घुल्लू आज प्रोग्राम विच चलेंगा ?

साभार:- यह आर्टिकल दिल्ली के पूर्व विधायक हरीश खन्ना जी के फेसबुक वॉल से लिया गया है

घुल्लू एक सीधा सादा खूबसूरत नौजवान। घर में उसे कभी गुल्लू और कभी घुल्लू कह कर पुकारते थे।गोरा रंग,घुंघराले बाल , लम्बा कद , बात बात में शरमा जाता था। उत्तरी दिल्ली के नॉर्थ कैंपस के नजदीक विजय नगर के डी ब्लॉक के मकान नंबर 29 में रहता था। घुल्लू के पिता हरबंस लाल गोस्वामी जी थे। इकबाल गोस्वामी और हरबंस लाल गोस्वामी नजदीक के रिश्तेदार थे।

चल तुझे आज एक प्रोग्राम में ले चलता हूं -यह बात इकबाल गोस्वामी जी ने घुल्लू से कही। इकबाल गोस्वामी जी मेरे मित्र समाजसेवी विनोद गोस्वामी जी के पिता जी थे। यह सारा प्रसंग मुझे विनोद गोस्वामी जी ने बताया था। घुल्लू उस फंक्शन में गया। किसी फिल्म का प्रीमियर था। फिल्म इंडस्ट्री के मुलुख राज भाखड़ी और लेख राज भाखड़ी आए हुए थे। लेखराज भाखड़ी फिल्म निर्देशक और प्रोड्यूसर थे। वे लोग इकबाल जी और हरबंस जी के नज़दीक के परिचित थे। उनके बुलावे पर ही इकबाल गोस्वामी जी घुल्लू को अपने साथ उस फंक्शन में ले गए। उन्होंने पूछा यह मुंडा (लड़का) कौन है?

इकबाल जी ने कहा यह हरबंस का (पुतुर) पुत्र है। भाखड़ी ने कहा – बड़ा गबरू जवान है। फिल्मा विच काम करेंगा (बहुत खूबसूरत नौजवान है।फिल्मों में काम करेगा) ? घुल्लू सुन कर शरमा गया। उस समय तो नहीं बोला। घर आकर इकबाल जी से उसने कहा मुझे आप बम्बई भिजवा दो। मैं फिल्मों में काम करूंगा। इकबाल जी ने घुल्लू के पिता हरबंस जी से बात की और उसके जाने का प्रबन्ध करवाया।

उन दिनों एक मास्टर जी हुआ करते थे । उनका नाम था श्री गजेंद्र गोस्वामी जी। मैं उस समय पांचवी या छठी क्लास में पढ़ता था। यह बात साठ के दशक की शुरुआत की होगी। उस समय मैं हडसन लेन में रहता था। विजय नगर घूमने हकीकत पार्क आता था। पास ही डी ब्लॉक में घरों के सामने एक खुले मैदान में वह मास्टर जी वहां आस पास के रहने वाले स्कूल के बच्चों को बहुत ही मामूली चंदा लेकर ट्यूशन पढ़ाया करते थे। मैं ट्यूशन के लिए तो नहीं जाता था पर वहां सामने एक घर था । उसको देखने का आकर्षण था इसलिए वहां जाता था। ग्राउंड फ्लोर पर एक सिंगल घर वहां पर बना हुआ था। उस समय ज्यादातर घर सिंगल बने हुए थे। इसीलिए आज भी उस कॉलोनी का नाम विजय नगर सिंगल स्टोरी कहा जाता है। पास ही दूसरी कॉलोनी विजय नगर डबल स्टोरी है, जहां शुरू से ही मकान ग्राउंड और फर्स्ट फ्लोर बना कर अलॉट किए गए थे। इसलिए उसे विजय नगर डबल स्टोरी कहा जाता है।

