पुराने समय में तैराकी और गोताखोरी जान जोखिम में डालने वालेे काम समझे जाते थे। मगर दिल्लीवालों के लिए यह खेल एक खास प्रकार की खुशी और जोश भी प्रदान करते थे। दिल्लीवालों की अनेक विशेषताओं में से एक यह भी है कि किसी में मनोरंजन और दिलबहलावे की संभावना हो तो वे खतरा मोल लेकर भी उसे करेंगे। पानी के खेल-तमाशे आम तौर पर बावलियों या बावड़ियों और महरौली के झरनों में होते थे। लेकिन यमुना चढ़ी हुई होती तो तैराक और कहीं जाने की न सोचते। उनके झुंड के झुंड उसके किनारों पर मंडराते रहते और नाक को हाथ से दबाकर गोता लगाते और मछली की तरह चक्कर काटकर बाहर निकल आते।

ऐसे मौकों पर उस्तादों और खलीफ़ाओं की भीड़ लगी रहती थी जो अपने शागिर्दों की पीठ ठोंकते रहते और खुद भी तैराकी के ऐसे-ऐसे जौहर दिखाते कि तमाशाई दंग रह जाते। वे लड़कों को छोटी उम्र से ही तैराकी और गोताखोरी सिखाते थे। ये लड़के अपने उस्तादों की देखरेख में इतने होशियार हो जाते थे कि बड़ी-बड़ी बुलंदियों से बड़े विश्वास के साथ पलक झपकते पानी में छलाँग लगा जाते। ऐसा वे शौक़ और प्रदर्शन की भावना से भी करते थे। आदमी के पास कोई हुनर और फ़न हो तो उसका प्रदर्शन एक स्वाभाविक क्रिया है और हर कलाकार प्रशंसा और पुरस्कार का इच्छुक होता है। ये लड़के बार-बार इसलिए भी कूदते थे कि दर्शक कुछ देंगे और दर्शक ख़ुश होकर उन्हें ज़रूर कुछ देते थे, चाहे वह दो-चार पैसे ही हों।

जमना में पानी बहुत हो या सिर्फ़ एक गदली-सी लकीर बह रही हो, बच्चों और लड़कों के लिए उसमें भरपूर आकर्षण हमेशा रहा है और फिर जमना में कितना भी कम पानी होता, तैरने और गोता लगाने के लिए बहुत होता। हर सुबह तैरने वाले लौंडों की एक बड़ी तादाद कतार बाँधे रेल के पुल पर खड़ी हो जाती। एक लंगोट के सिवा बदन पर कुछ न होता। कोई गाड़ी गुजरती तो सबकी आंखें ऊपर उठ जातीं। कोई मुसाफ़िर या जमना मैया का भक्त गुजरती हुई गाड़ी की खिड़की में से हाथ निकालकर कोई सिक्का उछालता तो ये बच्चे नदी में एक छपाके से कूदते और उस सिक्के को निकालकर ले आते।

उस जमाने में मुसाफ़िर बड़ी संख्या में जमना में पैसे डालते थे। प्रायः सिक्के जमना के पुल से टकराकर पानी में गिरते और सिक्कों के टकराने की छनछन की आवाज किसी साज की तरह उस वक्त तक आती रहती जब तक कि रेल पुल पर से नहीं गुजर जाती। सिक्कों की छनछन के साथ लड़कों के पानी में गिरने के छपाकों की आवाज भी आती रहती। ऐसा कभी-कभार ही होता कि सिक्का पानी में गिरे और ये लड़के निकाल न पाएँ। आम तौर पर लड़के और सिक्का एक ही वक्त में पानी में गिरते और लड़कों की नजर पानी में डूबते हुए सिक्के पर जमी रहती। कभी तो ऐसा भी होता कि लड़के सिक्के को उसके पानी की सतह को छूने से पहले ही हवा में उचक लेते और यह उनके बेमिसाल फुर्ती का प्रमाण होता और देखने वाले तालियाँ बजाते और वाह-वाह कह कर खूब शोर मचाते।

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