काली सराय और बेगमपुर के बीच यह एक मकान कुतुब साहब की सड़क पर बाएं हाथ फीरोज शाह का बनवाया हुआ है। इसे जहांनुमा भी कहते हैं और बेदीमंडल भी। यह 1355 ई. के करीब बनाया गया। मकान एक ऊंचे टीले पर बना हुआ है। ऊंचाई 83 फुट है। ऊपर चढ़ने की सीढ़ियां हैं। इसमें एक बुर्ज और चार दरवाजों का कमरा है। इस पर से बादशाह अपनी सेना को देखा करता था।

अकबर और जहांगीर के जमाने में, 1652 ई. में अब्दुल हक मुहाद्दिस ने विजयमंडल की बाबत लिखते हुए कहा है कि यह जहांपनाह का एक बुर्ज था और शेख हसन ताहिर, जो बड़े संत थे और सिकंदर लोदी के जमाने में दिल्ली आए थे, बादशाह की आज्ञा से इस बुर्ज में ठहरे थे। जब 1505 ई. में ताहिर को मृत्यु हो गई तो इस बुर्ज के बाहर उनको दफनाया गया था। जो दूसरी कब्रें उसके इर्द-गिर्द हैं, वे उसके खानदान के लोगों की हैं, जिन्होंने दिल्ली में रहना शुरू कर दिया था।

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