दही, चूड़ा, तिलकुट खा कर मनाया मकर संक्रांति का पर्व

14 जनवरी को हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी एबीवीपी जेएनयू के कार्यकर्ताओं ने मकर संक्रांति का त्योहार मनाया। बताते चलें कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग नामों से मनाया जाने वाला यह पर्व नई शुरुआत का प्रतीक है और इसी खाश दिन से रात छोटी और दिन बड़ी होने लगती है । मकर संक्रांति को फसल उत्सव भी कहा जाता है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन, भगवान विष्णु ने राक्षसों का सिर काटकर और उन्हें एक पहाड़ के नीचे दफन कर दिया था, जो नकारात्मकताओं के अंत का प्रतीक था और अच्छी तरह से जीने और समृद्ध होने के अच्छे इरादों का प्रतीक था। इसलिए, यह दिन साधना या ध्यान के लिए बहुत अनुकूल है क्योंकि वातावरण ‘चैतन्य’ अर्थात ‘ब्रह्मांडीय बुद्धिमत्ता’ से भरा हुआ है।

बताते चलें कि जेएनयू में एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने देश के हर कोने के छात्रों तक पहुंच कर उन्हें मकर संक्रांति पर्व का अर्थ समझाया और उन्हें सहभोज के लिए आमंत्रण दिया। इसी संदर्भ में बीती रात 8 बजे पेरियार होस्टल के बाहर एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने लोहड़ी का भी आयोजन किया था जिसमें लगभग 200-250 छात्रों ने हिस्सा लिया। और 14 जनवरी को जेएनयू स्टेडियम में सहभोज के अवसर पर एबीवीपी जेएनयू ने दही, चूड़ा और तिलकुट का अयोजन किया और इस खाश मौके पर जेएनयू में पढ़ रहे देश के हर कोने के छात्र छात्राओं ने भाग लिया। इसके बाद जेएनयू स्टेडियम में ही पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता का अयोजन भी किया गया जिसमें वहां मौजूद विद्यार्थियों ने जोड़ शोर से अपनी भागीदारी दिखाई और इस कार्यक्रम को सफल बनाया।

मौके पर मौजूद एबीवीपी जेएनयू के अध्यक्ष रोहित कुमार ने छात्रों से बातचीत करते हुए मकर संक्रांति का अर्थ समझाया और कहा,” जेएनयू में हर वर्ष की भांति अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओ ने मकर संक्रांति के पर्व को दृढ़ संकल्प से संकल्प बनाया। एबीवीपी के कार्यकर्ताओं के लगन से ही आज कैंपस का हर हॉस्टल से छात्र इस सहभोज का आनंद उठा पाए हैं।”

वहीं इकाई मंत्री उमेश चंद्र अजमीरा ने कहा, “जेएनयू में इस तरह के सफल अयोजन से यहां के छात्रों में एक सकारात्मकता का भाव जगता है। मकर संक्रांति का पर्व सभी के जीवन में सकारात्मकता का क्षण लेकर आए।”

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