दिल्ली घराना की शुरुआत तानसेन से होती है, लेकिन कुछ पुराने उस्तादों के अनुसार दिल्ली घराना की बुनियाद उन्नीसवीं सदी में मियां अचपल ने डाली। दिल्ली जो सदियों तक विभिन्न शाही और खानदानों की राजधानी रही, स्वाभाविक रूप से संगीत और अन्य कलाओं का भी एक प्रमुख केंद्र थी। शाही सरपरस्ती के कारण हिन्दुस्तान के दूसरे भागों के संगीतकार भी यहां आकर बस जाते थे।
मियां अचपल का असल नाम और जन्म स्थान किसी को नहीं मालूम। मरहूम उस्ताद विलायत हुसैन खां कथनानुसार वे एक बहुत गुणी संगीतकार थे और दिल्ली के समीप ही किसी जगह के रहने वाले थे। अपने समय में वे हिन्दुस्तान भर में चे मशहूर खयाल, तराना और चतुरंग गाने में बहुत माहिर थे। वे बंदिशें बनाते थे जो हमेशा बड़े मुश्किल रागों में होती थी।
पच्चीस-तीस साल पहले खुद अपनी तक आगरा, दिल्ली और पटियाला घरानों के संगीतकारों की बंदिशें गाते थे। राग सादरा, बहार, लक्ष्मी तोड़ी और ऐमन में गाए गए उनके गीत बहुत लोकप्रिय थे और पुराने उस्ताद उन्हें अक्सर गाते थे। वे उस्ताद बड़े चांगे खां के समकालीन थे और कई दरबारों में उन्हें आदर-सम्मान प्राप्त था। उनके बहुत से शिष्य थे जो बहुत प्रसिद्ध हुए लेकिन उनमें सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित तानरस ख़ाँ थे। मियां अचपल की मरण- तिथि 1860 ई. बताई जाती है।
दिल्ली घराना के कुछ अन्य महान संगीतकार थे-सादिक खां, बहादुर खां, दिलावर खां, बाबा नसीर अहमद, पन्नालाल गोसाई, श्रीलाल, नूर खां, वजीर खां, अलीबख्रा खां, मुहम्मद सिद्दिकी खां और निसार अहमद खां। यह घराना और बहुत-से संगीतकारों पर भी अपने से संबंधित होने का दावा करता था जो दिल्ली के आसपास के इलाक़ों में रहते थे।
पन्नालाल गोसाई का संबंध वृंदावन के गोसाई घराने से था लेकिन ये दिल्ली आकर बस गए थे। पन्नालाल गोसाई सितारनवाज़ थे और हिन्दुस्तान के मशहूर बीनकार और सितारनवाज़ उनसे इस्लाह (संशोधन) लेते थे। इस्लाह लेने वालों में बरकत उल्लाह खां और बंबई के बीनकार मंगेश और तेलंग जैसे नामवर कलाकार थे। गोसाई श्रीलाल वग़ैरा का गाने में जवाब नहीं था। उनकी बनाई हुई द्रुत की ठुमरियों इतनी लोकप्रिय हुई कि बड़े कलाकारों के अलावा नाटक कंपनियों और फ़िल्मों में भी गाई गई। उदाहरण के लिए ‘बाट चलत नइ चुनर रंग डारी रे? और राग बहार की रचना ‘संगन बिन गगन विन पवन चलत पुरवाई माई।’
मम्मन खां का दिल्ली घराना
एक दिल्ली घराना मम्मन खां का भी था। उसके संस्थापक सगी खां सारंगीनवाज थे मशहूर बुंदू खां, रमजान खां, चांद खां और उनकी संतान और शिष्य इसी दिल्ली घराना से संबंध रखते हैं। इस खानदान में उम्दा गवैये और साजिद पैदा हुए मगर मम्मन खां और बुद्ध खां ने असाधारण ख्याति अर्जित की।