लेखक-प्रमोद भार्गव
एलन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक ने दुनिया में पहली बार आदमी के दिमाग में चिप लगाने का दावा किया है। चिप का दिमाग में प्रत्यारोपण सफल रहा। जिस अज्ञात व्यक्ति के मष्तिक में चिप लगाई गई है,उसकी सेहत ठीक है। परिणाम प्रोत्साहित करने वाले हैं। इस प्रत्यारोपण का मुख्य लक्ष्य पक्षाघात और तंत्रिका-तंत्र संबंधी रोगों का इलाज बताया गया है। अभी तक ‘वियरेबल ब्रेन कंप्युटर इंटरफेस‘ के जरिए कारों और अन्य उपकरणों को नियंत्रित करने के प्रयास होते रहे हैं। लेकिन 2016 में उद्योगपति एलन मस्क की कंपनी ‘न्यूरालिंक‘ ने मानव मस्तिष्क पर नैदानिक परीक्षण ( क्लिनिकल ट्रायल) की अनुमति ली थी।
मस्क ने अमेरिकी नियमन संस्था अमेरिकी फूड एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने यह स्वीकृति दी थी। यह संस्था मानव मस्तिष्क में ब्रेन चिप प्रत्यारोपित करके कंप्युटर से मस्तिष्क को जोड़ देने की कोशिश में थी,जिसमें वह कामयाब हो गई है। इसकी उपलब्धि के संदर्भ में कहा जा रहा है कि तो यह उम्मीद बढ़ जाएगी कि लकवाग्रस्त व्यक्ति के मन में क्या कल्पनाएं उमड़ रही हैं। मूर्छित रोगी का दिमाग कंप्युटर से जुड़ा होने के कारण पीड़ित की भावनाओं और सोच को कंप्युटर स्क्रीन पर अभिव्यक्त कर देगा। इस प्रयोग के जहां कई लाभ गिनाए जा रहे हैं, वहीं इसके अनेक नकारात्मक पहलू भी हैं। इसलिए कहा जा रहा है कि इस तरह के प्रयोग वस्तुओं और जानवरों तक तो ठीक हैं, लेकिन मानव मस्तिष्क पर इन प्रयोगों की शुरूआत कर दी गई तो ये मानव जीवन के लिए घातक भी सिद्ध हो सकते हैं ?
हाल ही के दौर में दुनिया की कई कंपनियों और संस्थाओं ने पशुओं के दिमाग के न्यूरॉन्स और कंप्युटर संकेतों के बीच संदेषों के संप्रेषण की दिशा में बड़ी सफलता अर्जित की है। इस तकनीक को ‘ब्रेन कंप्युटर इंटरफेस‘ (बीसीआई) कहा जाता है। यदि मानव मस्तिष्क पर इस प्रयोग की सफलता के बाद चिकित्सा की दुनिया में एक बड़ा चमत्कार स्थापित हो जाएगा। इससे पक्षाघात के शिकार लोगों की भावनाओं को समझा जा सकेगा, जन्म से अंधे लोगों को आंखों की रोशनी मिल जाएगी, मिर्गी पर काबू हो सकेगा। ब्रेन-इंजरी, पार्किसन और अल्जाइमर के रोगियों को रोग से मुक्ति मिलने की उम्मीद बढ़ जाएगी।
कुछ समय पहले कंपनी ने प्रदर्शन करके प्रमाणित किया कि बंदर भी टेबिल टेनिस से मिलते-जुलते खेल, खेल सकेगा। ऐसा इसलिए संभव हो जाएगा, क्योंकि उसका दिमाग कंप्युटर से जोड़ दिया गया है। बंदर ने कंप्युटर से मिले संकेतों के आधार पर पोंग नामक खेल कर दिखाया था। इस सफलता के बाद एलन मस्क ने भी भरोसा जताया है कि इस तरह का प्रयोग वे स्वयं अपने मस्तिष्क में इस यंत्र को स्थापित करके करना चाहेंगे। दरअसल बीसीआई को ब्रेन मशीन इंटरफेस का नाम भी दिया गया है। इसका आविष्कार 1973 में कैलिफॉनिया के एक प्राध्यापक ने किया था। तभी से मानव मस्तिष्क और कंप्युटर के बीच संवाद-संप्रेषण का तालमेल बिठाने की कोशिशें हो रही हैं। जो अब सफल दिखने लगी हैं।
मानव-मस्तिष्क में इस तरह के चिप प्रत्यारोपण के लाभ तो प्रयोग के स्तर पर होने के कारण भविश्य के गर्भ में हैं, लेकिन इस तकनीक का दुरुपयोग हुआ तो गलत संदेशों के जरिए मनुष्य की निजता तो भंग होगी ही उसे अपराधी भी बनाया जा सकता है। ईश्वर ने मनुष्य को मौलिक सोच के साथ संयंम और विवेक से काम लेने की संवेदना दी है। इसीलिए वह मानव हित में तर्क के साथ क्या उपलब्धि मनुष्य जीवन के लिए उपयोगी हैं, उसे उपकरण के रूप में सामने लाता है।
यदि मनुष्य के दिमाग में चल रही प्रत्येक कल्पना और सोच को पढ़ना आसान हो जाएगा, तो तकनीक से लाचार कर दिया गया मनुष्य अपराध के दायरे में भी आ सकता है ? क्योंकि दिमाग में सकारात्मक और नकारात्मक अकल्पनीय विचार अंगड़ाई लेते रहते हैं। इन विचारों को रिकॉर्ड कर लिया गया तो मनुष्य अपराध किए बिना भी अपराध की श्रेणी में आ जाएगा। यानी डिजीटल कैदी का रूप ले लेगा। ऐसी स्थिति में साइबर हैकर उसे बंधुआ मजदूर बनाने से लेकर उसे ब्लैकमेल भी करने लग जाएंगे। उसका पसर्नल डेटा और चिकित्सा इतिहास हासिल करना भी आसान हो जाएगा। अतएव किसी भी तरीके से मनुष्य के मस्तिष्क पर और उसकी ईश्वर प्रदत्त विचार श्रृंखला पर यदि तकनीक आधारित नियंत्रण प्रयोगकर्ता मनुश्य के हाथ पहुंच जाएगा तो नैतिक मूल्यों और समाजिक संबंधों के बीच नए खतरे उत्पन्न हो जाएंगे ? इसलिए ऐसी विधियों के प्रयोग कारों पर तो ठीक है, लेकिन मनुष्य पर एक सीमा तक ही आवश्यक माने जा सकते है।