पुरानी दिल्ली के गुरुद्वारा शीशगंज का इतिहास
यह स्थान चांदनी चौक में कोतवाली के पास बना हुआ है। इसे 1675 ई. में गुरु तेगबहादुर की याद में बनाया गया था, जिसमें उनकी समाधि है और ग्रंथ साहब यहां रखे हुए हैं। गुरु तेगबहादुर का सिर 11 नवंबर 1675 ई. पौष सुदी पंचमी संवत 1632 में दिन के 11 बजे औरंगजेब के हुक्म से कलम किया गया था। औरंगजेब ने गुरु साहब को 42 दिन कैद में रखा, मगर ये बराबर ग्रंथ साहब का पाठ करते रहे।
वे गुरु हरगोविंद जी के पुत्र और सिखों के नौवें गुरु थे। ब्रज कृष्ण चांदीवाला अपनी किताब दिल्ली की खोज में लिखते हैं कि गुरु हरिकिशन जी की मृत्यु के बाद झगड़ों से उन्हें गद्दी पर बिठाया गया था। इनका नाम अपने पिता से भी अधिक चमक उठा। गद्दी पर बैठने के लिए इनके भतीजे रामराय ने इनका मुकाबला किया था, मगर जब वह सफल न हो सका तो उसने बादशाह से जाकर यह चुगली खाई कि तेगबहादुर के इरादे सल्तनत के विरुद्ध हैं।
बकौल ब्रज कृष्ण चांदीवाला बादशाह ने तेगबहादुर को दिल्ली बुलवा भेजा, लेकिन जयपुर के राजा की सिफारिश से उनकी जान बच गई और वह दिल्ली से पटना जाकर पांच-छह वर्ष रहे। इसके बाद यह फिर पंजाब लौटे और औरंगजेब ने इन्हें गिरफ्तार करवाकर इनका सिर कलम करवा दिया। बड़ का वृक्ष, जहां सिर कलम हुआ था, उसी जमाने का है। आज भी तना शीशे की अलमारी में रखा है। गुरु जी का चित्र गुरुद्वारे में लगा हुआ है। जहां-जहां उनके खून के कतरे गिरे, सिख लोग उस स्थान को बहुत पवित्र मानते हैं। उनके सिर को उनका एक शिष्य आनंदपुर साहब ले गया और धड़ रकाबगंज के गुरुद्वारे में समाधिस्थ किया गया, जो नई दिल्ली में बना हुआ है।
गुरुद्वारा शीशगंज को अब करीब-करीब नया ही बना दिया गया है। यह बाहर से लाल पत्थर का और अंदर से संगमरमर का बना हुआ है। सैकड़ों सिख और हिंदू रोज दर्शनों को आते हैं और गुरुद्वारे में भीड़ लगी रहती है। संगमरमर की सीढ़ियां चढ़कर प्रवेश द्वार है। सामने बहुत बड़ा दालान है, जिसके चारों ओर परिक्रमा है, ऊपर की मंजिल में चौगिर्दा सहंची भी बना है।
अंदर की सारी इमारत संगमरमर की है। दालान के पश्चिम में चबूतरे पर ग्रंथ साहब रखे हैं। ऊपर छतरी बनी है। इस चबूतरे की पुश्त पर सीढ़ियां उतरकर नीचे एक छोटी-सी कोठरी है, जिसमें गुरु साहब की समाधि है। गुरु जी का चित्र भी उसमें लगा है। गदर के समय इस गुरुदारे को मस्जिद बना दिया गया था। बाद में यह गुरुद्वारा बना। मौजूदा इमारत कुछ वर्ष हुए बनी है। यह कई मंजिला है। ऊपर की बुर्जी पर सुनहरी पानी चढ़ा है। यहां गुरु नानक का जन्मदिन और गुरु तेगबहादुर दिवस मनाए जाते हैं।