यूपी के स्कूलों में छात्राओं के लिए सुविधाएं बढ़ाने की दरकार

वैश्विक कोरोना महामारी के चलते 2020 में स्कूल, कालेजों को बंद करना पड़ा। छात्रों ने लंबे समय तक ऑनलाइन पढ़ाई की। महामारी की वजह से शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हुई। बच्चों के विकास पर भी प्रतिकूल असर पड़ा। अब स्थिति सामान्य हो चुकी हैं। स्कूल खुल गए हैं और बच्चे शिक्षा के मंदिर में अध्ययनरत हैं। चार साल के लंबे अंतराल के बाद प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन के ‘असर’ (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) की रिपोर्ट हाल ही में जारी हुई। राष्ट्रीय स्तर पर तैयार इस रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के 70 जिलों के 2096 गांवों के 91,158 बच्चों को सर्वे में शामिल किया गया। यह रिपोर्ट यूपी के लिए कई मायनों में बहुत ही महत्वपूर्ण है। इससे यूपी के ग्रामीण इलाकों में ना केवल स्कूली शिक्षा बल्कि स्कूलों में प्रदान की जा रही सुविधाओं को भी जांचने-परखने का मौका मिलता है। कई पैरामीटर पर यूपी का प्रदर्शन संतोषजनक कहा जा सकता है। लेकिन अभी भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां बहुत अधिक काम किए जाने की जरूरत है। कंप्यूटर शिक्षा और छात्राओं के लिए शत प्रतिशत स्कूलों में शौचालयों की व्यवस्था करना बाकी है।

लड़कियां आगे

रिपोर्ट की मानें तो स्कूलों में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या बढ़ी है। सरकारी स्कूलों में 6-10 वर्ष की आयु में स्कूल जाने वाले बच्चे 64 फीसदी हैं। इसमें 60 प्रतिशत लड़के, 67 प्रतिशत लड़कियां हैं। इसी तरह 11 से 14 वर्ष की आयु में स्कूल जाने वाले बच्चों की कुल संख्या 53 प्रतिशत है। इनमें 51 प्रतिशत लड़के और 55 प्रतिशत लड़कियां हैं। प्री प्राइमरी से कक्षा 8 तक के ग्रामीण बच्चों की पढ़ाई के स्तर में भी सुधार देखने को मिला है। खासकर अंग्रेजी और गणित की पढ़ाई में। शायद यही वजह है कि स्कूलों में छात्रों के पंजीकरण का प्रतिशत भी बढ़ा है। सरकारी स्कूलों में 2014 में पंजीकरण प्रतिशत 41.1 था जो 2022 में बढ़कर 59.6 प्रतिशत हो गया।

हालांकि शुल्क देकर ट्यूशन पढ़ने वाले सरकारी और निजी स्कूलों के बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी चिंता का सबब है। कक्षा 1 के 16.9 प्रतिशत सरकारी स्कूल के बच्चे जबकि 30 प्रतिशत निजी स्कूल बच्चे ट्यूशन पढ़ते हैं। आठवीं कक्षा तक यह आंकड़ा सरकारी स्कूल में 18.8 और निजी स्कूल में 29.6 प्रतिशत है। वहीं सरकारी और निजी स्कूलों को मिलाकर यह 23.1 प्रतिशत है। स्कूलों में पढ़ाई के स्तर में और सुधार की गुंजाइश है। ताकि अभिभावकों पर स्कूल और ट्यूशन का दोहरा बोझ ना पड़े। लड़कियों के लिए स्कूलों में शौचालय की सुविधा दुरूस्त करने की जरूरत है। हालांकि 2010 के मुकाबले स्थिति सुधरी है लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। 2018 में 67.2 के मुकाबले 2022 में 78 प्रतिशत स्कूलों में शौचालय की सुविधा पायी गई। इसके अलावा 15.2 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं जिनमें सुविधा है, शौचालय पर ताला भी नहीं लगा था किंतु ये प्रयोग योग्य नहीं थे। 3.2 प्रतिशत स्कूलों में सुविधा तो थी लेकिन शौचालय पर ताला जड़ा था। वहीं 3.5 प्रतिशत ऐसे भी स्कूल थे, जिसमें लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं मिली। इसे आदर्श स्थिति नहीं कह सकते।

