दिल्ली में सिविल लाइंस का विकास

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली

Development of Civil Lines in Delhi: धीरे-धीरे दिल्ली में औपनिवेशिक ताकतों (Colonial Powers) ने अपने पैर जमा लिए। धीरे-धीरे नए शासकों (New Rulers) की जीवन शैली और शासकीय व्यवस्था (Administrative System) के रौब ने सामान्य जनता के मन पर कब्जा कर लिया।

देखते ही देखते दिल्ली दो टुकड़ों में बंट चुकी थी। शासन-व्यवस्था के ठेकेदारों (Contractors of the Administrative System) ने दिल्ली को उत्तर-दक्षिण दोनों तरफ से चांप लिया था। 1911 के ‘दिल्ली दरबार’ (Delhi Durbar) की घटना का ऐतिहासिक महत्त्व (Historical Significance) है।

हुकूमते ब्रितानिया के सिरमौर जॉर्ज पंचम (George V) का दरबार जिस जगह लगा था, वह अब दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) के उत्तर में स्थित ‘किंग्जवे कैम्प’ (Kingsway Camp) के दाहिने हाथ की तरफ़ जानेवाली सड़क पर लगभग दो-ढाई किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जगह का नाम था कॉरोनेशन ग्राउंड (Coronation Ground)।

कुछ साल बाद उस स्तम्भ को छोड़कर जो बतौर यादगार लगाया गया था, वह इलाका लगभग वीरान हो गया। आगे चलकर एक टीबी का अस्पताल (TB Hospital), हरिजन बस्ती (Harijan Colony), एक चर्च (Church) जैसी गिनी-चुनी बसागतों को छोड़कर कहने लायक आबादी उस इलाके में देश के विभाजन (Partition of India) तक विशेष नहीं बढ़ी।

अलबत्ता, शहर की दिशा में सरकारी इमारतों का निर्माण उस स्थल पर किया गया, जहां अब दिल्ली सरकार की विधानसभा (Delhi Government Assembly) की पुरानी इमारत है, और दिल्ली विश्वविद्यालय का वह हिस्सा है जिसमें वाइस चांसलर (Vice Chancellor) और रजिस्ट्रार (Registrar) के दफ्तर हैं, जिसके एक कमरे में लॉर्ड माउंटबेटन (Lord Mountbatten) ने कभी लेडी माउंटबेटन (Lady Mountbatten) के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था।

कश्मीरी गेट (Kashmiri Gate) के भीतर कुछ और इमारतें थीं। विराट अहाते के बीचोबीच बनी सेंट जेम्स (St. James) की शानदार इमारत और थोड़ी-थोड़ी दूरी छोड़कर दो सिनेमाघर मिनर्वा (Minerva Cinema) और कैपिटल (Capital Cinema) (जिसका नाम बाद में बदलकर ‘रिज’ हो गया)। जाहिर है, इनकी तामीर सिविल लाइंस (Civil Lines) में रहनेवाले अंग्रेज अफसरों की ज़रूरत को ध्यान में रखकर की गई होगी। कश्मीरी गेट के ठीक सामने निकलसन गार्डन (Nicholson Garden) का पुराना कब्रिस्तान (ईसाई) (Christian Cemetery) भी वहां की आबादी के स्वरूप की तरफ़ इशारा करता है। बाद में गिने-चुने भारतीय हाकिम भी ‘शहर’ के बाहर उसी इलाक़े में रहने लगे थे जिसे सिविल लाइंस कहा जाता था।

अंग्रेज़ों ने हर उस शहर में जिसे उन्होंने किन्हीं कारणों से महत्त्व दिया, एक इलाक़ा पुराने शहर की घनी आबादी के बाहर सिविल लाइंस (Development of Civil Lines in Delhi) नाम से बसाया। सम्भवतः यह नाम पुराने शहर की तुलना में अपने रिहाइशी इलाक़े को सिविल अर्थात् ‘सभ्य’ लोगों की बस्ती कहने की गरज से दिया जाता होगा।

एक दिलचस्प बात यह थी कि अलग-अलग शहरों के सिविल लाइंस कहे जानेवाले हिस्सों की वास्तुकला (Architecture) में अद्भुत साम्य होता था। यह बात अलग है कि समय के साथ शहरों में अनेक कारणों से ‘सिविल लाइंस’ कहे जानेवाले ये इलाक़े पिछड़ गए और सत्तावानों का स्थानान्तरण दूसरे अपेक्षाकृत ज़्यादा खुले नवनिर्मित आधुनिक हिस्सों में हो गया।

दिल्ली में यह प्रक्रिया ‘ल्यूटन्स’ दिल्ली (Lutyens’ Delhi) की परिकल्पना के साथ पूरी हुई। जैसे चांदनी चौक (Chandni Chowk) पुराने शहर की धुरी है, वैसे ही कनॉट प्लेस (Connaught Place) लम्बे समय तक इस ल्यूटन्स दिल्ली की धुरी बना रहा। वह अलग प्रसंग है।

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