कर्तव्य पथ का इतिहास पढ़िए

नई दिल्ली से गुजरते समय आलीशान बंगले, चौड़ी सड़कें, व्यवस्थित कालोनियां दिल को छू जाती है। राष्ट्रपति भवन, नार्थ और साउथ ब्लाक, कनॉट प्लेस की ऐतिहासिक इमारतें और गोल मार्केट की खूबसूरती भव्यता का एहसास कराती है। लेकिन इस खूबसूरती के पीछे दशकों की मदद जी-तोड़ मेहनत है। जहां वर्तमान रायसीना हिल्स है वहां कभी पहाड़ और जंगलों का बसेरा था। आबादी के नाम पर चंद घर थे। हाथियों पर चढ़कर आर्किटेक्ट ने सर्वे किया और फिर ठेकेदारों ने ताजमहल, फतेहपुर सीकरी और पुरानी दिल्ली के कारीगरों संग नई दिल्ली को एक सुंदर आयाम दिया। इस आर्टिकल में आपको बताएंगे दिल्ली को बनाने में योगदान देने वाले ठेकेदारों के बारे में।

पहाड़ी पर बसा रायसीना हिल्स

इतिहासकार आरवी स्मिथ कहते हैं कि सन 1912 में नई दिल्ली बसाने की योजना परवान चढ़ी। जिस जगह वर्तमान रायसीना हिल्स है वहां पहले जंगल थे। चूंकि पैदल जाना मुश्किल था इसलिए हाथियों पर चढ़कर पहाड़ी चढ़ते थे। आर्किटेक्ट और ठेकेदार हाथियों पर बैठकर सर्वे करते थे। पहाड़ी काटने में बहुत अधिक समय लगा। यहां जंगल में भेड़िया, सियार, लोमड़ी जैसे जानवर बहुतायत थे। इन्हें यहां से भगाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। कुछ क्रिश्चियंस के घर थे जिन्हें ओखला शिफ्ट किया गया।

ताजमहल बनाने जितना लगा समय

आरवी स्मिथ कहते हैं कि लुटियंस दिल्ली सन 1935 में बनकर तैयार हुई। इसे बनाने के लिए ठेकेदारों ने ताजमहल बनाने वाले कारीगरों के अलावा, फतेहपुरी सीकरी और पुरानी दिल्ली के कारीगरों की मदद ली। बैलगाड़ी, हाथी, घोड़े की मदद से बलुआ पत्थर मध्यप्रदेश के टीकमगढ़, फतेहपुरी सीकरी और राजस्थान के मकराना से मंगाए जाते थे। इन्हें दिल्ली ले आने में महीनों लगते थे। पत्थरों को तराशने में भी जद्दोजहद होती थी।

नई दिल्ली के अनाम ठेकेदार

नई दिल्ली को संसार की बेहतरीन राजधानी के रूप में स्थापित करने वालों का जिक्त्र आता है,तो बात चंदेक आर्किटेक्ट तक ही सिमट जाती है। एडविन लुटियन, हरबर्ट बेकर, वाल्टर जॉर्ज,रोबर्ट टोर रसेल जैसे चंदेक आर्किटेक्ट की डिजाइन की