विजय नगर सिंगल स्टोरी में उस घर का नम्बर था डी 29 । उसके बाहर एक नेम प्लेट लगी हुई थी और उस पर लिखा हुआ था मनोज कुमार। यह घर हरबंस लाल गोस्वामी जी का था। उन्ही के पुत्र हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी थे , यानि घुल्लू । बाद में फिल्म स्टार मनोज कुमार बन गए।उस वक्त हरिकृष्ण गोस्वामी बम्बई में मनोज कुमार के नाम से जाने जाते थे। हम उस वक्त छोटे थे । जैसा कि अक्सर लोगों को फिल्मी हस्तियों को देखने का शौक होता है उस ज़माने में मुझे भी था। मुझे भी लगता था कभी मनोज कुमार इस घर में आयेंगे तो उनसे मिलना होगा।

मनोज कुमार (Manoj Kumar) के पिता हरबंस लाल गोस्वामी, भारत विभाजन के समय एबटाबाद से दिल्ली आकर बस गए थे । उन दिनों लोगों को टेंटों और बैरकों में रहना पड़ा था। बाद में धीरे धीरे लोगों को रहने के मकान मिले। सामूहिक परिवार थे। सांझा चूल्हा जलता था। मिलजुल कर लोग रहते थे। बाद में विजय नगर डी ब्लॉक के मकान नंबर 29 में वे आकर बस गए। वहीं पर मनोज कुमार का बचपन बीता। फिल्मों में जाना चाहते थे। मनोज कुमार के पिता हरबंस लाल गोस्वामी जी और इकबाल गोस्वामी जी रिश्तेदार थे। आपस में बहुत गहरा संबंध भी था। संघर्ष के दिन थे। इकबाल गोस्वामी जी ने कोशिश करके मनोज कुमार को किसी तरह मुंबई भेजा । घर का घुल्लू हरिकृष्ण गोस्वामी मुंबई जाकर मनोज कुमार बन गया। अपनी मेहनत और अभिनय की वजह से उन्होंने फिल्मी दुनिया में अपनी जगह बनाई । उनकी पहली फिल्म शायद फैशन थी जिसमें उनकी मुख्य भूमिका नहीं थी बल्कि साइड रोल था । ।इस फिल्म का निर्देशन लेखराज भाखरी ने किया था।

मनोज कुमार के घर के बाहर मैदान में पढ़ाने वाले मास्टर गजेंद्र गोस्वामी जो ट्यूशन पढ़ाया करते थे, वह मनोज कुमार के चाचा लगते थे। मनोज कुमार दिल्ली के कमला नगर के पास बिरला स्कूल में पढ़ते थे । 1957 में मनोज कुमार मुंबई चले गए । इस बीच उनकी कांच की शहीद, उपकार, हरियाली और रास्ता, पूर्व और पश्चिम ,रोटी कपड़ा और मकान जैसी अनेक फिल्में हिट हुई। वह स्वयं भी लेखक, निर्देशक और प्रोड्यूसर बन गए।

मनोज कुमार के मुंबई में बस जाने के बाद कई सालों तक यह मकान उनके परिवार के ही पास था। बीच बीच में वह दिल्ली आया करते थे।एक बार उनकी फिल्म का प्रीमियर शो था । जिसमें उन्होंने अपने मित्रों और परिचितों को भी बुलाया था। उनके एक परिचित दुकानदार सेवाराम भी वहां मौजूद थे , उन्हें वहां देखकर उन्होंने उसे आगे बुला लिया। सेवा राम की दुकान विजयनगर सिंगल स्टोरी में जहां पंजाब नेशनल बैंक है ,उसके पास थी। उस ज़माने में मनोज कुमार अपने मित्रों के साथ वहां जाकर लस्सी,पूरी छोले ,पकोड़े खाया करते थे।वहां उनका उधार भी चलता था । मेरे मित्र रमेश सहगल जो पहले विजय नगर में रहते थे ,बताते हैं कि एक बार शहीद भगत सिंह की मां भी उस मकान में आई थी। शायद मनोज कुमार की फिल्म ‘शहीद’ उस समय बन रही थी। वह मकान तो बिक गया पर उसकी यादें अभी भी मेरे मानस पर बनी हुई हैं।

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