1857 की क्रांति: बागी सिपाहियों के खाने का इंतजाम करना दिनोंदिन भारी पड रहा था। 7 अगस्त को हताश होकर कमांडर मिर्जा मुगल ने कई बैंकरों को गिरफ्तार कर लिया और फिर उनको किले लाया गया, जहां फौरन अपनी सारी दौलत बगावत की मदद को हाजिर न करने की सूरत में उन्हें मौत की धमकी दी गई। गिरफ्तार होने वालों में बहुत से भूतपूर्व अंग्रेजों के अफसर भी थे जैसे मुंशी जीवनलाल जो सिपाहियों को सुबह-सुबह अपने दरवाज़े पर देखकर हैरान रह गए, जब उन्होंने भिश्तियों के आने के लिए अपना दरवाजा खोला। उनको बांधकर किले ले जाया गया जहां उन्होंने जो कुछ देखा, उसे देखकर हैरान रह गएः

“मुझे ऊपर मिर्जा मुगल के पास ले जाया गया। वहां मैंने देखा कि बहुत से लोग जमा हैं, लेकिन अजीब अनियमित रूप से। एक तरफ मिर्ज़ा मुग़ल तकियों के सहारे बैठे थे… उनके सामने तिलंगा ब्रिगेड का मेजर कुरे सिंह था, जो अपने पलंग पर इत्मीनान से लेटा था। वहां दरबार के तौर-तरीकों का कोई आभास नहीं था। और बादशाह के अफसर इधर-उधर बिना किसी अनुशासन के घूम रहे थे। लाला सालिगराम, रामजी दास गुड़वाला और कोई पचीस बैंकर वहां गिरफ्तार बैठे थे। मुझे भी आदेश मिला कि उनकी कतार में बैठ जाऊं।

“हमसे पैसा मांगा गया और हमें इस हद तक धमकी दी गई कि हमारे कंधों पर बंदूकें रखकर चलाई गईं। लेकिन इसके बावजूद हमारे दिल मजबूत रहे और हमने निश्चय कर लिया कि हम मरना पसंद करेंगे लेकिन इन क्रांतिकारियों  की धमकियों से नहीं डरेंगे। इसलिए हमें सारी रात और अगली शाम चार बजे तक इसी हालत में रखा गया।

पूरी रात और अगले दिन भी बार-बार पिस्तौल निकालकर हम लोगों को धमकियां दी गई। आखिर में मुंशी जीवनलाल और दूसरे मुंशी मिर्जा इलाही बख्श की वजह से बच सके, जिन्होंने मिर्जा मुगल को एक ओर ले जाकर चेतावनी दी कि ‘अंग्रेज दिल्ली फतह कर लेंगे तो आप उनके हाथों पकड़े जाएंगे। यह लोग अंग्रेजों के मुंशी हैं, आपको इनकी मदद की जरूरत पड़ेगी। मेरी राय है कि आप इन्हें रिहा कर दें ताकि इन पर आपका अहसान रहे।’

जब बैंकरों पर धमकियां नाकाम रहीं, तो मिर्जा मुगल ने बाजार के दुकानदारों से पांच लाख रुपए और फौज के लिए खाने के सामान की मांग की और वादा किया ‘उनके पैसों की तब अदायगी कर दी जाएगी, जब उनकी तंख्वाह बंटेगी।’ लेकिन दुकानदारों ने भी कोर्ट का आदेश मानने से इंकार कर दिया। हालांकि कोतवाल ने उन पर बहुत जोर डाला और उनको गिरफ्तार करने और दुकानें लूटने की धमकी भी दी।  

शुरू अगस्त में अंग्रेजों के जासूस उनको सूचना दे रहे थे कि बहुत से पंजाबी सौदागर और ‘अशरफी के कटरे के मारवाड़ियों’ को जेल में डाल दिया गया है। कई साहूकार भी उनके साथ पकड़े गए, जिनमें मशहूर सालिगराम भी था।” वह सितंबर के पहले हफ्ते तक कैद रहे, जब तक ज़फ़र को मालूम नहीं हुआ और फिर ‘मिर्ज़ा मुग़ल को आदेश दिया गया कि वह बादशाह की रिआया के साथ बदसुलूकी न करें और जो कुछ वह खुद देने पर तैयार हैं उसे वसूल करें, और वह भी नरमी के साथ’।

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