-नई दिल्ली ने जताया विरोध लेकिन चीन ने भाव तक नहीं दिया

-नेहरू कार्यकाल में अधिकारियों के बीच क्योंं मशहूर था एक चुटकुला

कुलदीप नैयर अपनी किताब में लिखते हैं कि वो तब गृह मंत्रालय में थे। जब उन्होने चीनी सैनिकों के भारतीय इलाके में घुसपैठ की खबर सुनी। एक दिन वो विदेशियों के मामलों के इन्चार्ज उप-सचिव फतेह सिंह के साथ बैठा हुए थे। तभी उनके सहायक चीनियों से सम्बन्धित कुछ कागजात लेकर आए और उनसे पूछने लगे कि इस मामले में क्या करना चाहिए। ये कागजात लद्दाख में एक सड़क के गैर-कानूनी निर्माण के बारे में थे। फतेह सिंह ने उन कागजों की तरफ देखे बिना ही कहा-‘इन्हें बॉर्डर-फाइल में लगा दो।

इस तरह की रिपोर्टों के लिए यह बड़ी अजीव व्याख्या थी। फतेह सिंह ने कुलदीप नैयर को बताया कि चीनी घुसपैठ से जुड़े सभी तारों, सन्देशों और रिपोर्टों की फाइलों में डाल दिया जाता था, बिना किसी कार्रवाई के प्रधानमंत्री नेहरू इन्हें देखते थे और इन पर अपने नाम के प्रथमाक्षर लिखकर गृह मंत्रालय को भेज देते थे। आखिर में ये कागजात घूम-फिरकर एक बार फिर से मामलों से जुड़े विभाग में पहुँच जाते थे। गृह मंत्रालय में एक चुटकुला मशहूर था कि अगर किसी अधिकारी को किसी शिकायत पर कोई कार्रवाई न करनी हो तो वह कहता था, “इसे बोर्डर फाइल में डाल दो।” मैं संयुक्त सचिव के स्तर पर भी इस तरह की निष्क्रियता के बारे में सुनता रहता था।

फतेह सिंह ने उन्हें बताया कि चीन किस तरह लद्दाख में हमारे इलाकों को चुपके चुपके हड़पता रहा था और देश को इसकी सूचना न देकर वे कितना अपराध-बोध महसूस कर रहे थे। चीन ने भारत के अक्साई चिन इलाके में एक सड़क बना ली थी। इस सड़क के बारे में सबसे पहले 1954 में लक्ष्मण सिंह नामक एक पुलिस अधिकारी ने नई दिल्ली को सूचित किया था। देश के व्यापार प्रतिनिधि के नाते लक्ष्मण सिंह हर वर्ष तिब्बत जाते रहते थे। उनके काफी अच्छे सम्पर्क थे और उन्हें कुछ मजदूरों के माध्यम से इस सड़क के बारे में पता चला था। (भारतीय वायुसेना का एक विमान भूल से उस इलाके में चला गया था और उसने एक चित्र के माध्यम से इस सड़क की पुष्टि की थी।)

नई दिल्ली लक्ष्मण सिंह की सूचना पर अविश्वास करती रही। पन्त और नेहरू की अलग-अलग राय थी। पन्त चाहते थे कि कम-से-कम एक हवाई दौरा करके इस खबर की सच्चाई का पता लगा लिया जाए। नेहरू का कहना था कि इसका कोई फायदा नहीं होगा। वे सड़क के अस्तित्व की पक्की जानकारी के बिना किसी तरह का विरोध भी व्यक्त नहीं करना चाहते थे। आखिर कई चर्चाओं के बाद वे इस बात के लिए राजी हो गए कि चीन को भारत के वे नक्शे भेज दिए जाएँ जिनमें अक्सई चिन को भारत का हिस्सा दिखाया गया था। उन्होंने यह काम भी विदेश सचिव को अनौपचारिक तरीके से करने के लिए कहा। वे चीन को नाराज करना नहीं चाहते थे।

लेकिन चीन ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की तो पन्त ने नेहरू को एक गश्त टुकड़ी भेजकर सच्चाई का पता लगाने के लिए राजी कर लिया। गश्त टुकड़ी ने देखा कि चीन ने सचमुच ही अक्सई चिन में सड़क बना ली थी, जिस पर चीनी सैनिकों का पहरा था। भारतीय गश्त टुकड़ी के सदस्यों को देखते ही चीनियों ने उन्हें पकड़ लिया और उन्हें घोड़ों की पूछों से बाँधकर दूर तक घसीटते ले गए। नई दिल्ली के विरोध-प्रदर्शन को चीन ने जरा भी भाव नहीं दिया।

यह बिलकुल साफ था कि नेहरू चीन को नाराज करना नहीं चाहते थे, खासकर यह देखते हुए कि खुद उन्होंने ही इंडोनेशिया में आयोजित गुटनिरपेक्ष देशों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री चाउ एन लाई का आन्दोलन के अन्य नेताओं से परिचय करवाया था। लेकिन नेहरू यह भी देख रहे थे कि चाउ एन-लाई अब उनका उतना सम्मान नहीं करते थे।

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