मुहम्मद शाह के मीर मुंशी थे। उनके बारे में मशहूर है कि वे गाने में भी माहिर थे। एक बार उन्हें मुहम्मद शाह के दरबार में गाने का हुक्म हुआ। किसी ने कहा यह उस वक़्त तक न गाएं जब तक सुब्हानी तवाइफ सामने न हो। तबायफ बुलाई गई और उन्होंने उसकी तरफ मुंह और बादशाह की तरफ पीठ करके गाना शुरू किया। बादशाह और दरबारी गाना सुनकर खुश हुए। मगर बादशाह ने बेअदबी की सजा दी और शहर से बाहर निकाल दिया। उन्होंने सुबहानी तवायफ से अपने साथ चलने के लिए कहा मगर उसने इन्कार कर दिया। इन्कार से घनानंद का दिल टूट गया और वे फ़क़ीर बनकर वृंदावन चले गए।
यह भी मशहूर है कि नादिरशाह के हमले के बाद क्रिडिलवाशी सिपाही मथुरा पहुंच गए और घनानंद को डरा-धमकाकर उनसे पैसे मांगे। लेकिन मुंशी घनानंद के पास कुछ न था। जब ब्रिजिलवाशियों ने जोर-जोर का शोर मचाया तो उन्होंने उसी शब्द को उलट कर जर-जर (धूल) कहा और दो-तीन मुट्टी खाक फेंकी कि उसके सिवा उनके पास कुछ नहीं है। सिपाहियों ने गुस्से में आकर उनका हाथ काट डाला।