इसे भी खान जहां अली ने 1387 ई. में बेगमपुर गांव में घुसते ही विजयमंडल के पास बनाया था। यह निहायत आलीशान और बहुत बड़ी मस्जिद है। तर्ज वही कलां मस्जिद और खिड़की मस्जिद की है। अंतर यह है कि यह एक मंजिला है और एक बहुत बड़े चबूतरे पर बनी हुई है। इमारत पत्थर- चूने की है।
उत्तर-दक्षिण में 307 फुट और पूर्व-पश्चिम में 295 फुट है और चबूतरा मिलाकर 31 फुट ऊंचा है। इसके तीन दरवाजे उत्तर, दक्षिण और पूर्व में हैं। सदर दरवाजा पूर्व में है, जिसके तीन तरफ पंद्रह-पंद्रह सीढ़ियां हैं। सहन में चारों ओर कोठरियां बनी हुई है। असल मस्जिद बीच के भाग में है। मस्जिद की छत पर 64 गुंबद हैं। इस मस्जिद में अब आबादी है। यह सफदरजंग के मकबरे से दो मील दक्षिण में कुतुब को जाते हुए सड़क से एक मील पूर्व में पड़ती है।