1857 की क्रांति: सितंबर को आठ मील लंबी घेराबंदी श्रृंखला के हाथी झूमते हुए ब्रिटिश कैंप में दाखिल हुए। वह साठ भारी हॉविट्जर और मोर्टार खींच रहे थे। उनके पीछे 653 बैलगाड़ियों की लंबी कतार थी। जिनमें गोला, बारूद, कारतूस, शैल के टुकड़े और छरों के डब्बे लदे हुए थे। जिनमें से ज्यादातर पंजाब की फौजी फैक्ट्रियों में बने हुए थे जो सारे गुदर के हंगामे में पूरे वक़्त क्षमता से काम करती रही थीं।

घेराबंदी की बहुत सी तोपें इतनी विशाल थीं–खासकर छह भीमकाय 24-पाउंडर–कि उन्हें कई हाथी मिलकर खींचते थे (अहम बात यह है कि यह हाथी पंजाब के राजाओं ने दिए थे। अगर वह हाथी नहीं देते, तो शायद इस घेराबंदी का नतीजा कुछ और हो सकता था)। इन गाड़ियों के काफिले के साथ चार सौ प्यादा फौजी चल रहे थे, और बहुत से घुड़सवार फौजी।

अंग्रेज अफसर चार्ल्स ग्रिफिथ्स के शब्दों में, ‘बलूच बटालियन के सिपाही बहुत वहशी मालूम होते थे। अगले दिल चार्ल्स ग्रेटहैड इंजीनियर्स पार्क में सामान के खोले जाने का मुआयना करने गया।

वहां रिचर्ड बेयर्ड-स्मिथ, जो पंजाब का सिंचाई विशेषज्ञ था और फील्ड फोर्स का चीफ इंजीनियर नियुक्त हुआ था, अपने प्लान बनाने में मसरूफ था।

ग्रेटहैड के मुताबिकः “बारूद और गोलियों की तादाद पूरी दिल्ली को पीसकर सुरमा बनाने के लिए काफी है। मैंने अभी पूरी कार्रवाई का कार्यक्रम नहीं देखा है लेकिन हर रोज का कार्यक्रम बाकायदा बन गया है और बहुत तफ्सील से लिखा है। बेयर्ड स्मिथ ऐसे आदमी नहीं हैं जो छोटी सी बात को भी नजरअंदाज करें। इंजीनियर्स पार्क में खूब गहमागहमी है। वहां तारों, छड़ों, और बंडलों के ढेरों गट्ठर पड़े हैं, लड़ाई की जगह तक ले जाए जाने के लिए तैयार। साथ ही तोपों के प्लेटफार्म, हथियारों के गोदाम बनाने का सामान, रेत के बोरे, खाई खोदने के औजार, सीढ़ियां और हर वह चीज जिसकी मोर्चा बनाने और हमला करने में जरूरत हो सकती है।”

अगले दिन अंग्रेजों ने ज़बर्दस्त तोपखाने बनाने शुरू कर दिए, जिनसे शहर की दीवारें तोड़ सकें। पंजाबी सुरंग उड़ाने वाले ब्रिटिश मिलिट्री इंजीनियरों के निर्देशन में काम कर रहे थे। यह ऐसा काम था जिसे राज में रखना संभव नहीं था। इसलिए शहर की दीवारों और बुर्जों से बराबर बागी सिपाही उन काम करने वालों की टोलियों को निशाना बनाते और बेचारे हिंदुस्तानी काम करने वालों की ही ज़्यादातर उनकी गोलियों का निशाना बनना पड़ता। और उनके अंग्रेज हाकिम उनको तिरस्कार से देखते रहते। फ्रेंड रॉबर्ट्स ने लिखा है कि “उस निष्क्रिय बहादुरी के साथ जो यहां के लोगों का किरदार है, जब एक के बाद उनका कोई आदमी गोली खाकर गिरता, तो वह थोड़ी देर के लिए अपना काम रोकते, थोड़ा सा रोते और फिर उसको दूसरों के साथ एक कतार में लिटाते और फिर से पहले की तरह अपने काम में जुट जाते।

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