तब देश आजाद नहीं था। रामप्रसाद बिस्मिल के बोल सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैं फिजाओं में गूंजते थे। उमर अंसारी ने एक गाना लिखा था, जिसके बोल थेे सब एक होके नगमे आजादियों के गाएं। देश आजाद नहीं था लेकिन फिल्में बन रही थी। ये फिल्में सामाजिक कुरीतियों को तो निशाना बना ही रही थी आजादी के आंदोलन के लिए भी प्रेरित कर रही थी। जब बोलती फिल्में बनने लगी तो स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरणा देती फिल्मों का दौर और तेज हुआ। इस बीच 1930 में एक फिल्म आयी थी, जिसने ब्रितानिया हुकूमत के छक्के छुड़ा दिए।

फिल्म का नाम था व्रत। इस फिल्म में जिस अभिनेता का लीड रोल था वो महात्मा गांधी जैसा दिखता था। वो उन्हीं की तरफ ड्रेस पहनता था और उनके जैसे ही चलता था। वो लोगों से मिलता तो उन्हें सदचरित्र का उपदेश देता। आजादी केे लिए जोश भरता। इस फिल्म के बारे में जब ब्रितानिया हुकूमत को पता चला तो तत्काल फिल्म बैन कर दी गई। कई जगह तो दर्शक देख भी नहीं पाए। इसी तरह एक और फिल्म थी महात्मा विदूर जिसनेे तहलका मचा दिया था।

देशभक्ति का जज्बा जगाने वाली दस फिल्में

1-शहीद- 1965

2-आनंद मठ- 1952

3-बॉर्डर- 1997

4-चिटगॉन्ग- 2012

5-गांधी- 1982

6-हकीकत- 1964

7-लक्ष्य- 2004

8-द लेजेंड ऑफ भगत सिंह- 2002

9-उपकार- 1967

10–मंगल पांडे: द राइजिंग- 2005

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