इमारतों की चर्चा हो जाती है। ये सब बेशक महान और प्रयोगधर्मी थे। लेकिन, नई दिल्ली को भारत की नई राजधानी बनाने में अनेक अनाम कान्ट्रैक्टर यानी ठेकेदारों का भी उल्लेखनीय योगदान रहा था। इन्होंने ही नई दिल्ली की इमारतों को नक्शों से उतारकर मूर्त रूप दिया था। इसलिए इन्हें भुलाया नहीं जा कता। लेकिन अफसोस होता है कि इनमें से किसी के नाम पर भी राजधानी में कोई सड़क,गली, इमारत का नाम नहीं है। कोलकत्ता से देश की राजधानी दिल्ली को बनाने का एलान हो गया 12 दिसंबर,1911 को। और चार दिनों के बाद यानी 15 दिसंबर,1911 को जॉर्ज पंचम ने नई दिल्ली की नींव का पत्थर रखा किंग्सवे कैंप में। पहले भावी नई दिल्ली में वाइसराय आवास (अब राष्ट्रपति भवन) संसद भवन, साऊथ ब्लॉक, नार्थ ब्लॉक, कमांडर-इन चीफ आवास (तीन मूर्ति भवन) वगैरह का डिजाइन तैयार करने के लिए हेनरी वॉगन लैंकस्टर का नाम भी चल रहा था एडविन लुटियन के साथ। पर अंत में लुटियन को नई दिल्ली का मुख्य आर्किटेक्ट का पद सौंपा गया। एक कमेटी का गठन हुआ सन 1913 में। इसका नाम था ‘दिल्ली टाउन प्लेनिंग कमेटी’। इसके प्रभारी एडविन लुटियन थे। लुटियन जब अपने साथियों के साथ नई राजधानी के निर्माण के लिए सन 1913 में यहां आए तो तय हुआ कि पहले देख लिया जाए कि किधर बनेगी नई दिल्ली की मुख्य इमारतें। इसके बाद लुटियन और उनके घनिष्ठ साथी हरबर्ट बेकर हाथी पर सवार होकर दिल्ली की खाक छानते थे सही जगहों का चयन करने के लिए। भारत आने से पहले ही बेकर साउथ अफ्रीका,केन्या और कुछ अन्य देशों की अहम सरकारी इमारतों का डिजाइन तैयार कर

चुके थे।

शानदार सिख ठेकेदार

खैर,नई राजधानी का नक्शा बनने लगा तो सवाल आया कि यहां बनने वाली इमारतों के निर्माण के लिए कंट्ररेक्टर यानी ठेकेदार कहां से आएंगे? तब सारे देश में सरकार ने ठेकेदारी का काम करने वाले प्रमुख ठेकेदारों से संपर्क किया। इसके चलते दिल्ली में अनेक ठेकेदार आए। सब यहां पर बड़े प्रोजेक्ट लेना चाहते थे। इससे उन्हें दो लाभ होने थे। पहला, मोटा मुनाफा और दूसरा, उनके प्रोफाइल में चार चांद लगते थे। नई दिल्ली कके निर्माण में पांच सिख ठेकेदारों का लाजवाब योदगान था। इस क्त्रम में सरगोधा ( अब पाकिस्तान) के हडाली शहर से सरदार सोबा सिंह अपने पिता सरदार सुजान सिंह के साथ आए। सोबा सिंह यहां पर कुछ कर गुजरने के लिए आए थे। वे चाहते थे कि उन्हें इधर बनने वाली अधिक से अधिक इमारतों के निर्माण का

ठेका मिल जाए। सोबा सिंह ने नई दिल्ली में कनॉट प्लेस के कुछ ब्लॉक, राष्ट्रपति भवन के कुछ भागों के साथ-साथ सिंधिया हाउस, रीगल बिल्डिंग, वार मेमोरियल वगैरह का निर्माण भी किया।सोबा सिंह के अलावा बैसाखा सिंह, धर्म सिंह सेठी तथा नारायण सिंह भी पंजाब के अपने घरों को छोड़कर यहां आए थे। सभी की चाहत थी बड़े प्रोजेक्ट पर काम करने की। बैसाखा सिंह नार्थ ब्लॉक के मुख्य ठेकेदार थे। उन्होंने इसके अलावा कई प्राइवेट इमारतें भी बनवाईं। वे अमृतसर से थे। नई दिल्ली की चौड़ी-चौड़ी सुंदर सड़कों का जब भी जिक्त्र होता है, तो किसी को सरदार नारायण सिंह का नाम याद नहीं आता। उन्होंने यहां पर सभी सड़कों को बनाया था। धर्म सिंह को ठेका मिला था कि वे राष्ट्रपति भवन, साउथ और नार्थ ब्लॉक के लिए राजस्थान के धौलपुर तथा यूपी के आगरा से पत्थरों की नियमित सप्लाई रखें।

