जफर ने क्यों जारी किया फरमान, मुगल सल्तनत हो चुकी है बहाल
1857 की क्रांति : बगावत के बीच बहादुर शाह जफर ने लाल किले में दरबारे-आम तलब किया। एक फारसी रू-ब-कारी (आदेश) में बहुत खूबसूरत शब्दों में सजा एक आदेश जारी किया। जो विभिन्न दस्तों के सूबेदारों के नाम था और उनसे कहा गया कि वह अपने सिपाहियों को लगाम दें और उनको ऐसी हरकतों से रोकें क्योंकि अब मुगल सल्तनत वापस बहाल हो गई है और यह बर्ताव उस नस्ल के बादशाहों की शान के खिलाफ है, ‘जिनके कदमों में सब राजा-महाराजा और नवाब सम्मानपूर्वक घुटनों के बल बैठते थे।”
उस वक्त तो सबने उनकी बात बहुत सम्मान से सुनी लेकिन एक घंटे बाद ही दूसरे जत्थों के सिपाही शोर मचाते किले में घुस आए और शिकायत करने लगे कि उनके पास खाने को कुछ नहीं है क्योंकि अनाज के दुकानदारों ने अपनी दुकानें खोलने से इंकार कर दिया है। उन्होंने बहुत बदतमीजी से बादशाह सलामत से कहा कि वह उनके लिए खाने को कुछ मुहैया करें।
“बादशाह की शानदार लफ्फाजी को बिल्कुल नज़रअंदाज़ करते हुए उन्होंने बहुत गुस्ताखी से उनको संबोधित किया, ‘अरे, तू बादशाह! अरे, बुड्ढे।‘ एक ने तो उनका हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘सुन,’ और दूसरे ने उनकी दाढ़ी को छूकर कहा ‘मेरी सुन!‘ बादशाह सलामत यह सब देखकर बहुत गुस्से में भर गए, लेकिन उनकी इस गुस्ताखी को रोकने के लिए कुछ नहीं कर पाए। बस सिर्फ अकेले में वह अपने नौकरों के सामने अपनी बदनसीबी का रोना रोकर कुछ सुकून पा सके….
“इस बदबख्त दिन जफर पूरे वक्त हैरान, परेशान और खौफजदा रहे, और इस हालत में वह उन लोगों के हाथों की कठपुतली बन गए, जो पहले बहुत विनम्रता से उनका आदेश बजा लाते थे, लेकिन अब शहर के लोगों की अवज्ञा देखकर, जो उस बदनसीब दिन सभी वर्गों में देखी जा रही थी, उनको भी बादशाह का अपमान करने और उनका मजाक उड़ाने में कोई शर्म नहीं आई।
जफर उन शर्तों के लिए एक मिसाली बादशाह थे जो अंग्रेजों ने गदर से पहले उन पर लागू की थीं। लगभग कैदी की हैसियत रखने के बावजूद वह एक बड़े सांस्कृतिक पुनर्जागरण के संरक्षक और आंशिक रूप से उत्प्रेरक थे। लेकिन यह साफ जाहिर था कि अब किसी जंग में नेतृत्व करने के लिए वह बहुत बूढ़े हो चुके थे, और वह एक सूफी और दुनियावी ऐश से दूर जा चुके व्यक्ति थे। और वैसे भी वह 82 साल के थे और उनमें वह जोश, हौंसला, उत्साह और इच्छा नहीं थी, जो उस बगावत के चीते पर सवार हो सके। उनकी अब यह हालत थी कि वह अपने दीवाने-आम को भी सिपाहियों के हथियारों का गोदाम या तोपचियों के सोने की जगह बनने से नहीं रोक पाए और न ही वह उन पहरेदारों को रोक सके, जो किले की दीवार के ऊपर से जनाने में झांकते थे और जिसकी वजह से उनकी बेगमें बहुत खफा होतीं और शिकायत करती थीं। और तो और उनके प्रिय बाग भी बर्बाद हो रहे थे, लेकिन वह कुछ नहीं कर पाए। पूरे मई उन्होंने कोशिश की कि फौज अपने घोड़े वहां से हटा ले, लेकिन उनको कुछ कामयाबी नहीं मिली।