अलाउद्दीन खिलजी ने 1295 ईसवी में करवाया था निर्माण

यह दिल्ली से कुतुब को जाते हुए सफदरजंग के मकबरे से ढाई मील दक्षिण-पश्चिम में दाएं हाथ की सड़क पर आता है। इसे अलाउद्दीन खिलजी ने 1295 ई. में बनवाया था। यह तालाब क्या, पूरी एक झील थी, जो जमीन के एक टुकड़े पर बनी हुई थी। इस तालाब के चारों तरफ पत्थर लगे हुए थे। 1354 ई. में फीरोज शाह तुगलक के जमाने में इसकी हालत बहुत खराब हो गई थी। यह मिट्टी से अट गया था और पानी नाम को भी नहीं रहा था। लोगों ने कुएं खोदकर खेती करनी शुरू कर दी थी। फीरोज शाह ने इसकी फिर नए सिरे से मरम्मत करवाई और उसे नया करवा दिया और तभी से इसका नाम हौज खास पड़ा। मरम्मत इतनी बड़ी थी कि तैमूर ने तो इसे फीरोज शाह का बनाया हुआ ही बताया है।

अमीर तैमूर ने लड़ाई के बाद इसी हौज के किनारे अपना डेरा डाला था। उसने अपने रोजनामचे में इसे फीरोज शाह का बनाया हुआ लिखा है। वह लिखता है- ‘यह तालाब, जिसे फीरोज शाह ने बनाया है, एक बड़ी भारी झील है। इसके चारों ओर सलामी उतरी हुई है और मुख्यतः चूने की इमारतें बनी हुई हैं।’

बरसात के दिनों में यह पूरा ऊपर तक भर जाता था। साल भर तक इसका पानी लोग काम में लाते थे। 1352 ई. में फीरोज शाह ने इस पर एक मदरसा भी बना दिया था। उसकी पक्की इमारत अब भी मौजूद है, जिसमें गांव वाले रहते हैं। किसी जमाने में यह एक आलीशान सैरगाह थी। अब तो इसमें पानी की बूंद भी नहीं रही, हल चलता है।

इसके बीच में भी कभी हौज शम्सी की तरह एक बुर्ज बना हुआ था। अब भी इसके किनारे कितनी ही टूटी हुई इमारतें देखने में आती हैं। सबसे अच्छी इमारत फीरोज शाह तुगलक का गुंबदनुमा मकबरा है, जो 1389 ई. में मरा। मकबरे का बाहरी भाग सादा पत्थर का बना हुआ है। लेकिन अंदर का भाग, जिसकी तरफों की माप 24 फुट है, कामदार है और गुंबद अब भी थोड़ा रंगीन दिखाई देता है। तीन संगमरमर की कब्रें हैं।

ख्याल है कि उनमें एक खुद बादशाह की है, दूसरी उसके लड़के नासिरुदीन तुगलक शाह की और तीसरी उसके पोते की है। मकबरे को सिकंदर शाह लोदी ने फिर से ठीक करवाया था और कुछ साल पहले पंजाब सरकार ने भी उसे ठीक करवाया था। मालूम होता है कि हौज और मकानात फीरोज शाह ने बनवाए थे और मकबरा उसके लड़के सुलतान मोहम्मद नासिरुदीन ने बनवाया। मकबरे के दो दरवाजे खुले हैं- पूर्वी और दक्षिणी हैं। दूसरे दो बंद हैं। सदर द्वार दक्षिण में है, जिसके सामने पत्थर की मुंडेर है और छोटा-सा सहन। इसी सहन में होकर मकबरे में जाते हैं। दरवाजे के ऊपर का पटाव और दोनों तरफ से सुतून थोडे आगे बढ़े हुए हैं, जिन पर पच्चीकारी का काम हुआ है।

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