और भी ठेकेदार…

कराची के सेठ हारून अल राशिद ने मुख्य रूप से राष्ट्रपति भवन का निर्माण करवाया था। वे नई दिल्ली के निर्माण के बाद वापस कराची चले गए थे। अपनी ईमानदारी के लिए मशहूर लक्ष्मण दास ने संसद भवन को बनवाया। यहां पर दो पंजाबी मुसलमानों अकबर अली और नवाब अली की भी चर्चा करना आवश्यक है। जहां अकबर अली ने राष्ट्रीय अभिलेखागार को खड़ा किया, वहीं नवाब अली ने राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन को तैयार किया था। दरअसल राष्ट्रपति भवन बहुत विशाल प्रोजेक्ट था, इसलिए उसे कई ठेकेदार बना रहे थे। उन सबको कुछ-कुछ हिस्से दे दिए गए थे।

दिन-रात की मेहनत

ये सभी ठेकेदार मुख्य रूप से राजस्थान के श्रमिकों से काम करवा रहे थे। कुछ श्रमिक पंजाब से भी थे। ये दिन-रात काम करते थे। इनके साथ इनके साथियों-सहयोगियों की बढिया टीम भी थी। इनमें प्लमबर,मेसन,बिजली का काम करने वाले वगैरह थे। एडवर्ड लुटियन जब अपने आर्किटेक्ट साथियों से बैठकें करते थे, वे तब इन सभी ठेकेदारों को भी बुला लेते थे। इनकी राय को तरजीह मिलती थी। ये सभी ठेकेदार और उनके परिवार एक दूसरे के बेहद करीब आ गए थे लगातार काम करने के कारण। ये सब जनपथ लेन में रहते थे।

सोबा सिंह ने अपने परिवार के लिए 1,जनपथ पर बंगला बनवाया। नाम रखा ‘बैकुंठ’। इस बंगले का डिजाइन वाल्टर जार्ज ने तैयार किया था। जार्ज ने ही अब बंद हो गए रीगल सिनेमा हॉल का डिजाइन बनाया था। उनके बंगले के तीन जनवरी लेन वाले गेट पर अब भी उनकी नेम प्लेट लगी है। लकड़ी के गेट पर एक नेम प्लेट पर साफ शब्दों में लिखा है- ‘सर सोबा सिंह’। क्या ये बताने की जरूरत है कि सर

सोबा सिंह किस महान

खुशवंत सिंह के पिता थे। बैसाखा सिंह ने साउथ एंड लेन तथा पृथ्वीराज रोड पर बंगला बनवाया था। नारायण सिंह ने कर्जन रोड (अब कस्तूरबा गांधी मार्ग) पर बंगला बनवाया था। उन्होंने ही जनपथ के इंपीरियल होटल को बनाया था। इंपीरियल होटल राजधानी के शुरूआती दौर के पंच सितारों होटलों में से एक है। और नई दिल्ली के निर्माण में चीफ सिविल इंजीनियर सरदार तेजा सिंह मलिक का रोल भी कोई कम अहम नहीं रहा था। वे खुशवंत सिंह के ससुर थे। खुशवंत सिंह की पत्‍‌नी कंवल जी पुत्री थीं तेजा सिंह की। तेजा सिंह और सोबा सिंह घनिष्ठ मित्र थे। तेजा सिंह को उकी उल्लेखनीय सेवाओं को देखते हुए सर की उपाधि से सम्मानित किया गया था। तो अब नई दिल्ली का निर्माण करने वालों की बात होगी तो कुछ अनाम-अज्ञात ठेकेदारों को भी कृतज्ञता के भाव से याद कर लिया जाएगा।

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