बड़ी दिलचस्प है दिल्ली में झीलों के निर्माण की कहानी
दिल्ली(Delhi) के सात शहरों के बसने के सफर में कई झीलें और तालाब भी वजूद में आए। इसी क्रम में यहां करीब एक हजार से भी ज्यादा झीलें और तालाब बने। कुछ प्राकृतिक हैं और तो कुछ मानव निर्मित। लेकिन मकसद पानी के स्त्रोत के रूप में ही देखे गए। इन झीलों की खूबसूरती के कायल कुछ राजाओं ने अपने किले वहीं बनवाएं। शायद हर शाम को वे झीलों के किनारे कुछ लम्हें फुर्सत के बिताया करते थे। दिन बेशक राजाओं के लद गए लेकिन दिल्ली के लोगों के दिलों में आज भी झीलों के किनारे घूमने का अरमान रहता है। इसलिए गर्मियों में खासकर वे लोग इन झीलों में नौका विहार करते हैं और प्राकृतिक खूबसूरती को महसूस करते हैं। दिल्ली में नैनीताल(Nainital) जितनी बड़ी झील भी है तो खूनी झील जितनी छोटी झील भी। हर एक झील जितनी दिलकश है उतनी ही उसकी निर्माण की कहानी भी दिलचस्प है।
नैनीताल की झील जितनी बड़ी है भलस्वा झील ..
यह झील दरअसल झील नहीं यमुना नदी का ही हिस्सा हुआ करती थी। जब युमना नदी ने अपना रुख मोड़ा तो यहां घोड़े की नाल के आकार में गड्ढा हो गया था। शायद इसलिए इसे घोड़े की नाल वाली झील भी कहा जाता है। यह झील नैनीताल की झील से भी बड़ी है। इस झील एक छोर में कूड़े के ढेर हैं तो दूसरे में कुछ पेड़ पौधे हैं जिसकी वजह से यहां हर साल सर्दियों में प्रवासी पक्षी जैसे स्टॉर्क और क्रेन भी विहार करती हैं। सर्दियों के मौसम में यह झील मेहमान पक्षियों से गुलजार रहता है। यहां लैंडफिल-भूमि होने के कारण झील उपेक्षित थी लेकिन अब इसे विकसित कर इसमें बोटिंग करवाने की भी योजना है। इस झील के पूर्व की ओर बबूल के साथ कई तरह के पेड़ भी है। दिल्ली सरकार अब इस झील में पानी के खेल / खेल सुविधा के रूप में इसे बढ़ावा देने की शुरुआत कर रही है।
सपने में आए पैगंबर
महरौली में एक बड़ा हौज है जिसे हौजे शम्सी कहा जाता है। इसके बारे में यह कहा जाता है कि शम्सुददीन इल्तुतमिश ने इसे सन 1230 में बनवाया था। इस हौज के बनने की कहानी भी रोचक है। माना जाता है कि बादशाह इलतुतमिश को सपने में एक बार पैगम्बर ने दर्शन दिए और इस स्थल पर तालाब के निर्माण के लिए कहा। अगले दिन सुबह इल्तुतमिश ने पैगंबर के घोड़े के खुरों में से एक खुर का चिंह देखा। उसके बाद बादशाह ने वहां एक तालाब खोदवाया बनवाया और जहां घोड़े के खुर देखे वहां एक गुंबदनुमा मंच बनवाया। इस तालाब की कहानी का जिक्र प्रसिद्ध मूर यात्री इब्नबतूता ने भी की है। वे इस तालाब की विशालता से प्रभावित हुए थे, जिसकी आपूर्ति बरसात के पानी से होती थी।
कहा जाता है कि इस तालाब में एक दुमंजिला पत्थर का महल था जिस तक केवल नावों से पहुंचा जा सकता था। इस तालाब का जल पवित्र माना जाता है और इसके आस पास मुसलमान संतों की अनेक कब्रें हैं। फूलवालों की सैर या सैरे गुलफरोशां के नाम से विख्यात मेले में फूल विक्रेता कुतुब साहब की दरगाह और जोगमाया के मंदिर पर फूलों से अलंकृत बड़े-बड़े पंखे चढ़ाते हैं।
हौजे -अलाही
हौज खास की हौजे अलाही नाम की झील लोगों के साथ फिल्म निर्माताओं के लिए भी सबसे पसंदीदा जगह है। दिल्ली आने वाले सैलानी इस झील को न सिर्फ देखते हैं बल्कि इसकी इतिहास से भी रूबरू होते हैं। दरअसल हौजे अलाही नाम की झील सीरी फोर्ट व हौज खास शहर के लिए पानी का स्त्रोत हुआ करती थी। इसे 1230 में अलाउद्दीन खिलजी ने बनवाया था। इस झील की सुंदरता को देखते हुए फिरोज शाह तुगलक ने अपना किला इसके किनारे बनवाया। सन 1351 -88 के बीच इस झील को साफ करवाया और यहां अनेक इमारतें भी बनवाई जो अब हौज खास कहलाती है। झील के किनारे बने इसे चौकोर कमरे में फिरोजशाह का मकबरा है। यहां फना फिल्म की शूटिंग हुई थी। रॉकस्टार जैसी कई फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है।
पुराना किले के झील की सैर
