हाइलाइट्स

राजधानी में गर्भवती भैंस चोरी की पहली एफआईआर

  • भगत सिंह और सुखदेव के खिलाफ हुई एफआईआर भी प्रदर्शित
  • घोड़े पर सर्च आपरेशन चलाने, रजाई, गद्दा चोरी होने तक की एफआईआर देख सकतें हैं दर्शक
  • 1944 में दिल्ली पुलिस को पहला वाायरलेस सिस्टम मिला था

पुरानी दिल्ली की संकरी गलियों की निगहबानी हो या फिर चमचमाती सड़कों, गगनचुंबी इमारतों वाली नई दिल्ली। सुरक्षा के मामले में दिल्ली पुलिस ने हमेशा शहर का साथ दिया है। सन 1857 की क्रांति के दौरान कानून व्यवस्था की बात हो या फिर दिल्ली दरबार के सकुशल सम्पन्न कराने की जिम्मेदारी। लॉ एंड आर्डर बनाए रखने से लेकर विभिन्न धर्मो, सम्प्रदायों के बीच आपसी सौहार्द बनाए रखने जैसे मोर्चे पर दिल्ली पुलिस सफल साबित हुई है। पुलिस ने उर्दू के कायदों से ऑनलाइन एफआईआर तक का सफर तय किया है। दिल्ली पुलिस में पहली महिला अधिकारी की नियुक्ति से लेकर घोड़े पर सर्च आपरेशन चलाने, रजाई, गद्दा, गर्भवती भैंस चोरी होने तक की एफआईआर दर्ज करने, वायरलेस सेट के पहली बार इस्तेमाल करने तक की पूरी कहानी को दिल्ली पुलिस के म्यूजियम में बखूबी दर्शाया गया है। भगत सिंह और सुखदेव के खिलाफ हुई एफआईआर, महात्मा गांधी की हत्या के बाद तुगलक रोड थाने में दर्ज हुई एफआईआर भी यहां प्रदर्शित है।

दिल्ली पुलिस में पहला

किसी भी विभाग में पहले अधिकारी की नियुक्ति संबंधित विभाग के लिए काफी अहम होती है। दिल्ली पुलिस के इतिहास में भी कई ऐसे क्षण हैं, जो आज भी स्वर्णिम अक्षरों में इतिहास के पन्नों में दर्ज है। किंग्सवे कैंप स्थित दिल्ली पुलिस संग्रहालय में दिल्ली पुलिस में विभिन्न पदों पर आसीन हुए पहले अधिकारी के बारे में जाना जा सकता है। मसलन, दिल्ली के पहले कोतवाल मलिकुल उमरा फकरुद्दीन (1237में )थे। जबकि पहली महिला सब इंस्पेक्टर के पद पर माया देवी बट्टा थी। मार्च 1950 में इनकी नियुक्ति हुई थी। 1978 में असिस्टेंट कमिश्नर के पद से रिटायर्ड हुई। जबकि पहली गजटेड महिला अधिकारी शकुंतला वशिष्ठ थी।

जब लगा गेंहू उत्पादों पर प्रतिबंध

क्या आपको पता है, दिल्ली से गेंहू निर्यात पर प्रतिबंध भी लगाया जा चुका है। संग्रहालय में एक तस्वीर काफी आकर्षित करती है। इसमें दिल्ली पुलिस के जवान घोड़े पर बैठकर दिल्ली-पंजाब बार्डर स्थित ताजपुरा में सर्च आपरेशन चला रहे हैं। पदाधिकारियों ने बताया कि यह आपरेशन उस आदेश के बाद आया था जिसमें कहा गया था कि दिल्ली से गेंहू उत्पादों के निर्यात पर पाबंदी लगाई जाती है। निर्यात पर निगरानी का जिम्मा पुलिस को सौंपा गया था।

.सफर खाकी वर्दी तक का

सन 1861 में महिला पुलिसकर्मी के कई रंगों वाले ड्रेस की वर्तमान ड्रेस से तुलना कर आप हैरान रह जाएंगे। संग्रहालय में दिल्ली पुलिस के जवानों की वर्दी भी प्रदर्शित है। मसलन, 1861 से पहले नीला जैकेट और सफेद पैंट पहना जाता था। 1933 से 1969 तक थानाध्यक्ष की ड्रेस कैसी होती थी, वो भी यहां देखा जा सकता है। ट्रैफिक पुलिस और माउंटेड पुलिस की वर्दी भी प्रदर्शित है।

हथियारों की नुमाइश

दिल्ली पुलिस आज अत्याधुनिक हथियारों से लैस है। लेकिन क्या आपको पता है कभी पुलिस रिवाल्वर, पिस्तौल से अपराधियों से मोर्चा लेती थी। संग्रहालय में दिल्ली पुलिस द्वारा अब तक प्रयोग में लाए गए हथियारों को देखा व उनके बारे में जाना जा सकता है। यहां 30.06 बोर की राइफल प्रदर्शित है। जो फुल ऑटोमैटिक होती थी। इसका प्रयोग शिकार के लिए खूब होता था। राइफल 4 एम के आई 303 बोर पहली ली इंफील्ड राइफल थी जो 1896 में ब्रिटिश सर्विस में आयी थी। प्रथम विश्व युद्ध के बाद इसे मोडिफाई किया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध में भी इसका प्रयोग किया गया था। इसी तरह 400 बोर वाली राइफल जो सिंगल शॉट मोड की थी भी प्रदर्शित है।

