1857 की क्रांति :बहादुर शाह जफर की बेगम जीनत महल और बेटे मिर्जा जवांबख्त के साथ किले में अंग्रेजों के खामोश समर्थकों में महल के ख्वाजासराओं का सरदार और जीनत महल का राजदार महबूब अली खां, ज़फ़र के वजीरे-आजम अहसनुल्लाह खां और मिर्ज़ा फखरू के ससुर मिर्ज़ा इलाही बख़्श थे।

1852 में इलाही बख़्श, जवांबख्त और महबूब अली खां के पक्के विरोधी थे, लेकिन इन नए हालात में दरबार में नयी लहर के ग्रुप बन गए थे। मिर्ज़ा मुगल, जो पहले जीनत महल के संरक्षण में थे, अब उनके विरोधी हो गए थे और मिर्जा इलाही बख़्श जो पहले उनके विरोधी थे, अब उनके मददगार बन गए थे।

जफर खुद अपनी बीवी और सलाहकारों से दूर हो गए। उनको मालूम से तंग आ चुके थे और शहर में हुई लूटमार ने उनको बहुत ज़्यादा दुखी किया था, लेकिन फिर भी उन्होंने इस संभावना पर गौर किया कि शायद यह बगावत अभी भी तैमूर घराने को बचा सके और उनकी नस्ल के कायम रहने का जरिया बन सके।

जिस बात के लिए वह 1837 में कोशिश कर रहे थे, जब से वह तख़्तनशीं हुए थे। इसीलिए उन्होंने इस बगावत को आशीर्वाद और खुला समर्थन दिया था, और इसके जरिए अपने फिर से मिले ख़िताब को बहुत गंभीरता से स्वीकार किया, और इसके साथ ही सिपाहियों की लूट-खसोट को रोकने की पूरी कोशिश की।

दूसरी तरफ ज़ीनत महल, महबूब अली खां और हकीम अहसनुल्लाह खां बगावत के सिलसिले में अपनी ही नीति पर चल रहे थे, जो बादशाह से बिल्कुल अलग थी और मिर्ज़ा मुग़ल और दूसरे शहजादों से बिल्कुल खिलाफ। यह बात बहुत ड्रामाई अंदाज़ में बगावत के पांचवें दिन शनिवार, 16 मई को सुबह के दरबार में बिल्कुल साफ जाहिर हो गई। चुन्नी लाल, जो वहां मौजूद थे, उनके मुताबिकः

“सारे दस्तों, पैदल फौज के सिपाहियों और उनके अफसरों ने इस दरबार में हिस्सा लिया और एक खत पेश किया जिस पर हकीम अहसनुल्लाह खां और नवाब महबूब अली खां की मुहर थी। यह ख़त दिल्ली दरवाज़े पर पकड़ा गया था। उनकी शिकायत थी कि यह ख़त नवाब और हकीम अंग्रेज़ों को भेज रहे थे कि वह फ़ौरन शहर में आएं और वह उनसे वादा करते हैं कि अगर वह जवांबख्त को, जो ज़फ़र और ज़ीनत महल का बेटा है, वलीअहद मान लें तो हम उसके बदले दिल्ली में जमा तमाम बागी सिपाहियों को पकड़कर उनके हवाले कर देंगे।

हकीम और ख़्वाजा सरा–जो इतना बीमार था कि उसे पालकी में आना पड़ा–दोनों को दरबार में तलब किया गया। दोनों ने कसमें खाईं कि यह ख़त जाली है, लेकिन किसी ने उनका ऐतबार नहीं किया।

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