पुराना किले के पास स्थित झील दरअसल झील नहीं थी, गहरी खाई हुआ करती थी जो किले की रक्षा करने के लिए बनवाई गई थी। इस खाई का सीधा कनेक्शन यमुना नदी के साथ था। किला युमना नदी के साथ ही था और उसके दूसरे हिस्से में खाई बनवाई गई। शेर शाह सूरी ने जब यह किला बनवाया था तो अपनी सुरक्षा के खाई बनवाई। सन 1543 में यह किला बनवाया गया था जिसे पूरा हुमायूं ने किया था। शेर शाह सूरी इस किले में जाने के लिए सेतू बनवाया गया था। लेकिन समय के साथ अब दिल्ली वालों कके लिए झील बन गया है। चिड़ियाघर करीब होने के कारण सर्दियों में कुछ विदेशी पक्षी भी देखे जा सकते हैं। यहां दिल्ली पर्यटन विभाग की ओर से बोटिंग चलाई जा रही है।
नैनी और खूनी झील का राज
मॉडल टाउन बसने से पहले यहां जंगल हुआ करते थे। पानी के लिए यहां कुछ झीलें भी हुआ करती थी। नैनी झील में विदेशी पक्षी आया करते थे, इसका नाम नैनीताल के नाम पर 1965 के बाद रखा गया। अब इस झील को कायाकल्प किया जा रहा है। इसके अलावा कमला नेहरू रिज के अंदर भी एक खूनी झील है। नाम से इस झील को देखने की उत्सुकता जागती है। पार्क के अंदर फेंसिंग तारों के बीच एक छोटा सा झील है। झील का उपरी सतह पूरी तरह काई से भर चुका है इसलिए यहां अब पक्षी भी नहीं आते हैं। इस झील के बारे में लोगों का कहना है कि यहां सन 1857 में हुए विद्रोह के दौरान कई अंग्रेजों को मार कर फैंक दिया गया था।
उस दौरान लड़ाई में मारे गए लोगों को यहां फैंका जाता था। वर्ष 1960 के बाद इस झील में कुछ खुदकुशी करने वाली घटनाएं भी हुई। जिसके बाद इसे खूनी झील कहा जाने लगा है। इससे पहले इसे रिज के झील के नाम से ही जाना जाता था।
अंग्रेजी हुकमरानों की पसंदीदा नजफगढ़ की झील
नजफगढ़ झील झड़ौदाकलां गांव में आज भी मौजूद है। हालांकि इस झील का अस्तित्व खतरे में है लेकिन इसे बचाने की मुहिम जारी है। पहले यह झील जीव जन्तु और पक्षियों का बसेरा हुआ करता था। ब्रिटिश प्रशासन के समय उस समय के अधिकारी इसी स्थान पर फुर्सत के लम्हें गुजारने आया करते थे। पहले यहां पिंक हेडड डक जैसी दुर्लभ पक्षी यहां रुख करती थी लेकिन 1960 के बाद वो पक्षी दिखाई नहीं दी। हालांकि अब भी यहां क्रेन व अन्य पक्षी आते हैं
दिल्ली में हौज खास हैं आर्कषण का केन्द्र
रमित मित्रा, हेरीटेज वाक, दिल्ली बाई फुट
दिल्ली में वैसे बहुत कम प्राकृतिक झील बची है लेकिन उन्हीं झील को देखने की उत्सुकता लोगों में रहती है। ज्यादातर लोग दक्षिणी दिल्ली के हौज खास में जाना पसंद करते हैं क्योंकि इस झील का इतिहास भी है और सुंदर भी है। इसी तरह हौजे शमसी के इतिहास के चलते उसे भी देखना पसंद करते हैं।
यह झील सिर्फ झील ही नहीं बल्कि इतिहास का वो आइना है जिसमें झांक कर लोग कुछ पलों के लिए उनमें गोते लगा लेते हैं। सर्दियों में तो लोग पक्षियों को देखने के लिए ओसोला के झीलों में भी जाते हैं लेकिन गर्मियों में तो हौज खास ही सबसे पसंदीदा स्थान रहता है। लोग भी इनके बारे में जानना चाहते हैं और इनके वजूद के सफर को भी। किस्सा तो किस्सा है लेकिन हकीकत झील है और उसमें बने कुछ इमारतें।
झीलों को बचाना जरुरी
मनु भटनागर, पर्यावरण धरोहर, इंटेक
दिल्ली शहर सात बार उजड़ी और बसी। सातों शहरों की बसावट में जलाशयों ने अहम भूमिका निभाई। सभी राजाओं ने शहर के लिए जलाशय भी बनावाएं। इस कारण शहर में कई खूबसूरत जलाशय आज भी जिंदा है। आज की तारीख में कुछ 320 झील और तालाब मौजूद है। हर क्षेत्र के झील में खास बातें हैं और उसका कुछ इतिहास भी है।
जलाशय इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इससे भूमिगत जल स्तर रिर्चाज होता रहता है। नजफगढ़ झील एक ऐसी झील है जिस पर बिल्डर लोगों की नजर है। हर एक भूमि पर लोग घर बनाने में जुटे हैं जिससे परिंदों और दूसरे जीव जंतु के अस्तित्व खतरे में हैं। नजफगढ़ झील को बचाने के लिए इंटेक ने नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल में जनहित याचिका दायर की है। उम्मीद है कि इस मामले में फैसला झील के हक में हो। झील सिर्फ पानी का स्त्रोत ही नहीं बल्कि एक ऐसा संसार है जिससे में पेड़ -पौधे, पानी के जीव जन्तु और पक्षी बसेरा करते हैं। हमारे लिए पानी का स्त्रोत हैं। भलस्वा को भी विकसित करने पर विचार किया जा रहा है। लेकिन इस दिशा में तेजी से काम करने की जरुरत है।