-नेहरू के खिलाफ जनआक्रोश काफी बढ़ गया था

-चीन की चालबाजी भांपने में नेहरू सरकार चूक गई

पंडित जवाहर लाल नेेहरू को लगता था कि चीन के तेवर एक नए और नौजवान कम्युनिस्ट देश की तरह थे जिसने अपने अतीत को त्याग दिया था और जो भविष्य की तरफ बढ़ने के लिए बेचैन था। उन्होने संसद के गुस्से को शान्त करते हुए कहा (जिसे तब तक अकसई चिन में चीन द्वारा सभ का पता चल चुका था) कि इसमें कोई विवाद नहीं था कि यह भारतीय क्षेत्र था। नेहरू ने अपने आलोचकों को आश्वस्त करते हुए कहा कि चीन कभी भी भारत के साथ लड़ाई नहीं करेगा, और अगर ऐसा हुआ तो यह एक विश्वयुद्ध होगा। वे कितना गलत सोच रहे थे। उनकी खुशफहमी देश के लिए। कितनी महंगी साबित हुई।

कुलदीप नैयर लिखते हैं कि पिछले कई वर्षों से संसद की गतिविधियों को उन्होने बहुत नजदीक से देखा। लेकिन मैंने कभी भी नेहरू के खिलाफ गुस्से का इतना उबाल नहीं देखा था। चीन पर बात करते हुए नेहरू ऐसे व्यक्ति की तरह बोलते थे जिसके विश्वास को गहरी ठेस लगी हो। लेकिन इससे अक्सई चिन भारत को वापस नहीं मिल सकता था। आजादी के बाद देश को नेतृत्व प्रदान करने के लिए राष्ट्र उनका ऋणी था- देश को संसद, न्यायपालिका और कार्यपालिका जैसी संस्थाएँ देने के लिए। लोग अपने देश और अपने प्रधानमंत्री पर गर्व महसूस करते थे। लेकिन वे चीन के प्रति उनके नरम रुख को कभी क्षमा नहीं कर पाए। वे एक ऐसे नायक थे जो उनकी आशाओं पर खरे उतरने में असफल रहे।

मैं जब अपनी पहली किताब ‘बिटवीन द लाइन्स’ पर काम कर रहा था तो मैंने एक ऐसा पत्र ढूँढ निकाला जो पटेल ने अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले नेहरू को लिखा था। यह पत्र मैंने किताब के परिशिष्ट के रूप में शामिल किया। पटेल ने नेहरू को आँखें खुली रखने की चेतावनी दी थी क्योंकि “चीन सरकार शान्तिपूर्ण इरादों की बातें करके हमें झांसे में रखने की कोशिश करती रही है।” पटेल ने भारतीय कम्युनिस्टों, जिन्हें वे हमेशा नापसन्द करते रहे थे, को एक सुरक्षा खतरा बताते हुए आगे यह भी लिखा था कि वे “चीन के कम्युनिस्ट शस्त्रागारों पर पूरा भरोसा” कर सकते थे।

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