बंटवारे की आह के बीच नया भारत अंगड़ाई लेने को तैयार था। हर आंख नम थी लेकिन दिल में देश की आजादी का उमंग था। देशभक्ति की भावनाएं हिलोरे ले रही थी। आजादी का जश्न मनाने को क्या लाल किला, क्या इंडिया गेट। कमोबेश हर जगह लोगों का हुजूम चंद दिन पहले ही उमड़ने लगा था। देशभक्ति धुनों पर जय हिंद के नारे दिल्ली की फिजाओं में गूंज रहे थे। पूरी दिल्ली पहले स्वतंत्रता समारोह की तैयारियों में लगी थी। गलियों से लेकर चौक चौराहों पर तिरंगा झंडा लगाया जा रहा था। दुकान, घरों, सरकारी दफ्तरों एवं ऐतिहासिक महत्व के भवनों पर लाइटिंग की जा रही थी। इन सब तैयारियों के बीच वरिष्ठ अधिकारियों के माथे पर चिंता की जो लकीरें उभरी वो अनायास ही नहीं थी। अधिकारियों को यह डर सता रहा था कि कहीं आजादी का यह जश्न भूखे पेट ना मनाना पड़े। कहीं बंटवारे के दंश की वजह से पहला स्वतंत्रता समारोह अनाज की किल्लत के बीच ना मने। इस चिंता की बड़ी वजह, चीफ कमिश्नर एस खुर्शीद की वो पाक्षिक रिपोर्ट थी जो अगस्त महीने में जारी हुई थी।

यह रिपोर्ट राजनीतिक, आर्थिक, खाद्यान्न समेत कानून व्यवस्था समेत कई अन्य श्रेणियों में विभाजित थी। दिल्ली अभिलेखागार में मौजूद रिपोर्ट से पता चलता है कि राजनीतिक मसले पर एस खुर्शीद ने कई महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र किया था। इनमें से जय प्रकाश नारायण द्वारा दिल्ली सोशलिस्ट वर्करों की एक प्राइवेट मीटिंग में अगामी तीन महीनों तक कांग्रेस का सहयोग करने की बात भी कही गई है। रिपोर्ट की मानें तो जयप्रकाश ने हालांकि यह भी कहा था कि यदि उन्हें आभास हुआ कि कांग्रेस नेतृत्व गलत दिशा में जा रहा है तो तत्काल संबंध तोड़ लेंगे। रिपोर्ट में महात्मा गांधी द्वारा हिंदु मुस्लिम एकता के लिए पाकिस्तान जाकर जिंदगी भर काम करने के निर्णय के बारे में भी लिखा गया है। कहा गया है कि दिल्ली कांग्रेस ने गांधी के इस फैसले का स्वागत भी किया है। मुस्लिम लीग ने कहा कि इससे पाकिस्तान के आतंरिक हालातों पर असर पड़ेगा। लिहाजा, महात्मा गांधी से अनुरोध किया गया कि वो भारत में ही रहें। रिपोर्ट कहती है कि मानसून कमजोर पड़ने एवं बड़ी संख्या में पंजाब एवं अलवर से शरणार्थियों के आने की वजह से दिल्ली में खाद्यान्न की भारी कमी हो गई है। खाद्यान्न की यह कमी आगामी दो महीने तक प्रशासन के लिए सिरदर्द बनी रहेगी।

रिपोर्ट की मानें तो दिल्ली में 15 अगस्त तक सिर्फ दो हफ्ते दो दिन के गेंहू का स्टॉक है। सिंध प्रांत से 2000 टन का कोटा जो अब तक आता था वो इस बार कैंसिल कर दिया गया है। इसी तरह पटियाला से आने वाले 475 टन गेहूं भी कैंसिल कर दिया गया है। जबकि उत्तर प्रदेश ने इस बार सिर्फ 2000 टन गेंहू दिया है। इसी तरह चना का भी स्टॉक इस कदर कम हो गया था अधिकारियों की रातों की नींद उड़ गई थी। चीफ कमिश्नर की रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली में उन दिनों सिर्फ 55 टन चना का स्टॉक शेष था। हालांकि पटियाला ने 600 टन चना दाल और 180 टन बेसन देने का वादा किया था लेकिन ये आर्डर पूरा नहीं किया गया। नतीजन, हालात बिगड़ गए। दरअसल, पटियाला के नए प्रशासन ने कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे। यही नहीं नमक की किल्लत तो चरम पर थी। 15 अगस्त तक दिल्ली में सिर्फ चार दिन का नमक का स्टॉक ही शेष था। इन खाद्यान्नों की व्यवस्था में अधिकारियों का दल जी जान से जुटा था।

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