योगी सरकार को उन स्कूलों की पहचान करनी चाहिए जहां छात्राओं के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं हैं। स्थानीय प्रशासन को भी अपने स्तर पर प्रयास करना चाहिए। बेटियों की पढ़ाई के लिए मोदी सरकार पहले दिन से प्रतिबद्ध है। सरकार ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा दिया है। बेटियों की पढ़ाई ना छूटे इसके लिए जरूरी है कि स्कूलों में सुविधाएं बढ़ाई जाएं। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ग्रामीण स्कूलों में बच्चों के मुकाबले बच्चियों की तादात अधिक है।

मोदी सरकार डिजिटल इंडिया की संकल्पना को साकार करने में जुटी है। अमृतकाल में भारत को विश्वगुरू बनाने के लिए शिक्षा की गुणवत्ता पर जोर दिया जा रहा है। नई शिक्षा नीति लागू की गई है। बच्चों को डिजिटली दक्ष बनाना बहुत ही आवश्यक है। कंप्यूटर शिक्षा को लेकर सरकार की नीति स्पष्ट है। असर की रिपोर्ट कंप्यूटर शिक्षा के स्याह पक्ष से रूबरू कराती है। रिपोर्ट की मानें तो यूपी के गांवों में 93.9 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं जहां बच्चों के इस्तेमाल के लिए कंप्यूटर उपलब्ध नहीं हैं। 4.9 प्रतिशत स्कूलों में कंप्यूटर उपलब्ध है लेकिन बच्चों द्वारा कंप्यूटर का कोई उपयोग नहीं था। केवल 1.2 प्रतिशत स्कूल ऐसे थे, जिनमें बच्चे कंप्यूटर का उपयोग करते मिले। डिजिटल इंडिया के दौर में यह आंकड़ा प्रभावी नहीं कहा जा सकता।

स्कूलों में शारीरिक शिक्षा के अध्यापकों की नियुक्ति भी एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें यूपी सरकार को काफी कुछ करना होगा। हाल के वर्षों में स्कूलों में खेल के मैदान और खेल संबंधी सुविधाएं तो बढ़ी है लेकिन अभी भी केवल 25.5 प्रतिशत स्कूलों में ही अलग से शारीरिक शिक्षा के अध्यापक नियुक्त है। 61.1 प्रतिशत स्कूलों में कोई और शिक्षक इसे देखते हैं। 13.5 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं जहां शिक्षक उपलब्ध ही नहीं हैं। योगी आदित्यनाथ बेटियों की पढ़ाई के प्रति संवेदनशील है। सरकार ने कई योजनाएं भी शुरू की हैं। ऐसे में उम्मीद तो यही है कि सरकार इस रिपोर्ट में इंगित कमियों को दूर करने का गंभीरता से प्रयास करेगी।

रामपुर पर अधिक ध्यान देने की जरूरत

रिपोर्ट में यूपी के कई जिलों का प्रदर्शन चिंताजनक है। रिपोर्ट में उन बच्चों की भी सुध ली गई है, जिन्होंने दाखिला नहीं लिया है। रिपोर्ट की मानें तो इस पैमाने पर सियासी पैतरों की वजह से चर्चा में रहने वाला रामपुर अव्वल है। रामपुर जिले में 6 से 14 साल के 55 प्रतिशत बच्चे सरकारी या निजी स्कूलों में दाखिला ले चुके हैं हालांकि अभी भी 8.8 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं, जो स्कूल नहीं जाते। बदायूं में 8.7 प्रतिशत बच्चों का दाखिला नहीं हुआ है। शाहजहांपुर में 7.4, अमरोहा जिले में 6.7, फर्रुखाबाद में 6.4 और खीरी जिले में 5.6 प्रतिशत बच्चों ने स्कूलों में दाखिला नहीं लिया है। इन जिलों में बच्चों के दाखिले में आ रही रुकावटों को दूर करने की जरूरत है ताकि प्रत्येक बच्चे का दाखिला सुनिश्चित हो सके।

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