मोर्स कोड के जरिए गुप्त सूचनाओं का आदान प्रदान

संग्रहालय में मोर्स कोड हर किसी की उत्सुकता बढ़ा देता है। दरअसल, यह छोटी सी मशीन अपने समय में दिल्ली पुलिस के लिए कई बड़े कामों में सहायक रही है। खुद अधिकारी बताते हैं कि मोर्स कोड के जरिए कोड वर्ड में एक थाने से दूसरे थाने संदेश भेजे जाते थे। इसका अविष्कार अमेरिका के समुैअल मोर्स ने 1791 में किया था। मोर्स तरंगों पर कार्य करता हैं एवं एक गुप्त कोड तैयार करता है। दिल्ली पुलिस द्वितीय विश्व युद्ध तक इसका प्रयोग की।

पहला वायरलेस सेट

1944 में दिल्ली पुलिस में पहला वाायरलेस सिस्टम आया। जिसे पुलिस स्टेशन कोतवाली, चांदनी चौक में लगाया गया था। इसके अलावा दो और मोबाइल वायरलेस सेट भी इंग्लैंड से मंगाकर लगाए गए। आजादी के बाद दिल्ली पुलिस ने वायरलेस सिस्टम आल इंडिया रेडियो को दे दिए। गांधी जी की हत्या के बाद उनकी अंतिम यात्रा की लाइव कमेंट्री के लिए आल इंडिया रेडियो ने दिल्ली पुलिस के वायरलेस सेट की ही मदद ली थी।

महात्मा गांधी की हत्या की एफआईआर

बिरला हाउस में प्रार्थना सभा से पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसकी एफआईआर तुगलक रोड थाने में 30 जनवरी 1948 को धारा 302 के तहत दर्ज की गई। नंदलाल मेहता के बयान के आधार पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें उन्होंने पूरी घटना का सिलसिलेवार ब्यौरा दिया। उन्होंने बयान में बताया कि गांधी जी किस तरह प्रार्थना सभा के लिए आ रहे थे, भीड़ उनके रास्ते के दोनों तरफ जमा थी। अचानक नाथूराम गोडसे आया और गोली मार दी। गांधी जी राम राम कहते हुए गिर पड़े। नाथूराम गोडसे मौके से पकड़ा गया। पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त पिस्तौल की फोटो भी लगाई है। इसी तरह यहां भगत सिंह के खिलाफ हुई एफआईआर भी प्रदर्शित है। जो नई दिल्ली थाने में दर्ज हुई थी।

गर्भवती भैंस चोरी की पहली एफआइआर

संग्रहालय में दिल्ली के विभिन्न थानों में हुई पहली एफआइआर की प्रतियां उपलब्ध है। जिन्हें पढ़कर एक बारगी कोई भी हैरान हो जाएगा। मसलन, महरौली थाने में 2 नवंबर 1861 को गणेशी लाल ने दीवार तोड़ गर्भवती भैंस, कटरे, झोटे चोरी होने की एफआइआर दर्ज कराई। इसी तरह मुंडका थाने में 29 अक्टूबर 1861 को बमरौला गांव निवास चीना ने एफआईआर दर्ज कराई की उनके घर के सामने से दस रुपये की दो गाय चोरी हो गई। जबकि सब्जी मंडी थाने में 18 अक्टूबर 1861 को मईयुद्दीन ने शिकायत दर्ज कराई की उनके घर से रात को तीन देगच, एक कटोरा, एक कुल्फी, एक हुक्का, कुछ जनाना कपड़े (कुल कीमत 45 आना) चोरी हो गए।

बदलता रहा दिल्ली पुलिस मुख्यालय का ठिकाना

आजादी के बाद दिल्ली पुलिस मुख्यालय कश्मीरी गेट कोर्ट कंपाउंड के फ‌र्स्ट फ्लोर पर था। यहां इंस्पेक्टर जनरल तब डी डब्ल्यू मेहरा थे। यहां आफिस 16 फरवरी 1948 तक रहा। वर्तमान में यहां डिप्टी कमिश्नर और एसडीएम नार्थ का आफिस है। सन 1952 में पुलिस मुख्यालय दारा शिकोह की लाइब्रेरी में भी शिफ्ट किया गया था। जिसमें जनरल पोस्ट आफिस है। जब 1960 में तीस हजारी में अदालत बनी तो पुलिस मुख्यालय कश्मीरी गेट में तीन मंजिला भवन में गया। 1 जनवरी 1976 से मुख्यालय आईटीओ स्थित था लेकिन अब नई दिल्ली पहुंच चुका है।

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