अलाउद्दीन को इमारतें बनाने का बड़ा शौक था। यद्यपि उसका समय लड़ाइयां लड़ते ही बीता, मगर उसने पृथ्वीराज की नगरी लालकोट को छोड़कर अपनी राजधानी वहां से ढाई मील उत्तर-पूर्व में सीरी के स्थान पर 1303 ई. में बनाई, जो दिल्ली से नौ मील पूर्व में है और जिसकी दीवारें अभी तक खड़ी हैं। अब यहां शाहपुर गांव आबाद है। पुरानी दिल्ली मुगलों की तबाही से दो बार बच चुकी थी, इसलिए उसने किले रायपिथौरा की मरम्मत कराई और एक नया किला बनवाया, जिसका नाम उसने सीरी रखा।

मुगलों से बदला लेने के लिए इसकी बुनियाद और दीवारों में आठ हजार मुगलों के सिर चिने गए थे। इसकी दीवारें चूने पत्थर की बनाई गई थीं। 1548 ई. में शेरशाह सूरी ने सीरी के किले को बरबाद कर दिया। उसने युमना के किनारे अपना खुद का महल या नगर सीरी का किला तोड़कर बनाया। इसका घेरा करीब एक मील है और प्रतीत होता है कि इसे अलाउद्दीन के महल को हजार सुतून (जिसमें एक हजार स्तंभ थे) की रक्षा के लिए बनाया गया था। इसकी चारदीवारी को देखने से पता चलता है कि मुगलों से उस समय कितना भय रहता होगा। अब उस महल का कहीं नामोनिशान भी बाकी नहीं है। अब इस मुकाम पर शाहपुर गांव है।

उस जमाने में सीरी को नई दिल्ली और पृथ्वीराज को दिल्ली को पुरानी दिल्ली कहने लगे थे। इब्नबतूता ने, जो तैमूर के हमले से सत्तर वर्ष पूर्व दिल्ली में आया था, सीरी का नाम दारुल खिलाफत अर्थात खिलाफत की गद्दी भी लिखा है और इसकी दीवारों की मोटाई 17 फुट बताई है। तैमूर ने भी अपने रोजनामचे में सीरी का जिक्र करते हुए लिखा है— ‘सीरी शहर गोलाकार बसा हुआ है। इसमें बड़ी-बड़ी इमारतें हैं और उनके चारों ओर एक मजबूत किला है, लेकिन वह सीरी किले से बड़ा है।’ तैमूर ने लिखा है कि सीरी शहर के सात दरवाजे थे, जिनमें से तीन जहांपनाह की ओर खुलते थे, लेकिन नाम एक ही का दिया है- बगदाद दरवाजा, जो शायद पश्चिम की ओर था। सीरी दिल्ली के मुस्लिम बादशाहों की तीसरी राजधानी थी।

कैकबाद के अतिरिक्त, जो गुलाम खानदान का अंतिम बादशाह था, अन्य समस्त गुलाम बादशाहों ने पृथ्वीराज के किले में दरबार किया और वहां से फरमान निकाले। जलालुद्दीन खिलजी ने कैकबाद के किलेनुमा शहर किलोखड़ी की तामीर पूरी करवाई, जिसका नाम बाद में नया शहर पड़ा। उसके भतीजे और जानशीन अलाउद्दीन ने सीरी शहर का किला बनाया, जो 1321 ई. तक राजधानी बना रहा, जबकि गयासुद्दीन तुगलक ने अपना किला और शहर तुगलकाबाद में बनाया।

तैमूर और यजदी के बयानात के अनुसार तीन शहरों के, जिनको मिलाकर दिल्ली कहा जाता था, उत्तर-पूर्व में सीरी थी, पश्चिम में दिल्ली जो सीरी से बड़ी थी और मध्य में जहांपनाह था जो दिल्ली से भी बड़ा था। सीरी शाहपुर के करीब आबाद थी, शाहपुर के दक्षिण-पश्चिम में रायपिथौरा की दिल्ली थी और शाहपुर तथा दिल्ली के बीच में जहांपनाह । शाहपुर दिल्ली से छोटा था।

सीरी रायपिथौरा के किले की दीवारों के बाहर एक गांव था और सीरी तथा हौजरानी के मैदान फौज के कैंप लगाने के काम में आया करते थे। जब 1287 ई. में कैकबाद ने सीरी में अपना डेरा डाला तो उसकी फौज का उत्तरी भाग तिलपत में था और दक्षिण भाग इंदरपत में और मध्य भाग शाहपुर में।

सीरी की बुनियाद 1303 ई. में किले या शहर की शक्ल में डाली गई, लेकिन इसकी बुनियाद डालने से पूर्व यमुना के उत्तरी किनारे पर दो शहर थे एक, पुरानी दिल्ली (रायपिथौरा की) और दूसरा, नया शहर किलोखड़ी का। जब रुकनुद्दीन इब्राहीम का भतीजा पुरानी दिल्ली के तख्त पर बैठा तो उस वक्त अलाउद्दीन का कैंप सीरी में पड़ा हुआ था।

1303 ई. में जब अलाउद्दीन ने सीरी में किला बनवाया तो उसने एक महल भी बनवाया जिसका नाम ‘कने हजार सुतून’ रखा। इसकी बुनियाद में मुगलों के हजारों सिर चिन दिए गए थे। यह महल सीरी में किस जगह था, इसका सही पता नहीं लगता। कुछ कहते हैं कि यह कस्बा शाहपुर के पश्चिमी भाग में था। दूसरे कहते हैं कि यह दक्षिण दीवार से कुछ आगे बढ़कर था।

अलाउद्दीन की मृत्यु के पैंतीस दिन बाद 1316 ई. में मलिक काफूर को कुतुबुद्दीन मुबारक शाह के मुलाजमीन ने इसी महल में कत्ल किया था। 1320 ई. में खुसरो खां के हिंदू मुलाजिमों ने कुतुबुद्दीन मुबारक शाह को इसी महल के कोठे पर कत्ल किया और फिर चंद महीने बाद गयासुद्दीन तुगलक ने उसी कोठे पर उसी जगह खुसरों को कत्ल करवाया और फिर उसी वर्ष तुगलक शाह इसी महल में गद्दी पर बैठा और अपने तमाम जमाकरदा उमरा के सामने कुतुबुद्दीन तथा अपने आका अलाउद्दीन के खानदान की तबाही पर रोया। इस महल में इतनी बड़ी-बड़ी घटनाएं हुईं, लेकिन वह कैसा था, कहां था इसका पता नहीं चलता।

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