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मिथिलांचल के वैवाहिक गीतों में कोहबर गीत का अपना अलग स्थान है। वैसे तो मिथिला में जितने भी गीत गाए जाते हैं, सब मोहक और दिल को छू लेने वाले हैं, लेकिन कोहबर गीत का अपना एक अलग सौन्दर्य बोध है।

इस गीत में दुल्हन की सखियां चुन-चुन कर गारी सुनाती है। गारी भी सिर्फ दूल्हे को ही नहीं बल्कि उनकी कई पीढ़ियों तक पहुंच जाती हैं। सीता की सखियां श्रीराम से तरह-तरह का मजाक करती हैं। प्रेम की मर्यादा कोहबर के क्षण में टूट जाती है।

श्रीराम से सखियों का मजाक सुनकर सीता मंद-मंद मुस्कुरा रही है। इस गीत में एक ओर तो सीता और श्रीराम के लोक पावन सौन्दर्य का वर्णन है, दूसरी ओर उनकी बांकी झांकी पर मोहित होती मिथिला की नारियों का भी अद्भुत वर्णन है।

यह गीत लोक पावन और मंगलमय है। आचार्यश्री ने इस गीत में अलौकिक ब्रह्म के लौकिक रूप का सुन्दर चित्रण किया

कोहबर में सखि सब मंगल गाये

मिथिला में रघुवर को गीत सुनाये

कोहबर में

राजा दशरथ अरु मातु कौशल्या

शान्ता सन रउआ कैसे भेल बहिनियां

गारी सुनकर रघुवर को सिया मुस्कुराये

मिथिला में रघुवर को गीत सुनाये

कोहबर में

कोहबर में बैठे है सिया रघुनंदन

झिलमिल सितारों का है अभिनन्दन

दुलहा दुलहिन को देख सखि मुस्कुराये

मिथिला में रघुवर को गीत सुनाये

कोहबर में…..

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