देेश की आजादी में हर वर्ग ने याेगदान दिया। हालांकि तबायफों के योगदान को उतनी तरजीह नहीं मिली, जितनी मिलनी चाहिए थी। विद्याधरी देवी ने भी बाकि हिंदुुस्तानियों के साथ यह सपना देखा था। विद्याधरी देेवी के कोठे पर मुजरे सेे पहले वंदे मातरम का उदघोष होता था। बताते हैं कि मुजरे से पहले वंदेे मातरम का ट्रेंड विद्याधरी देवी ने ही शुरू किया। वो एक गाना भी गाती थी, जिसके बोल थेे….

चुन चुन के फूल ले लो, अरमान रह ना जाए

ये हिंद का बगीचा गुलजार रह ना जाए

कर दो जाबन बंदी, जेलों में चाहे भर दोे

माता में कोई होता कुर्बान रह ना जाए

भारत ना रह सकेगा, हरगिज गुलाम खाना

छल को फरेब से तुम भारत का माल लूटो

इसके लिए यहाँ कोई सामान न रह जाए

विद्याधरी देवी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की भक्त थीं। जिन्होंने 1930 में गांधी के विदेशी बहिष्कार आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और उनकी प्रेरणा से ‘तवायफ संघ की स्थापना की। ये ‘तवायफ संघ’ स्वतंत्रता संग्रामियों को हर संभव मदद करता। विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार इन्होंने सर्वप्रथम किया तथा अन्य गायिकाओं से भी वो इसके लिए आग्रह करती थी। गांधी के स्वदेशी आंदोलन में विद्याधरी बाई, हुस्नाबाई ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। लेकिन स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी किताबों कही इनका ज़िक्र नहीं मिलता है।

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