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1857 की क्रांति: सिपाहियों के खाने के इंतजाम के लिए पैसा एकत्र करना मुश्किल कार्य होता जा रहा था। दिल्ली के संभ्रांत लोगों से भी तीन लाख रुपए वसूल करने की कोशिश की गई और अनमने ढंग से यह भी कोशिश की गई कि महरौली और गुड़गांव के इलाकों पर, जो नाममात्र को अब भी जफर की हुकूमत में थे, टैक्स लगाया जाए। लेकिन इससे भी बहुत कम पैसा वसूल हुआ।

महीने के आखिर तक मिर्जा मुगल के लोग पैसे के लिए इतने परेशान थे कि उन्होंने किले के सामने सलीमगढ़ किले के मुगल खंडहरों और बुर्जों में दबे खजाने की तलाश में खुदाई शुरू कर दी।

जासूस गौरी शंकर का कहना था कि ‘लोग बादशाह से कहते हैं कि उनके पूर्वजों का खजाना वहां दबा है। कुछ तो सही-सही जगह भी बताते हैं लेकिन अब तक वहां कुछ नहीं मिला है।” खोदने पर कुछ ‘छोटा-मोटा जंगी सामान मिला’, लेकिन खज़ाना कभी हाथ नहीं आया।

इन परेशानी भरे हालात में यह झूठी अफवाह भी फैली कि एक ईरानी फौज क्रांतिकारियों  की मदद के लिए आ रही है और अफगानिस्तान में लड़ाई करके वह हिंदुस्तान आने के लिए पेशावर तक पहुंच गई है और अब ऐटक पर सिंधु नदी पार कर रही है। और एक ईरानी दस्ता समुद्री हमला करने के बाद मुम्बई के रास्ते आने वाला है। बाकर ने अपने देहली उर्दू अखबार में लिखा कि ‘हम इन खबरों की तस्दीक नहीं कर सकते लेकिन यह नामुमकिन भी नहीं है।’

अगस्त के मध्य तक न सिर्फ पैसे बल्कि बारूद और तोपों की टोपियां भी बहुत कम होती जा रही थीं। यह बागी प्रशासन की सबसे बड़ी लापरवाही थी। बगावत के शुरू में ही उनको उत्तरी भारत का सबसे बड़ा हथियारों और अस्लहे का जखीरा मिला था, लेकिन अस्लहाखाने में विस्फोट के दस दिन बाद तक इस पर कोई पहरा नहीं लगाया गया, इसलिए शहर के लोगों और इर्द-गिर्द के गूजरों ने आकर इसको खूब लूटा।”

इसका नतीजा यह हुआ कि आखिर जुलाई तक गोले, तोप की टोपियां और पलीतों की बहुत कमी हो गई। तोपों के लिए बारूद खत्म हो गया और नया बारूद बनाने की कोशिशें नाकाम रहीं क्योंकि शहर में शोरे और गंधक की कमी थी। यह भी कोशिश की गई कि हिंदुस्तान भर के मशहूर आतिशबाजी बनाने वालों की मदद ली जाए। उनमें से एक मेरठ का रहने वाला ‘अकबर खान शहजादों के पास गया और उनसे कहा कि वह एक इतना बड़ा तोप का गोला बना सकता है, जिससे एक पूरा दस्ता खत्म हो जाएगा। उसकी महारत पर यकीन करके उसको खर्च के लिए चार हज़ार रुपए दिए गए और उससे कहा गया कि वह फौरन किले में काम शुरू कर दे’, लेकिन यह तजुर्वा बिल्कुल कामयाब नहीं हुआ।

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