लोकगीतों की महारानी शारदा सिन्हा के महत्व पर बोले रवीश कुमार, कहा- “उनकी आवाज बिहार के हर त्योहार की आत्मा है

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

बिहार की मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा का मंगलवार रात एम्स में निधन हो गया। शारदा सिन्हा को किसी एक राज्य की सीमाओं में बांधना गलत होगा। वो पूरे देश की आवाज थी। उनके निधन से पूरे देश में शोक की लहर है। वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने अपने यूट्यूब चैनल पर शारदा सिन्हा पर केंद्रित करीब आठ मिनट का वीडियो बनाया है। रवीश ने शारदा सिन्हा की आवाज को अजर अमर बताया है।

रवीश कुमार ने वीडियो में शारदा सिन्हा और लता मंगेशकर की तुलना पर भी अपना पक्ष रखा है। उन्होंने कहा कि शारदा सिन्हा का स्थान भोजपुरी और बिहारी संस्कृति में इतना महत्वपूर्ण है कि उनके बिना छठ जैसे महापर्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती। 

रवीश कुमार ने बताया कि 1978 में पहली बार शारदा सिन्हा का छठ गीत एचएमवी द्वारा जारी हुआ था और तब से लेकर आज तक उनकी आवाज हर छठ पर्व का अभिन्न हिस्सा बनी हुई है। उन्होंने कहा कि भले ही सालभर शारदा सिन्हा के गीत न सुनें जाएं, लेकिन छठ के दौरान उनकी आवाज हर घर और हर घाट पर गूंजती है। रवीश ने इसे ‘बिहार के परिवारों की परंपरा’ बताया और इसे हर पीढ़ी के दिलों में बसी हुई आवाज कहा।

उन्होंने शारदा सिन्हा की तुलना बंगाल के महालया पर्व पर वीरेंद्र कृष्ण भद्रा द्वारा किए जाने वाले चंडी पाठ से की। रवीश ने कहा कि जिस तरह महालया के बिना दुर्गा पूजा की शुरुआत की कल्पना नहीं की जा सकती, उसी तरह छठ के बिना शारदा सिन्हा की आवाज की कमी खलती रहेगी।

रवीश ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि भोजपुरी संगीत के बदलते दौर में जब अश्लीलता से भरे गीतों की बाढ़ आई, तब भी शारदा सिन्हा ने अपनी आवाज को स्वच्छ और सांस्कृतिक मानकों के अनुरूप बनाए रखा। उन्होंने अश्लीलता से बचते हुए अपने लोकगीतों में शुद्धता बनाए रखी, जबकि अन्य गायकों ने लोकप्रियता और राजनीति में सफलता के लिए ऐसे गीतों का सहारा लिया। 

उन्होंने शारदा सिन्हा की आवाज को बिहार की ही नहीं, बल्कि पूरे भोजपुरी समाज की अमूल्य धरोहर कहा। आज जब छठ पूजा के दौरान लोग अपने गांव लौटते हैं, तो उनके मन में कई आवाजें गूंजती हैं, और उनमें सबसे खास आवाज शारदा सिन्हा की होती है। 

छठ पर्व की आवाज का भूगोल बड़ा

रवीश कुमार ने यह भी बताया कि शारदा सिन्हा की आवाज का भूगोल सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है। उनके गीत मॉरीशस और त्रिनिडाड जैसे देशों में भी भोजपुरी समुदाय के बीच लोकप्रिय हैं, जहां उन्हें अपनी जड़ों से जुड़े रहने का एक माध्यम मिल जाता है। 

शारदा सिन्हा का संदेश

रवीश ने शारदा सिन्हा का एक संदेश भी साझा किया, जिसमें उन्होंने आजकल के लोक कलाकारों को ‘अनुकरण’ की बजाय ‘अनुसरण’ का मार्ग अपनाने की सलाह दी। शारदा सिन्हा के अनुसार, लोक कला में नवीनता लाने के लिए कलाकार को अपने कला ज्ञान में वृद्धि करते रहनी चाहिए, न कि प्रसिद्धि के लिए दूसरों की नकल करनी चाहिए। 

छठ जैसे पर्वों में शारदा सिन्हा का नाम और उनकी आवाज ही उन्हें लोकगीतों की महारानी बनाते हैं। रवीश कुमार की यह बात भोजपुरी समाज के उस प्यार को जाहिर करती है, जो सदियों तक शारदा सिन्हा के गीतों के साथ बना रहेगा।

लता मंगेशकर से तुलना

रवीश ने कहा कि अक्सर शारदा सिन्हा की तुलना लता मंगेशकर से कर दी जाती है। इसमें कोई दिक्कत नहीं है। लता मंगेशकर का अपना मुकाम है। शारदा सिन्हा का लोकगीतों में अपना मुकाम है।

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